Book Title: Digambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 05
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FJAN LIBRA DICHE STATE ORDAROORomश्रीवीतरागाय नमःAROO KOID सम्पादक-मूलचंद किसनदास कापड़िया चंदावाड़ी-सरत।CO विषयानुक्रमणिका। पृष्ठ ONLO 48700 P नं० विषय १. सम्पादकीय विचार.... .. २. जैन समाचार संग्रह.... ३. व्याख्यान, बेरिस्टर चम्पतरानजी, स्वागत सभापति, सं० प्रा० दि० जैन सभा इलाहाबाद ४. सहबासके नियम (वैद्य ' से .... ५. सच्चा सुखं (प्रेमचन्द पंचरत्न, भिंड ) .... ६. नीति-रत्नमाला (२) ७. मिट्टीके उपचार (जयानीमतापसे ) ८. ज्ञाति-तंत्र (गुजरातका एक ज्ञाति सेवक ) ९. महात्माओनी अमृतवाणी (चुनीलाल वीरचंद गांधी) ३२ वीर सं. २४५० फाल्गुन वि. सं. १९८० वर्ष १७ व ईस्वीसन् १९२४.. पेशगी वार्षिक मूल्य रु. २-०-० पोष्टेज सहित । Maजनालाजा HILDISADILITILGIL L EDISPLEADHOLADISHULICHI Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मेशन से " જૈન અપાય-રસિક સંતોષજનક છે. ૩૦) તેજ વખતે ઇનામ માટે મહારાષ્ટ્ર ના માછી સૌણે જિનવાળીથી ચળ્યા હતા. વૈશાખ વદમાં નવાગામ, દેવલ, છાણી અને બાવલાવડ એ ચાર પાઠશાળાની પરીક્ષા रक्षार्थ जैन ग्रन्थालय खुल गया है जिसमें લેવા જવા વિચાર છે. માટે કોઇ ભાઇને આવવું હા રમી હa સ્ટિવિત ય મુદ્રિત પ્રન્થોડી હોય તે વિશાખ વદી ૫ પર ઘોડાદર પધા. સૂની તો તૈયાર ટોની દિ થાન ૨ ૧૨ મુંબઈથી સેઠ લલુભાઈ લક્ષ્મીચંદ શેકસી પણ પ્રોવ મંદિર ખાતમી મેનર પ્રજા મૂવી- આવવાના છે. પુત્ર નવાર ધંન્નરુ કરશે તથા નો જોરે કન્ય નવાગામ-ની કરતુરચંદ અમથારામ જેવ વિનામૂથ અથવા પૂણે મિજા તો ફરીદો પઠાલાની મુલાકાત તા ૨૮-૨–૨૪ ને દિને શા વેણચંદ છગનલાલે લીધી હતી. અને પાઠસ્ટાર પ્રથાય છે કે મંત્રી ચાતરા - શાળાના કાર્યથી ઘણો જ સતેષ દર્શાવ્યો હતો. रायगोंडा-पाटील सांगली (कोल्हापुर) है। વાંકાનેર-થી ગડીયા પાનાચંદ ગુલાબચંદ રાશિળસ ઉપs-ક્ષણને લખી જણાવે છે કે નવાવાસમાં જૈન પાઠશાળા મામ કાશી બાવરવતા હો તો પન્ન સારી રીતે ચાલે છે. હાલ ૪૦ છોકરા છોકરી છે लिखने पर उपदेशक भेननेका प्रबंध भी द. म. અને આજુબાજુના આવે તે ૭૦ થાય તેમ છે પણ બીજો માસ્તર રાખવાની જરૂર પડે પણ ગ્રેજ जैन सभाने मभी किया है । इसके मंत्री डॉ. ભ ઈ તો સાધારણ સ્થિતિના છે જેથી જે મુજબ ચમનમારૂ દુરુનઃ ફી, મિરાન હા૫૮, દેવલ, છાણી વગેરેમાં તીર્થક્ષેત્ર કમેટી તરફથી મદદ મીન હૈ મળે છે તે મુજબ ) માસિકની મદદ એક सभापति हुए-नीमचमें मालवा दि जैन માસ્તર માટે મળવાની જરૂર છે. આશા છે કે કમેટી એ પર ધ્યાન આપશેજ. વળી એ પાઠप्रांतिक શાળા માટે જે કોઈ સખી ગૃહસ્થ ૫૦૦૦) બાપે નિવારી રેટ વીરની રણ પ્રફળ થશે ! તે તેના નામથી સ્થાયી રૂપે પાઠશાળા ચાલી ડાદર-થી મોડાસીયા ફતેહચંદભાઈ તારા શકે. અને ધાર્મિક ને વ્યવહારી બધીજ કેળવણી ચંદ લખી જણાવે છે કે હું તા૦ ૮-૩-૨૪ અપાય છે. વળી હું છાણી, નવાગામ ને બાવલા બાવલવાડાની પાઠશાળાની તપાસ અર્થે ગયો વાડાની પાઠશાળા અને ઘોડાદર ગયો હતો ત્યાં હતા, જ્યાં ૫૫ બાળકો ભણે છે. એક સભા કરી ધર્માત્મા ઉત્સાહી શ્રાવક મોડાસીયા રચંદ તારાઉપદેશ આપવાથી સંધિવી વીરચંદભાઈએ ૧૦)ની ચંદભાઇને મળ્યો. એ ભાઈ એ ત્રણે પાઠશાળાના ભંડાર પેટી દેરાસરમાં ભેટ મુકી, છોકરાઓને મંત્રી છે કે ઘણાજ ઉત્સાહથી ત્રણે પાઠશાળાએ જમણ આપ્યું તેમજ માંધી બહેન તથા સંકર નીભાવી રહ્યા છે પણ એ તદન સાધારણ હેતે ૧૧૫) ની છત્રી કારમાં ભેટ આપવા થિતિના છે. એમના ભાઈ ઉપચંદભાઈ હાથે પગે ઠરાવ્યું, તેમ કેટલાક વ્રત નિયમ પણ લેવાયા લુલા છે તેમને મુકી બીજે ધંધો કરી શકતા હતાં. નથી, જેથી જેની તુરથી આ ત્રણે પાઠશાલાએ દેડલની પાઠશાળાને મદદની જરૂર હોવાથી ચાલે છે તેમની તરફથી ૫) માસિક અને તીર્થલખાણ કર્યા કરવાથી હાલમાં તીર્થક્ષેત્ર કમેટી ક્ષેત્ર કમેટી તરફથી ૫) માસિકની મદદ મળે છે.. ૪) વાર્ષિક આપવાં કબુલ્યું છે. તા ૪-૩-૨૪ તેમના લુલા ભાદની સેવા બજાવી ધમ ધ્યાન કરી : નવાગામની પાઠશાળામાં પણ હું ગયો હતો. પાઠશાળાને સારી સ્થિતિમાં લાવશે એવી પૂર્ણ ત્યાં ૫૦ બાળક ભણે છે. પરીક્ષા લીધી. પરિણામ ઉમેદ છે. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ दिगंबर जैन. THE DIGAMBAR JAIN. नाना कलाभिर्विविधश्च तत्त्वैः सत्योपदेशैस्सुगवेषणाभिः । संबोधयत्पत्रमिदं प्रवर्तताम्, दैगम्बर जैन-समाज-मात्रम् ॥ वर्ष १७ वॉ. || 'वीर संवत् २४५०. फाल्गुन वि० सं० १९८०. ।। अंक ५ वां समाह का जी पढे लिखे भाइयों ने जो यह कार्य उठाया है वह उचित ही है। परिषदके स्थायी सभापति तो बेरिस्टर चम्पतरायनी हैं व इस मधिवेशनके सभापति रायसाहब बा.प्यारेलालजी वकील देहली गतांकके समाचारोंसे पाठकों को अच्छी तरह जो कि हमारे पुराने पढ़े लेखे, धर्मज्ञ व अंगरेजीके मालुम होगया होगा कि भी विद्वान हैं तथा जो आजकल बड़ी धारासमामें । मुजफ्फरनगर में आगामी चैत्र सुदी १३ प्रनाके एक सभासद हैं वे ही होंगे यह मानकर महा-मेला। से वैशाख वदी २ तक किसको खुशी न होगी ? हमें याद है कि बा० मुजफ्फरनगरमें वेदी- प्यारेलालजी वकील इतने सीधे सादे हैं जो न प्रतिष्ठा के साथ भारत दि जैन परिषदका तो अपना चित्र प्रकट होना चाहते हैं और न प्रथम अधिवेशन होनेवाला है और विशेष किसी सभाके सभापति बनना चाहते हैं उन्होंने खुशीके समाचार यह भी मिले हैं कि इस मौके-. इसवार ही सभापतिका स्थान स्वीकार किया है। पर वहां भारत दि. जैन महिला परिषद् का भी इससे आप जैसे अनुभवी विचारशील अनन्य देश१३ वां वार्षिक अधिवेशन धूमधामसे होगा। व जातिभक्त अगुएके अधिपतित्वमें