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________________ दिगम्बर जैन । [ वर्ष १७ उपयुक्त होगा व करनेवाले शर्मी दे होकर दूसरी कि कार्यकर्तागण शीव ही नियमावली बनाकर वार ऐसा कार्य नहीं करेंगे । जातिच्युत और परिषद का कार्य सुचारु रूपसे करते रहेंगे । दंडसे यह उपाय सबसे बढ़ कर है कि ऐसा कोई अंतमें एक बात हम अवश्य कहेंगे कि परिषदके कार्य करें उनके यहां लड्डू खाने, जलूसमें जाने हेतु व उद्देश प्रचार में लाने के लिये परिषदने आदिमें बिलकुल शामिल ही न होवें। जो "वीर" नामक पाक्षिकपत्र व सीतलप ११वां प्रस्ताव व्यर्थव्यय रोकने का है। इसकी सादज के संपादकत्व व बा० कामताप्रसादजीके ६ कलम हरएक पाठक विचारपूर्वक पढ़ें व उपसंपादकत्वमें प्रकट करना प्रारम्भ किया है व उप्तका अपनी२ बिरादरी में अपील करनेका दृढ़ नो उत्तम उपयोगी लेखोंसे अलंकृत होकर हर प्रयत्न करें। पक्षमें निकलता है उत्तको दि. जैनके हरएक १२वां प्रस्ताव ७०००)के वनट का है जिप्तमें पाठकको विजनौरसे अवश्य मंगाना चाहिये । करीब १०००) ही परिषदमें आये थे और वार्षिक मूल्य सिर्फ ९॥) वार्षिक है जो अतीव द्रव्य विना सब प्रस्तावों की अमली कार्रवाई न है । केसी हो सकेगो इसलिये श्रीमानों का फर्ज है परिषदके मंत्री ला० रतनलालजी जैन वकील कि परिषदको द्रव्य सहायता भेनकर कार्यकर्ता- बिननर अतीव उत्साही व धर्मप्रेमी होनेसे ओंको उत्साहित करें। परिषद अपने कामों में भविष्यमें बहुत सफलता १३ वा प्रस्ताव-वेदी प्रतिष्ठाऐं कम व साद. प्राप्त करेगी ऐसी सम्भावना है इस लिये सारी गीसे करनेका तथा दावत व गिंदोंडाका तथा जैन समाजको इसको अपनाना चाहिये । अन्य रसमोंके रिवाजोंके बंद करने का है इस राजगिरिमें दिगंपरियों पर दावापर समाजको विचारना चाहिये और अब इस हमारे श्वेतांबर जैन भाइयों ने फिर और एक नया दिशाको समयानुकूल बदलना चाहिये । आव. झगड़ा खड़ा कर दिया है अर्थात राजगिरिक्षेत्रके श्यक वेदीपतिष्ठ एं अवश्य हों परन्तु वे साद- विषयमें १० दिगंबर जैनों र बांकीपुरकी कोर्ट में गीसे होनी चाहिये निससे कम खर्चमें काम दावा दायर किया है कि राजगिरिका पहाड़ सर्षे हो जावे । मंदिर, जमीन रस्ताओ वगेरहपर श्वेतांबरी जैनोंकी १४वां प्रस्ताव छात्रवृत्ति फंड खोलने का है मालिकी है । दिगंबरों का इसमें कोई भी हक इसपर तो श्रीमानोंको बिचार करने का है। नहीं है कि वे किसी इतनाममें दखल करें। माशा है इस विषयमें अन्य श्रीमान् लोग इसलिये श्वेतांबर जैन ही राजगिरि तीर्थके स्वर्गीय दानवीर सेठ माणिकचंदनीका अनुकरण मालिक माने जावे आदि । इस केसकी तारीख करेंगे। ७ जूनको है । उस दिन दिगंबरियोंकी ओरसे १५ व १६ वां प्रस्ताव तो परिषदकी प्रबंध बचाव नामा पेश होगा । हमारी तीर्थक्षेत्र कमेटी कमेटी व नियमावली बनाने का है। माशा है इसके लिये बहुत कोशिश कररही है।
SR No.543196
Book TitleDigambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1924
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size7 MB
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