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॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥
दिगंबर जैन,
THE DIGAMBAR JAIN.
नाना कलाभिर्विविधश्च तत्त्वैः सत्योपदेशैस्सुगवेषणाभिः । संबोधयत्पत्रमिदं प्रवर्त्तताम्, दैगम्बर जैन-समाज-मात्रम् ॥
वर्ष १७ वॉ.
वीर संवत् २४५०. चैत्र वि० सं० १९८०.
! अंक ६ हा
रान्तब्य
हजारों ग्रन्थ कैदमें पड़े हुए हैं। सुना जाता है कि ईडरका ग्रन्थ भण्डार पं० कन्हैयालाल द्वारा सुधारा जारहा है परन्तु नागौरका तो जैसाका तसा है । नागौरके भट्टारक भी काटकर गये
तो अब तो उनके शिष्यका कर्तव्य है कि वे श्री जिनवाणी माताकी पूना भक्ति विनय
अपना वचन पालन करके शास्त्र भण्डार खोलकरनका महान परम कर उसकी सम्हाल करें। यहांक मंडारपर कह श्रतपंचमी पर्व। पवित्र पर्व श्री श्रुतपंचमी ताले लगे हैं व उनपर मट्टी चूना वर्षोसे पोत पर्व आगामी ज्येष्ठ सुदी
पुषा दिया गया है । अब तो किसी भी अवस्थामें ५ (ता. ७ जुन ) को निकट ही आ पहुचा यह ग्रन्थ भण्डार खुलवाने की कोशिश बम्बई है। यह वही पवित्र दिन है कि जिस दिन सरस्वती भवन द्वारा आगामी जस्से पर होनी श्री भूतबलि व अहंदुबलि आचार्यों ने सिद्धान्त चाहिये । शास्त्रों की प्रथम पुजा की थी तबसे ही इसका नाम अब हम यह बतायेंगे कि श्रुतपञ्चमी के दिन श्रुतपंचमी पड़ाव इस पर्वकी पूननको श्रुतस्कंध हमारे क्या २ कर्तव्य हैं। इस पवित्र दिनमें विधान कहा जाता है । करीब दस पंद्रह वर्षसे इस सब स्थानोंके मंदिरों में सुबह श्रुतकंच विधान पर्वको मनाने की चर्चा जैनहितैषी आदि पत्रों में (जिनवाणीकी पना) बड़े भक्ति भावसे वानित्रों होने पर यह पर्व मनाया जाने लगा है, परन्तु सहित होना चाहिये, उस समय मंदिर में जितने खेद है कि इस पर्वका इतना प्रचार अभीतक भी शास्त्र हों उनको धूप दिखाकर अच्छे शुद्ध नहीं हुआ जैसा कि दीवाली पर्व का होता है । वेष्टनों में बांधकर चौकीपर बिमान करने हमको हमारी मूर्तियोंसे कई गुणी बढ़कर रक्षा चाहिये : फिर ग्रंथ सुवी न हो तो नितने भी हमारी जिनवाणी माता (नैन शास्त्रों ) को ग्रन्थ आने २ भण्डारोंमें हों उनकी सूची बनाकरनेकी है जिस तरफ हमने बहुत प्रमाद रखा कर उनकी एक नकल सबको देखने के लिये बहर है। अभीतक ईडर, नागौर आदि स्थानोंपर रखनी चाहिये व निनको जो ग्रंथ पढ़ने को चाहिये