परिषद्का इस महामेले का समय अतीव निकट है इसलिये प्रथम अधिवेशन यशस्वी होने की पूर्ण उम्मेद है। माईयों व बहिनोंको तुर्त ही मुजफ्फरनगर रवाना महिला परिषद के सभापति भी दानशीला श्रीमती होनाना चाहिये । परिषद्के इतिहाप्लसे हमारे बेसरबाईनी बड़वाहा, जिन्होंने विद्यादान में हमारों पाठक परिचित ही होंगे कि इसकी स्थापना रुपये मानवक खर्च किये हैं तथा जो बड़ी महासमाके गत देहली अधिवेशनके दिनों में धर्मात्मा हैं, वे होंगे, इससे महिला परिषद व हमारे विद्वान पढ़े लिखे महाशयोंने जैन समाज व उसके पत्र ' महिलादर्श' की विशेष उन्नति धर्मकी विशेष सेवा व उन्नति करने के लिये की थी। होनेकी भी इस अधिवेशनमें पूर्ण उम्मेद है। महासभा तथा जैनगमटकी स्थिति देखते हुए अंग्रे. इस मौकेपर इस्टरकी छुट्टीके दिन भाजानेसे Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगम्बर जैन | [ वर्ष १७. पूर्णरूपसे नहीं हुई है इसलिये अब तो हमारा कर्तव्य है कि हम इस वारके महावीर जयंती दिवसको तो इस रूपसे मनावें कि इसकी छाप अन्य मतपर भी पड़े। ऐसा करने के लिये इस दिनका हमारा कार्यक्रम इस प्रकार होना चाहिये(१) गृह, मंदिरों, व दुकानोंपर सजावट करनी चाहिये २] सभी अंगरेजी पढ़े लिखे वकील बैरिस्टरों तथा नौकरीवाले भाइयों को इस प्रतिष्ठा अधिवेशनोंके लाभ लेनेका अमूल्य अवसर आपहुंचा है जिसको न चूकना चाहिये । पूज्य ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजी इस मौकेपर ( पानीपत के मेले में होकर ) यहां अवश्य पधारेंगे तथा बहुत करके हम भी नीमच होकर यहां जावेंगे इस लिये आगामी अंक मुजफ्फरनगर के समाचार सहित ही प्रकट होगा । * * गतांकमें तो हम स्मरण कराचुके हैं और फिर भी पाठकोंको याद महावीर जयंती दिलाते हैं कि हमारे उत्सव । अंतिम तीर्थंकर श्री महावीर प्रभुकी जन्म तिथि - जयंती आगामी चैत्र सुदी १६ को अभी ही आती है इसलिये इस पुण्य दिनको प्रत्येक जैनी भाई हरएक स्थान पर जहांतक हो एक बड़े भारी त्यौहार रूप में मनायें । अन्य धर्मियोंकी जन्माष्टमी, रामनवमी आदि जयंतीपर्व कितने सार्वजनिक प्रचलित हैं कि उनकी सार्वजनिक छुट्टी सरकारकी ओर से भी रहती है, परंतु जैनोंका ही दुर्भाग्य है कि उनकी महावीर जयंतीका परम पुण्यवंत दिन जाहिर त्यौहाररूपसे नहीं माना जाता इसमें खास दोष तो हमारा ही है । क्यों कि बहुत वर्षो तक तो हम महावीर जयंती पर्व 1 मनाना मूल ही गये और अब आठ दश वर्षसे पवित्र काश्मीरी केशर मनाने लगे हैं, परंतु वह जिस बृहतरूपसे मनाया क' भाव जाना चाहिये, नहीं मनाया जाता जिससे ही (३) फी तोला है । इस पर्वकी व्यापकता अन्य समाजों में व सरकार में मैनेजर- दि० जैन पुस्तकालय - सूरत । (२) हरएक मंदिर में सुबह महावीर पूजन "होकर महावीरचरित्र शास्त्र सभामें सुनना चाहिये। (३) गृहपर इस दिनको लग्नशादी के दिनसे भी पवित्र दिन मानना चाहिये । (५) शामको हरएक ग्राम व नगर में बड़ी भारी आमसभा करके महावीर जयंति उत्सव मनाना चाहिये जिसमें तीनों सम्प्रदाय के जैनी भाइयोंको तो क्या, परन्तु शहर के तमाम धर्मके भाइयों व सरकारी ओफिसरोंको भी आमंत्रण करके बुलाना चाहिये व उसमें महावीर जीवन और हमारा कर्तव्यपर हमारे विद्वानोंके व्याख्यान कराने चाहिये तथा महावीर जयंती दिन पब्लिक होली डे ( जाहिर त्यौहार ) गवर्नमेंट द्वारा माना जावे ऐसा प्रस्ताव भी करना चाहिये । हम समझते हैं कि यदि हम इस विषय में जोरशोरसे आंदोलन जारी रखेंगे तो भविष्य में हमारा महावीर जयंती दिन सार्वजनिक प्रसिद्धि में आ जायगा । आशा है हमारे पाठक इस निवेदनपर अवश्य ध्यान देवेंगे । Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ५ ] 'दिगम्बर जैन । OMeasesamasalaNA मुजफ्फरनगर में मेला व सभाएंजैन समाचारावलि। गतांकमें प्रकट किये अनुसार मुजफ्फरनगरमें आगामी चैत्र सुदी १३ से वैशाख वदी २ ता. १७ से २१ अप्रैल तक ला. होशियारसिंह पाना भेजाभा विशेषता-भला सु समतप्रसादजीकी ओरसे वेदी प्रतिष्ठा उत्सव ૧૩ પર સિદ્ધક્ષેત્ર શ્રી પાવાગઢ પર ભરાયેલા बड़े भारी समारोहके साथ होगा व उसके વાર્ષિક મેળાના સંબંધમાં શેઠ લાલચંદ કહાનદાસ પ્રબંધકર્તા લખી જણાવે છે કે મેળા સમયે साथ २ हमारी भारतवर्षीय दि० जैन जय मि सुधा सा मुख छ ज्या ४॥ परिषद जिप्तकी कि स्थापना गत वर्ष देहभावनारने ५५ सुभीता.९६१उने ५७७५२था लीमें महाप्तभाके समय हुई थी, उसका प्रथम ती मते पान (मातुं) सय छ. मा वार्षिक अधिवेशन चैत्र सुदी १४-१५ व वदी વષે ઘાથજના લલ્લુભાઈ દેવચંદ તરફથી અપાયું हेतु २ सर यामे सर्वत्र १ को देहली निवासी रायसाहब लाला प्यारे मधु पाप्यु तु. २१ सिम लालनी जैन वकील (मेम्बर, बडी धारातमा)के ४२३॥ भाटे १००१) युनीसा मा पासय सभापतित्वमें होगा । तथा भारतवर्षीय दि. नारयभाधना २१२यार्थी, १००१) Wate in मैन महिला परिषद" का १३ वां वार्षिक દાસ જળ ચુ લાલ વગેરેના સ્મરણથ, તથા पर अधिवेशन भी चैत्र सुदी १३-१४ को बडवाहा ૫૦૧) પારવતીબાઈ જળના સ્મરણાર્થ એમ ૨૫૦૩). मराया, ना व्यायाम या ४२. निवासी दानशीला श्रीमती बेप्तरबाईनीके सभापण धर्मशालामा श. पाना छानदार ने, पतित्वमें होगा। इसके लिये स्वागतकारिणी मायावती [१५॥ परी रस्तुमा प्रेमान कमेटी नियुक्त हुई है जिसके सभापति ला. દાસે દરેકે ૨૫૧) આપી એક એક ઓરડીમાં बलवीरचंद्र जैन वकील तथा मंत्री लाला पद्मपનામ લખાવ્યું છે. હજુ ૧૪ કોઠરી બાકી છે, माट नाम समावु ाय त सपा साद मैनी नियुक्त हुए हैं । स्वयंसेवकों की एक शे. १४॥ ५६३५२ धायt dit महिना सेना भी सेवाके लिये तैयार हुई है। ठहरनेके २ ४२वानी १३२ छ रे भाटे आशरे लिये डेर आदिका इन्तजाम हो गया है तथा परि૧૫૦૦) ની આવશ્યકતા હોવાથી આ વખતે के लिये खास मकग मंडा भी बनगया है। અપીલ કરવાથી રૂ. ૧૬૮૯ હિંદુસ્તાનના યાત્રી मामाथी सराय। छ, मा ५७५) २ त इस मौकेपर ऐ० पन्नालाल मी महाराज, ब. લાલગઢવાળાની,૩૫૫) નાગોરવાળાના ને ૫૬૮) તે સીટ यरे ना छे. १५ सायdiनी न्या. पं० माणिकचंदनी मोरेना, बेरिस्टर जुग१३२ छे. मंदरलाल नी जज, बेरिस्टर चम्पतराय नी, बा. અમદાવાદની પ્રે.મોદિર જેન ડિગમાં अजितप्रसादनी वकील भादि कई त्यागी व કૃપાબાઈ સ્મારક મંડળને ત્રીજે વાર્ષિક મેળાવડે પ્રસિદ્ધ દેશનેતા કાલેલકર કાકાના પ્રમુખપણું નીચે विद्वानोंके पधारनेकी पूर्ण संभावना है । सारांश ચૈત્ર સુદ ૨ ને દિને થયો હતો. कि प्रतिष्ठाके साथ२ परिषदोंके लिये स्वागत Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगम्बर जैन । कमेटी हरएक प्रकार की तैयारी कर रही है इससे परिषदका कार्य सुव्यवस्थापूर्वक होनेकी उम्मेद है मुजफ्फरनगर देहली के पास ही N. W. रेल्वे पर खास स्टेशन है | यहांसे हस्तिनापुर क्षेत्र भी पास ही है । प्रथम जलेब सुदी १३ व अंतिम जलेब वदी २ को है । अपने जानेकी सुचना स्वागत मंत्रीको प्रथमसे देनी चाहिये इन दिनों में इस्टरकी छुट्टी होने से हमारे अंग्रेजी पढ़े लिखे भाइयोंको परिषद व प्रतिष्ठा में भाग लेनेका अमूल्य अवसर ही प्राप्त हुआ है । । पानीपत में पंजाब प्रा० दि० जैन सभाका अधिवेशन व रथयात्रा चैत्र सुदी १ से ९ तक होगा। यहां भी रा० सा० वा० प्यारेलालजी वकील सभापति होंगे । कुरावली में वेदी प्रतिष्ठा व दि० जैन धर्मप्रचारिणी सभाका दूसरा अधिवेशन वैशाख वदी ७ से १० तक होगा । कुरावली मैनपुरी स्टेशन से १४ मील है । सडक पक्की है व टांगे मोटरका भी प्रबंध है । - रेवाड़ी में प्रतिष्ठा महोत्सव होगया । १-६ हजार आदमी एकत्रित हुए थे । मोलवा दि० जैन प्रां सभा का २० वां अधिवेशन चैत्र सुदी ११-११ को नीमच छावनी में होगा तथा वेदी प्रतिष्ठा खुदी १३ को होगी । B. B. C. I. की छोटी काईन में नीमचका खास स्टेशन है । ठहरने, शुद्ध सामान आदिका सब उत्तम प्रबंध किया गया है। मनोहरथाना-(कोटा) में भी रथोत्सव, बेदी प्रतिष्ठा व तेरहद्वीप पूजन विधान चैत्र सुदी ६ से १३ तक है । [ वर्ष १७ धोंडराई (बीड –में लखनऊ ला सुगनचंद गंगवाल किसी बारात में गये थे वहां उपदेश देनेपर तीन भाईयोंने सेंकडेकी विक्री पीछे ) संस्थाओंको दान देनेका नियम लिया है । पारसनाथ- पोस्टओफिसका नाम बदलनेका समाचार गतांक में प्रकट किया था उसके लिये बंगाल, तीर्थक्षेत्र कमेटीके मंत्री छौटेलालजीके उद्योगसे 'पारसनाथ ' नाम ही कायम रहा है अर्थात् शिखरजीपर पत्रव्यवहार पोष्ट पारसनाथ नि हजारीबाग से ही कर सकते हैं । c परवार सभा के महामंत्री सिं० कुंवरसेननी के स्तीफा देनेपर बा० कस्तूरचंदजी वकील जबलपुर महामंत्री नियुक्त हुए हैं व कुंवरसेनजी उपसभापति बनाये गये हैं । पागल कुत्ते के काटेका इलाज- इंदौ रके सेठ हुकमचंदजीके जैन औषधालय में उत्तम रीतिसे होनेका प्रबन्ध हुआ है। वहां होस्पिटलका ( रहने का प्रबन्ध) भी है । संयुक्त प्रांतिक सभा में प्रस्तावअलाहाबाद में सं० प्र० दि०जैन सभाका वार्षिकोरसव का हुलसरायजी सहारनपुर के सभापतित्वमें हुआ था जिसमें इस प्रकार १९ प्रस्ताव पास हुए हैं- (१) जम्बूप्रसादजी, शिवचरणकालनी, घ० ज्ञानानन्दजी, न्या० दि० पं० पन्नालालजी, रा० ब० मेवारामजी आदिकी मृत्युके लिये शोक, (२) कोलारस नरेशको उचित न्यायके लिये धन्यवाद, (३) कोलारस जनताको धार्मिक दृढ़ताके लिये धन्यवाद, ( 8 ) संयुक्त प्रां०के दि० जैनोंकी एक डायरेक्टरी Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगम्बर जैन | अंक 4 ] तैयार की जाय जिसके लिये बा० शिवचरन लालजी जसवंतनगरकी मंत्रीपद पर नियुक्ति, (१) सभाका प्रचार करनेके लिये डेप्यूटेशनकी नियुक्ति, (६) दशलक्षण पर्व में सं० प्र० • सरकारी कार्यालयोंमें जैन कर्मचारियोंको १० बजे से १ बजेतक छुट्टी दीनाय तथा चैत्र सुद १२ (महावीर जयंती को सरकारी कार्यालय बंद रक्खे जांय, (७) हतांतके प्राचीन मंदिरजीसे प्रतिमाएं उठा ली गई हैं वहांका विशाल मंदिर अपने कब्जे में रखकर प्रतिमाओंके विवरणका पत्थर वहां लगवाया जाय, (८) कन्याविक्रय रोकनेका पूर्ण उद्योग किया जाय, (९) लखन उमें जैन छात्रालय बनाने के उद्योगके लिये कमेटी की नियुक्ति, (१०) हरएक मंदिर में शास्त्रसभा नित्य हो, (११) वर्तमान बिगडी हुई पद्धतिके जैन नाटक बन्द हों, (१२) बोलपुरके शांतिनिकेतन में जैनधर्मकी शिक्षा के लिये एक जैन विद्वानकी नियुक्ति की आवश्यक्ता (१३) जन जनसंख्याकी घटीके कारणोंपर विचार करने के लिये कमेटीकी नियुक्ति, (१४) हिंदू विश्वविद्यालय- काशी में जैन ग्रन्थों का पठनक्रम संतोषपद है या नहीं उसकी जांचके लिये कमेटीकी नियुक्ति, (१५) पेंड में जैन मूर्तिको जखयादेव मानकर वहां चली हिंसा होती है इसके रोकने के लिये कमेटोकी नियुक्ति, (१६) ला• देवीसह यमी, बार चंपतरायनी, बा० अनितप्रसादनी, का० रूपचंदनी, ब० सीतलप्रसादनीको धर्म व जाति-सेवा के लिये धन्यवाद, (१७) चैत्र सु० १ सोनागिर उपसर्ग निवारण दिन माना जाय । (१८) ला० [ जम्बूप्रसादजीके स्मारकका १ लाख रु० तीर्थरक्षा फंडके लिये एकत्रित करनेके लिये डेप्यूटेशनकी नियुक्ति, व बंगाल, सं० प्रांत, राजपूताना, मध्य प्रांत व बम्बई प्रांतसे वीस २ हजार रु इकट्ठे करने का ठहराव (१९) नवीन प्रबंध कमेटीका चुनाव | घोर हिंसा बचानेका उद्योग-सुरादाबादके पास काशीपुर में बालसुंदरी देवीपर गत नौरात्रिपर जीवदया प्र० सभा (आगरा) के मंत्री पं० बाबूरामजीके उद्योगसे एक भी जीवकी हिंसा नहीं हुई है । अब यहां चैत्र सुदी २ से फिर वार्षिक मेला भर रहा है जिस समय १५०० पाडे बकरे की धर्म के दान मे क्रूरता से हिंसा होती है उसको बंद कराने के लिये डेप्यूटेशन लेकर बाबूराम जी गये हुए हैं । होसुर - (बेलगाम) में चैत्र सुदी ९ से १९ तक पंचकल्याणकोत्सव तथा रत्नत्रय संवर्धक सभाका नैमित्तिक अधिवेशन होगा | केशलोंच व क्षुल्लक - बाहुबली पहाड (दक्षिण) पर मुनि श्री शांतिसागरनी (दक्षिण) ने फाल्गुन मासमें केशलोंच किया था तब मुनिश्रीके उपदेश से नवीन ब्रह्मचारी खुशाल - चंदनो (नांदगांववाले) ने क्षुल्लक पदवी धारण करली है । राजगिर - में श्वेतांवरियोंने नया झगडा उपस्थित करके हमारेवर दीवानी दावा दायर किया है । शिखरराज- का जो प्रथम पट्टा बिहारके ले० गवर्नर फ्रेझरसाहब दि० जैनोंको दे गये ये व हमने ९००००) डिपोशीट रखे थे बह Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगम्बर जैन अंक ] पट्टा वाइसराय लोर्ड मिन्टो रद्द कर गये थे सोनागिर--उपसर्ग निवारणके लिये चैत्र उसकी अपील प्रिवी कौ सेल ( विलायत ) में सुदी १को कई स्थानोंपर पूजन करके उपवास वर्षोंसे चलती थी वह अपील विलायतमें रद्द किया गया था। सोनागिरके सब मंदिरोंपर हो गई है। अभी इनकप्तन केस व श्वे० का अब कमाड हो गये हैं। पट्टा (वेचाण) रद्द करने का केस चल रहा है। उदैपुर-में पार्श्वनाथ दि. जैन विद्यालयका तथा पूजा केसमें तो हमारी ही फतह हुई है। वार्षिकोत्सव चैत्र वदी १२-१३ को होगया। रांची में गत ता. २१ से इंककसन केस चलू ८ वर्षतक रहकर अध्ययन करें ऐसे छात्रोंकी हुआ है। यहां आवश्यकता है। महावीरजी-तीर्थ का मेला चैत्रसुदी १५ अलीगढ़ में भी चैत्र सुदी १३ पर पंचको होता है वहांकी व्यवस्था सुधारने के लिये कल्याणक प्रतिष्ठा, जीवरक्षिणी सभा तथा इसवार वहां चैत्र सुदी १४ को खासर जैनोंकी पल बड़वाह-में बेसरबाई कन्या पठशालाका एक मीटिंग होगी तथा हमारी तीर्थक्षेत्र कमे. वार्षिकोत्सव गत मातमें हो गया। टीका दफ्तर वहां जायगा व कमेटी में ही भंडार __ केकडीमें अनेक संस्थाएं-केकडीमें पं. देनेका प्रबंध किया जायगा । धन्नालालगी पाटनी व सेठ लखमीचंदजी सेठी न. मुनि श्री चंद्रमागरजी- का शरीर सीराबादके द्रव्यव्ययसे उदासीनाश्रम, पाठशाला, भब स्वस्थ होता जाता है । माप अभी दो माह बोर्डिग, जैन सरस्वतीभवन व औषधालय खुला सिद्धवरकूट क्षेत्रमें ही निवाप्त करेंगे । तथा करग । तथा है निप्तका संयुक्त नाम दि. जैन पारमार्थिक भाप वैशाख सुदी ५को केशलोंच करेंगे। संस्थाऐं केकड़ी (अजमेर) रखा है। लाभ लेनेवाले अष्टानिकामें बड़ा दान-सुनानगढ़में उदासीन व बोर्डिंगमें रहनेवाले छात्र मंत्रीके मष्टानिकापर्वमें ढाईद्वीप पूजन भी किया गया नामसे पत्र व्यवहार करें। था तथा सेठ जुहारमलनी पांड्याके सुपुत्र दिल- भिलवडी-में चैत्र सुदी ५-६-७को श्री सुखजीने ९ उपवास निर्विघ्नतासे किये थे। जिनसेनखामीका जयती उत्सव होगा व साथमें पारणाके दिन आपने ३२५१) का इस प्रकार द० म. जैन सभाका नैमितिक अधिवेशन होगा। दान किया व सात व्यसन तंबाकू आदिका अंतरीक्षजी में नया उपद्रव-श्री० चवरे यावज्जीव त्याग किया--३०००) मंदिरमें उप. वकील द्वारा समाचार मिले हैं कि श्वेतांबरियोंने करण, ५०) स्था. पाठशाला, ५०) बडनगर अंतरीक्षजी क्षेत्रके दि० मुनीम, पूनारीके साथ अनाथालय, ५०) लाडनू मंदिर, पचीस २ रु० बासीमकी कोर्ट में एक फौनदारी दावा किया है मन्य चार संस्थाओंको। जिप्तकी सुनाई गत ता. ४ को थी। १४४वीं स्या महाविद्यालय-काशीका वार्षि- कलमके अनुसार हुकम निकालने की भी श्वेने कोत्सव आगामी वैशाख वदी १४ को होगा। सु. पुलीसको अरजी की है। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ me अंक .] दिगम्बर जैन । महावीरजीके मेलेके-लिये प्रतिवर्षकी किया नावे, ८) कितनी ही सरकारी पुस्तकों में मांति इस वर्ष भी ता. १४ से २५ अप्रैल जैनधर्म संबंधी अनेक प्रसंबंद्ध भूलें छप गई है तक नागदा एक्सप्रेस ट्रेन पटोंदा महाबीरोड उसको दूर कराने का पत्रव्यवहार करने के लिये स्टेशनपर ठहरेंगी इस लिये यात्रीगण सीधे ५ महाशयोंकी नियुक्ति, ९) सभ की ओरसे पटोंदा महावीररोडकी ही टिकट लेवें। सांगली जैन बोर्डिगमें एक भैन ग्रन्थालय सर दक्षिण महाराष्ट्र जैन सभा-का २६ स्वतिभवन खोला जावे, (१०) समानमें अनेक वां अधिवेशन हबली में गत माममें मुनि श्री व्यापारी धर्मादा रकम अलग निकालकर अपने जिनविनयनी (श्वे०) के सभापतित्वमें हआ था यहां ही जमा रखकर उसका उपयोग नहीं करते जिसमें इस मतलबके १३ प्रस्ताव पाप्त हुए हैं- हैं इस लिये धर्मादा रकम ज्ञानदानमें तुर्त ही (१) भादगोंडा पाटील, सेठ सखाराम नेमचंद, खुद अथवा अन संस्था द्वारा खर्च करनी चाहिये, सेठ रामचंद नाथा, सेठ गंगाराम नाथा, कुमार (११) श्वेतांवर, दिगंबर, स्थानकवासी जैन सावंतप्पा सांगली, के वियोगका शोक (1) दादा समानमें परस्पर ऐक्य होने की आवश्यक्ता है निनापा आष्टेने १०००० व गप्पा इसलिये दिगंबरी श्वेतांबरीमें धार्मिक सामाजिक शांतप्पा सांगलीने १२०००) मैन विद्यार्थियोंअघडे खडे करनेवालेका निषेध करते हैं व ऐक्य को स्कोलीप देने के लिये निकाले हैं उनको ध. करनेकी कोशिश करने के लिये-जिनविजयजी. न्यवाद, (३) द. म. प्रांतसे विलायत आकर तिलकविजयमी, ल्ढे वकील, चौगले वकील, वेरिस्टर होकर प्रथम भानेवाले श्रीकांत पत्रावले र हीराचंद नेमचंद दोशी, मोतीचंद व्होरा पूना, गोकाकको अभिनंदन, (४) हरएक ग्रामके जैन भाउ पाटील सांगली, सेठ ताराचंद नवलचंद्र, बालक व बालिका पाठशाला नाकर शिक्षा लेवे चतुर पितांबर सांगली, करमसी खेतसी हबली, ऐसी व्यवस्था करना, ५) देशकी औद्योगिक बालूभाई पानाचंद पूना, शीवनी देवशी व पोप. स्थिति सुधारने के लिये स्वदेशी उद्योग धंदे टूलाल टलाल रायचंद शाह पूना ऐसे १३ महाशयोंकी शुरू करने व स्वदेशी वस्तु ही वापरनेकी सुचना नियुक्ति, (१२) जैन जनसंख्या कम होती (६) समाजकी अंतर्मातियोंमें परस्पर रोटी बेटी जाती है उसके लिये नीचे लिखे उपाय करने चाहिये-बाल विवाह बंद हो अथात कन्या व्यवहार किया जावे, (७) सभाकी जैन बोर्डि... १४ व वरकी आयु १९ वर्ष होनेपर ही गोंमें धर्म शिक्षा देने की व्यवस्था रखी गई है विवाह करें, वृद्ध विवाह बंद करें, अंतनोति. परंतु अंगरे नी पढ़नेवाले छात्रों के योग्य धार्मिक यों में विवाह करें, मैनेतरों में जैन धर्म का प्रसार शिक्षाकी खास पुस्तकें तैयारकर प्रकट करने की करें, बहु विवाह बंद हो, कन्याविक्रय वडाका आवश्यकता है। वे न हो वहांतक अभी जो रिवान बंदहो, (१६) सिद्धांत ग्रन्थ श्री जयधवल पुस्तकें चलती हैं उससे काम लिया जावे तथा महाधवल प्रसिद्धि में लाने के लिये मुडविद्रिके पंच धार्मिक शिक्षण प्रचारके लिये उपदेशक नियुक्त व भट्टारकको विनति । Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगम्बर जैन । [ वर्ष १७ यंत्रके लिए खुलामा- हमारी सुचना- वरे नियत कर रक्खे हैं परन्तु वह महाशय नुसार उपयोगी यंत्र मंगानेको भनेक पत्र ॥ वरेके दिवस भी बहुत ही कम आते हैं । की टिकिट सहित गुजगती मराठी भाषाके लिखे (२) बहुधा मंदिरों में प्रक्षालके करने में भी हये हमारे पास माये हैं जो कि यहांपर पढ़े नितना समय लगाना चाहिए उससे कम समनहीं गये । हमारा सर्व भाइयों से निवेदन है यमें की जाती है। यह स्पष्ट प्रगट है कि कि ये सभी यंत्र विधि पूर्वक ताम्बेमें मढ़े गये जितनी जियादा प्रतिबिम्ब किसी वेदीमें विराहैं । मिस भाईको निम यंत्रकी आवश्यक्ता हो जमान होंगी उतना ही अधिक समय उनकी खुलासा लिखे कि कौनसा यंत्र भेना जावे। प्रक्षालमें लगेगा। एक यंत्रका पैकिंग आदि डेढ़ आना ॥ खर्च रहता है । डाक खर्च न्यारा है । मो भाई ___ (३) बहुधा स्थानोंपर जैनियोंकी बहु संख्या अधिक यंत्र मंगाना चाहैं वे रजिस्टरी खर्च होते हुए भी पूनन प्रक्षालके लिए पंडित नौकर और पैकिंग खर्चके टिकट भेनकर अपना पता रखे जाते हैं। जिन अरहंत देवके दर्शन और पूजन करनेकी स्वर्ग लोकके इन्द्र भी अभिलाषा पोष्ट मिला आदि इसी नागरी भाषामें खुलासा करते हैं उनकी पूजन और प्रक्षाल नौरोसे लिखें । हमने परोपकार अर्थ और मिथ्यात्व हटाने अर्थ बड़े परिश्रमसे ये यंत्र तैयार किये हैं। कराना और माप न करना अत्यंत अनुचित पं. नियालाल जैन-पानीपत ( करनाल ) . वात है। प्रतिष्ठाओंकी भरमार-आनकल बिम्ब (४) जो सामग्री दर्शन और पूजन करते प्रतिष्ठाओं और पूनाओंकी पहिलेसे अधिक समय चलाई जा चुकी है (बजाए इसके कि चर्चा मालुम होती है और उनमें भाइयों का वह उस सामनोका हवन किया जावे या उसको संख्या में एकत्र होना हर्षकी बात है मगर उस के तालाब में डालदिया जावे या किप्ती अलहदी साथ यह निहायत आवश्यक और उपयोगी जगह पर ड ल दिया जावे) वह सामग्री मंदिरके है कि मंदिरोंकी से बाके लिए जो हमारे कर्तव्य व्यासों को वेतनके रूपमें दी जाती है क्योंकि हैं उनसे हम बेखवर न रहे। अगरचे सब मिस अल्प वेतनपर व्याप्तलोग मंदिरों में नौकर जगह ऐसा नहीं होता तोभी भारतवर्ष में रक्खे जाते हैं यदि उनको यह सामग्री न दी बहुतसी जगह पर पूजनपक्षाल आदि सेवाके जावे तो वह इस वेतनपर नौकरी करना कदा. सम्बंध में कुछ उत्साह कम होता जाता है जिसके चित् स्वीकार न करेग! कुछ कारण नीचे लिखे जाते हैं-- __मेरी यह प्रार्थना है कि जैनधर्मके प्रेमी (१) इपवक्त भारतवर्ष में बहुतसे ऐसे जैन महानुभाव मंदिरों की सेवामें जहां इस प्रकारकी मंदिर मिलेगें जिनमें पूजन नियम पूर्वक नित्य त्रुटियां पावें उनको दूर करनेका पूर्ण प्रकारसे नहीं होती। बहुतसी जगहपर लोगोंने पूननके यत्न करें। इन्द्रलाल-देहली। Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ५ ] दिगम्बर जैन । व्याख्यान-- बेरिस्टर चंपरायजी, स्वागत सभापति सं० प्र० दि० जैन सभा अधिवेशन-प्रयाग। सज्जनंगण उपस्थित बन्धुओ, शुष्मना नाड़ियों के संगम स्वरूपको अपने रूप ___माजका दिन मेरे लिए बड़ा हर्षप्रद है कि द्वारा दर्शाती है जिसके मज्जन करनेका भाव मुझे जैन होस्टेल इलाहाबादकी ओरसे यु० केवल मूलाधार चक्रमें ध्यान द्वारा स्नान करपी. जैन सभाके स्वागत करनेका सौभाग्य प्राप्त नेका है ताकि विषयवासना शांत होकर कर्मलेप हुआ है । स्वागतका सम्बन्ध चार बातोंसे हुमा मात्मासे धुलकर छूट जाय । अतः जिस स्थान करता है । (१) स्थान (२) काल अर्थात समय पर स्वागत मनाया जा रहा है वह अपने महा(३) भागन्तुक (जिसका स्वागत किया जाय) रम्यकी अपेक्षासे निराली ही छवि रखता है। और (१) स्वागत करनेवाला । यहाँपर चारों दूसरी बात स्वागतके कालसे सम्बन्ध रखती मङ्ग स्वागतके श्रेष्ठतम हैं। है। यह स्वयंसिद्ध है कि कोई अवप्तर संसाप्रथम स्थानकी ओर ध्यान कीनिये जो प्रया- रमें देवाधिदेव श्री १००८ भगवान महन्तदेगरानके नामसे जगतप्रसिद्ध है। वर्तमान ब प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपमें विराजमान होनेके भवसर्पिणीमें प्रथम पुज्य क्षेत्र प्रयागरान ही है। पयसे अधिक शुभ और मंगलकारी नहीं हो इसी क्षेत्रमें प्रथम पूज्य तीर्थकर भगवान श्रीता है । मेरे वक्तव्यका अवसर भी ऐसे ही मादिनाथस्वामीने तप धारण किया था और य प्राप्त हुआ है कि जिस समय प्रत्यक्षमें इस प्रकार इसको सदैव कालके लिये पवित्रता- नहीं परन्तु परोक्षमें साक्षात् मिनेन्द्र देव का पात्र तथा पूज्य बना दिया। यहांकी त्रिवेणी सर्व रूपमें यहां विराजमान हैं। और चूंकि अर्थात् गङ्गा, यमुना, सरस्वतीका संगम साक्षात् म अवसर अर्हन्त भगवानकी वेदी प्रतिष्ठाका सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्रके संगमरूपो धारा है इसलिए सर्वाश और सर्व-देश मंगलमय प्रवाहकी और संकेत करता है मानो मोक्षमार्गको है। हमारे हिंदू भाइयोंको भी ऐसा शुभ अवस्पष्टतया दर्शा रहा है। यही संगम दुसरे सर वर्षों पीछे प्राप्त हुआ है कि अर्धकुम्भ पर्व अर्थमें हमारे हिन्दू भाइयों के मुख्य तीर्थस्थानों. अनुमानतः एक माससे भारम्भ है और अभी मेंसे एक है जिसके मज्जनके लिए देश-देशा- कुछ दिनों रहेगा । इसलिए समय भी अत्यन्त न्तरके यात्री एकत्रित होते हैं और स्नान शुभ और लाभदायक है। नमस्कार द्वारा आत्मिक पवित्रता और शुद्धताको तीसरी बात आगंतुकके गुणोंसे सम्बन्ध रखती प्राप्त करनेकी इच्छा प्रगट करते हैं । योगि है । सो जगत्में अहिंसात्मक धर्म सर्वश्रेष्ठ माने, योकी भाषामें यही त्रिवेणी इड़ा, पिङ्गला और गये हैं, उनमेसे वह जो अहिंसा व्रतका सर्व Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगम्बर जैन १० । अंश व सर्व देश पालन व प्रचार करे वहीं श्रम धर्म है । तथा जैनधर्मकी मूल शिक्षा ही "अहिंसा परमो धर्मः" है जिसके महत्वको स्थूल शब्दों द्वारा वर्णन करना असम्भव प्रतीत होता है । जिन महानुभावका स्वागत किया जा रहा है वह इसी श्रेष्ठतम अर्थात् जैन धर्मके अनुयायी यू० पी० जैनसभा के सभासद हैं। जैन धर्मके विषय में मेरा यह विचार है कि प्राचीन समय में चारित्र सभ्यता, विद्या कार्यकुशलता आदि उत्तम गुणोंमें इसके अनुयायि योंसे बढ़कर और कोई मनुष्य नहीं हुए हैं । इसलिए अब यह आवश्यकता नहीं जान पड़ती . कि स्वागत किये जानेवाली सभा या सभासदोंका अधिक समय तक गुणगान किया जाय क्योंकि कस्तूरी स्वयं अपनी सुगंध द्वारा पहिचान ली जाती है । चौथी बात सेवक अर्थात स्वागत करनेवालेके स्वरूप व सुभावसे सम्बन्ध रखती है। सो जैन होस्टेल विनीत विद्यार्थियोंका समूह है जो धीमान श्रीमानों घनाढ्योंकी संज्ञा में नहीं आते हैं और जिनका महत्व केवळ विद्यार्थीपन (विद्योपार्जन ) पर ही सीमित है । परन्तु यह सेवक साधारण अशिक्षित विद्यार्थी भी नहीं हैं । इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो इसके निकट पहुंच गये हैं कि बड़े बड़े विद्वज्जनोंकी समामें बराबरीका आसन ग्रहण करें । यह छात्र जैनत्वरंग से पूर्णतया रंगे हुये हैं और उत्साहकी उमंगें इनके दिलों में उठ रही हैं। मुझे विश्वास है कि इनमें से कुछ अवश्य ही अपने समय में प्रभावशाली बुद्धिमत्ता को प्रकट करेंगे । स्वर्गीय [ वर्ष १७ कुमार देवेन्द्रप्रसादनीके, जिनका सम्बन्ध इस होस्टेल कुछ समय तक रहा है, शुभ और सुभग कार्य कुशलतामयी जीवनीकी छाप इनके कोमल ग्राह्य हृदयपर अंकित है । इनके उत्साहको देखकर स्वर्गीय लाला सुमेरचंद साहबकी धर्मपत्नी श्रीमती झपोळाकुंवरजीने / अपने पतिके स्मरणार्थ बहुतसा धन व्यय करके १॥ वर्ष हुए इस होस्टेलको स्थापित किया और उस समयसे निरन्तर इस प्रयत्न में संलग्न रहती हैं कि इस संस्था तथा यहांके छात्रोंकी, अद्वितीय उन्नति हो जिससे इतने कम सम यमें यह होस्टल सब होस्टकोंकी अपेक्षा प्रसिद्ध हो गया है और इसकी उन्नतिकी प्रशंसा सर्व दर्शकों तथा गवर्नमेंट और विश्व विद्यालयके अधिकारियोंने की है । गवर्नमेंट की सहायता से इसी मास में विजली की रोशनी भी तमाम होस्टे लमें लग गई है । लेक्चर ( व्याख्यान ) का बड़ा हाल और मनोहर जिन चैत्यालय जिसकी वेदीप्रतिष्ठाका उत्सव मनानेके लिये सर्व सज्जन इस समय एकत्रित हुए हैं। इस साल श्रीमती संस्थापिकाजीकी विशेष उदारता और दानश क्तिकी साक्षी है। जिनागममें चार प्रकारके दान कहे गये हैं । विद्या दान इन सबमें श्रेष्ठ है जिसका फल इतना महान है कि वाणी द्वारा | वर्णन नहीं हो सकता है। इसीका एक छोटासा उदाहरण यह जैन होस्टेल आपके समक्ष है । हाँ ! धन्य और कोटिशः धन्य उस दानको है जो पात्रको मूर्खसे ज्ञानी बनावे और मोक्ष लाभके सन्मुख करदे । आशा है कि हमारी पुण्यवान संस्थापिकाजीका अनुकरण हमारे अन्य Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ५] दिगम्बर जैन भाई बहिनकर अपने आपको उस अपूर्व कीर्ति दीमिये । नितनी नई खोने गत एक सहस्र और यशके पात्र बनावेंगे जो इस समय श्रीम- वर्षों के भीतर हुई हैं वह सब भारतवर्षके बाहर, तीनीको प्राप्त हैं। यहांपर यह भी प्रगटकर इङ्गलिस्तान और अन्य देशों में ही हुई हैं और देना आवश्यकीय है कि वर्तमान समयके उप- उन्हीं देशोंकी भाषाओं में उनका वर्णन है। स्थित सज्जनोंके निमंत्रण तथा व्ययका सौभाग्य इस अंग्रेजी भाषाके ज्ञाता करीब करीब समस्त भी उक्त महोदयाको ही प्राप्त है। संसारमें मिलते हैं जिसके कारण इसके द्वारा इस सिलसिले में मैं बाबू शिवचरणलाल वकी- प्रत्येक बातका प्रचार सुलभतासे समस्त देशोंमें ककी अचानक व अकाल मृत्युपर शोक प्रकट हो सकता है । इसके अतिरिक्त अंग्रेजी भाषा किये विना नहीं रह सकता हूँ। वह इस होस्टे- विज्ञानकी जीती जागती भाषा है और समस्त कके भूतपूर्व प्रेसीडेन्ट थे। उनकी हार्दिक विद्याओं और कला-कौशल इत्यादिका भण्डार भावना सदा इस होस्टेलके उन्नतिकी ही रही भी इसी भाषामें ही है। फिर अंग्रेजी जवान निसका वे उत्तमताके साथ प्रयत्न अपने जीवन राज्य भाषा भी है इससे इसका प्रचार प्रतिदिन कालमें करते रहे और जो सौंदर्य व सुयोग्यता उन्नतिपर है । जब तक भारतवर्षका सम्बन्ध यहांपर दृष्टिगोचर है वह उन्हीके निःस्वार्थ अंग्रेज जातिसे है तब तक यह उनकी भाषा परिश्रम का फलस्वरूप है । आशा है कि उन भी अवश्य उन्नति करती रहेगी। इसलिए इस महोदयकी आत्मा निन पदको शीघ्र ग्रहण भाषाके अतिरिक्त और कोई भाषा इप्त समय करेगी। ____ भारतवर्षके लिये राज और सांसारिक विद्या इसके साथ मुझे शिक्षाप्रणाली विषयपर तथा कार्यकुशलतामें प्रतिष्ठा प्राप्तिका द्वार नहीं विशेष यह कहना है कि कुछ सज्जनोंका यह है। राज्य नियम अर्थात् कानून भी अंगरेनी विचार है कि अगरेजी शिक्षा हानिकारक भाषामें ही बनाए व लिखे जाते हैं। और त्याज्य ही है तथा अब हमको उचित है क्या उर्दू, हिंदी तथा संस्कृत भाषायें वर्वकि हम अपने बच्चोंको ऐसी शिक्षासे हटाकर मान कालमें अंगरेनोकी समताकर सकती हैं ? केवल संस्कृतकी शिक्षा दिलावें । परन्तु मेरे मैं विचार द्वारा इस कहनेपर बाध्य होता हूँ विचारसे यह एक भ्रमपूर्ण और नितान्त अयो. कि नहीं ! कारण कि उर्दू भाषा तो साइन्स, ग्य विचार है जो उन व्यक्तियों के हृदयों में जो फिलासफी (विज्ञान) और कानून तीनों हीसे यहांके छात्रोंसे - जानकारी रखते हैं कदापि खाली है मगर हिंदी केवल फिलासफीके लिये उत्पन्न नहीं हो सकता । मैं कुछ विस्तारके अवश्य मौजूं है । साइन्स व साइटिफिक विद्या. साथ इस विषयपर समालोचना करूंगा जिसके ध्ययनके लिये कुछ महानुभावोंने उर्दू और लिये मैं आशा करता हूँ कि आप मुझ को क्षमा हिंदी भाषाओं के सुधारनेका भी प्रयत्न किया करेंगे । प्रथम अंग्रेनी भाषाकी ओर ध्यान परन्तु इस कार्यमें उनको कुछ अधिक सफलता Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२] दिनम्बर जैन । [ वर्ष १७ प्राप्त नहीं हुई । एक दफा कुछ कानूनी नजा- पढ़ाया जाता है । योरुपीय विद्याओं जौर हुनयरके अनुवाद भी उर्दू भाषामें छपे थे परन्तु संस्कृत भाषामें अनुवाद करना तो केवल समय उनका कुछ आदर नहीं हुआ और जहाँ तक और शक्तिका निरर्थक प्रयोग करना ही ठहरेगा, मुझे विदित है उनका छपना भी बिल्कुल दोइ क्योंकि उसके व्ययका तो कुछ ठिकाना ही नहीं हो गया है । साइन्समें अनुवादसे भी काम कितना अधिक हो, परन्तु यह भी नहीं कहा नहीं चलता, क्योंकि प्रथम तो साइन्सकी परि. जा सकता है कि बहुतसे मनुष्य इस प्रकारके भाषाके लिये इन भाषाओंमें सुयोग्य शब्द ना अनुवादोंसे लाभ उठा सकेंगे। साइन्स केवल नहीं मिलते हैं; दुसरे किस किस बातका रू। घरमें बैठकर पुस्तकों द्वारा ही सीखा सिखाया तक अनुवाद किया जाय । नित्यः नहीं जा सकता है। उसके प्राप्त करनेके लिए नवीन खोनें हुआ करती हैं और निरः विविध प्रकारके अनुभवों (Experiments)की सहस्रों पुस्तकें प्रकाशित होती रहती हैं। आवश्यकता है जो यन्त्रों की सहायतासे अंग्रेजी अनुवाद भी कहांसे आयेंगे। क्या अंगरे स्कूलों और कलिनों में ही कराये जा सकते हैं। भाषासे पूर्णतया जानकारी प्राप्त किये विना का यह भी नहीं हो सकता कि हम कहें कि व्यक्ति किसी पुस्तकका अनुवाद कर सकेगा ? सांसारिक विद्याओं, ज्ञान तथा हुनरोंको सीख अब संस्कृतको लीजिये, यह तो उर्दू हिन्दीसे कर ही क्या करेंगे, केवल संस्कृत विद्या ही भी अधिक इस समयमें साइन्सकी भाषा कह- निरन्तर पढ़ते रहें तो अच्छा है। अव्वल लानेके अयोग्य है। इसके पूर्ण ज्ञाता तो भारत. तो ऐसा होना ही असम्भव है; यदि यह मान वर्षमें अनुमानतः सौ दो सौसे अधिक प्राप्त न भी लिया जावे कि प्रत्येक व्यक्तिको हम होंगे। यह भाषा मादरी (निजी) ज़बान भी एक प्रस्तावके द्वारा इस बातपर बाध्य करदें नहीं है कि जो सुनने सुनाने ही से आ जावे। कि वह सब विद्याओं व हुन्नरोंको छोड़कर जितने ज्ञान व विद्यायें व कला-कौशल किलो केवल संस्कृत भाषामें ही पुस्तकें अध्ययन किया समयमें इस भाषामें थे वह सब अब प्रायः नष्ट करें तो इसका फल अवश्य यही होगा कि हो चुके हैं। केवल एक धर्मका विज्ञान शेष है हमारी लोकमें प्रतिष्ठा जाती रहेगी, क्योंकि सो वह बहुत कुछ लुप्त होचुका है । अब वह कार्यकुशलता व चातुर्यताके. कारण ही मनुष्य समय संस्कृत भाषाकी उन्नतिका बाकी नहीं रहा व जातियों की लोकमें प्रतिष्ठा हुआ करती है। जैसा कि श्रीनेमचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती तथा और इन्हींसे धनकी भी प्राप्ति होती है। श्रीसमन्तभद्राचार्य जैसे शास्त्रकारोंके समय में सांसारिक विद्याओं तथा कृतियों में कुशलता था। वर्तमानकालमें उनकी समताका कोई भी प्राप्त करना तो दूर रहा जब हम उनसे नितांत बुद्धिमान पैदा नहीं हुआ यद्यपि जैनियोंमें भी अनभिज्ञ हो जायँगे तो फिर हमारी लोकमें अब कई विद्यालय ऐसे हैं जिनमें सिद्धान्त प्रतिष्ठा किस प्रकार होगी और धन कहांसे Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ५] दिगम्बर जैन । मिलेगा ? बिना प्रतिष्ठाके धर्म पालना भी ने कतर डाले। जो ग्रंथ बच भी गये वह इसी दुस्तर होगा। कारण कि मान्यताहीनके धर्मका प्रकार कि उनकी पूना तो सम्भव हुई परन्तु कौन आदर करेगा ? गत सहस्र वषोंमें जो उनके अस्तित्वसे और कोई विशेष लाभ लोग बाधायें जैनियोंके सन्मुख आई वह इसी कार- नहीं उठा सके । जिन महाशयोंने नवीन ग्रन्थ णसे तो उत्पन्न हुई थीं कि लोग उन्हें व उनके लिखे वह भी एक या दो ही विषयों पर लिखें। धर्मको घृणाकी दृष्टिसे देखने लगे थे यहां तक जिन वाणी और शास्त्र ज्ञानकी महिमाका संकोच कि जैनी नास्तिक मान लिये गये । हिन्दुओंमें ही केवल गत १००० या १५०० वर्षों में तो यहां तक घृणाकी सीमा बढ़ गई कि उनमें नहीं हुमा परन्तु इसके पढ़ाने व समझानेका यह. कहावत प्रसिद्ध हो गई कि " यदि मत- ढंग पूर्वकालमें कुछ ऐसा अनोखा था कि अन्य वाला हाथी भी किसीको मारता हो तो जैन धर्मियोंके हृदयों पर धर्मकी श्रेष्ठताकी छाप मंदिरका आश्रय ग्रहण करने के स्थानपर मर पड़नेके स्थान पर यही बात अंकित होगई कि जाना अच्छा है।" यह किस समयका वृत्तांत जैनधर्म निकृष्ट है । वाह, किस उत्तमताके साथ है ? क्या उस समयका जब कि अंगरेजी पढ़े सर्वश्रेष्ठ सर्वोत्तम धर्मका प्रचार किया गया था। लोगोंने धर्मविरुद्ध तर्कणा करके अपने क्षुद्र किस खूबीसे धर्मकी रक्षा की गई थी। बजाय विचारोंको संसारमें फैला दिया था ? नहीं ! इसके कि धर्मका प्रभाव बढ़े वह प्रभावहीन वरन् उस समयका है जब कि अंगरेजी भाषाका हो गया। मैनी नास्तिक बुतपरस्त जगतमें प्रसिद्ध माविष्कार भारतवर्षकी भूमिपर नहीं हुआ था। हुये। तर्क वितर्कमें भी स्याद्वादका डंका कहीं वस्तुतः यह सिद्ध है कि गत समयमें जो घृणा कहीं तो अवश्य बना, परन्तु अधिकांश लोगोंने जैन धर्मके लिये लोगोंके हृदयोंमें उत्पन्न हो उसको भी पाखण्ड व झूठ ही समझा । क्या गई थी वह उन्हीं महानुभावोंकी बिद्या या यह जैन बुद्धिमानोंके समझानेकी त्रुटि नहीं थी? कृतियों का परिणाम हो सकती है जो संस्कृत सांसारिक ज्ञान तथा कलाकौशलकी ओर अथवा धर्मके रक्षकके स्वरूपमें उपस्थित ध्यान देते हुये खेद उत्पन्न होता है । जब कि पश्चिमी जातियां निद्राको त्याग दिया तथा गत एक सहस्र वर्षों की कारगुज़ारी पर यदि कलाकौशल अर्थात् हुनरों में उन्नति कर रही थी ध्यान दिया जाय जब कि अंग्रेन व अंग्रेजी हम लोग बराबर गहिरी निद्रामें अचेत होते भाषा भारतवर्षसे ७००। श्रीलकी दूरी पर थे जाते थे । भाविष्कार और खोज तो चीज ही तो नेत्रों में आंसू भर । । हैं। कितना धर्म और है। हमने तो जो कुछ विद्या और ज्ञान विज्ञानका नाश उस सर में हुआ। गंधहस्ती पूर्वजोंको ज्ञात थे उन्हें भी नष्ट कर दिया । महाभाष्य जैसे महान पूज्नग्रंथोंका लोप होगया। मैं यहां एक ही दृष्टांत पर संतोष करूंगा। सैकड़ों शास्त्र दीमकोंने चाट लिये, सहस्रों चूहों: जैन पुराणों के अवलोकनसे ज्ञात होता है कि होते हैं। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ] दिगम्बर जैन । [ वर्ष १७ महाभारतके समयमें धनुष विद्या एक वैज्ञानिक कि बाणमें से किसी प्रकारसे सर्प निकल निकलविभाग था। इसको शिष्य वर्षों गुरुओंसे सीखा कर मनुष्योंको लिपट जाते थे और फिर गरुड़ करते थे। एकएक बाणमें वह शक्ति थी कि पक्षी आनकर उन स निगल जाते थे। उसके द्वारा शत्रुओंकी समस्त सेनाको बांध इसी भांति और विद्याये और कलायें भी नष्ट सक्ते थे और इसी प्रकार उनको बँधी दशासे. हो गई हैं। मुक्त भी कर सकते थे | क्या यह लोग जो नियम यह है कि के लिये पूर्णतया वर्षों गुरुओंसे धनुषविद्या सीखा करते थे केवल धर्मका पालना और उसका रक्षा उसी समय निशाना लगाना ही सीखते थे ? नहीं, नहीं ! सम्भव है जब कि वह अपनी चतुरतासे अन्य निशाना लगाना कोई ऐसी कठिन बात नहीं पुरुषोंके हृदयोंपर अपने धर्मका प्रभाव डाल है जिसके सीखने के लिये किसी गुरुकी आब- सके ताकि उनके हृदयों में भी उसके धर्मकी श्यकता पड़े या जो वर्षों में भी न आवे। हालके श्रेष्ठता अंकित हो जाय । मनुष्यके हृदयमें यौरुपीय महा संग्रामके शस्त्रोंपर ध्यान देनेसे दूसरे धर्मके लिये आदर उसी समय उत्पन्न विदित होता है कि बाणविद्या में Chemistry होता है जब कि उसके नियम उसके मक्ष को भी बहुत कुछ दखल था। बाण इस प्रका- इस प्रकार दर्शाये जायं जिनको उसकी बुद्धि रका बनाया जाता था कि जिप्तमेंसे मालूम तुरन्त ग्रहण करले और जिन पर वह चारित्र. होता है कि एक प्रकारका माद्दा निकलकर या सोपानकी प्रारम्भिक पैड़ियोंमें पहनमें ही पदाफूटकर फैल जाता था और निस मनुष्यसे र्पण कर सके । उपदेश भी उसी समय लाभउसका स्पर्श होता था उसके जोड़ जोड़ दायक और ग्राह्य होता है जब उस पर अमल शिथिल हो जाते थे। इसी कारणसे उसका करना सहज ही में सम्भव हो। पारिभाषिक नाम 'नागपाश' रक्खा गया था। उदाहरणके तौर पर, वर्तमानकालमें विलायती यह बाण 'गरुड़' बाण द्वारा शांत किया जाता अशुद्ध खांडका कुछ ऐसा प्रचार हो गया है था। 'गरुड़' बाणमें मालूम होता है कि ऐता कि करीब २ प्रति स्थानमें उसीका प्रयोग होता है। कीमियाई मसाला मरा जाता था जिसके प्रभा. जैन और अजैन कदाचित् ही कोई उससे बचा वसे नागपाश द्वारा उत्पन्न हुई शिथिलता तुरंत होगा। अव्वल अव्वल इसका अत्यन्त विरोध नष्ट हो जाती थी। इसी तरह पर बहुत प्रका- हुमा था मगर सस्ती और सफेद होनेके कारण रके बाण बनाये जाते थे। यह बाणविद्या तो इसका रिवाज चल पड़ा। वास्तवमें यह अत्यंत अब सर्वथा नष्ट हो गई है और इस हद तक मनिष्ट पदार्थ है परन्तु क्या इसके विरुद्ध केवल इसका लोप हो गया है कि अब ' नागपाश' उपदेशका कोई फल होता है ? नहीं ! क्योंकि और 'गरुड़ ' बाणके अर्थ शब्दार्थमें लगाये मिठाई खाये विना सर्व साधारणका काम नहीं जाते हैं। कोई कोई तो यहां तक समझते हैं चलता और शुद्ध मिठाई मिलती नहीं। घी की Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ५] दिगम्बर जैन । अशुद्धताकी भो यही दशा है। इनका प्रयोग नमें एक प्रकारका बनावटी चमड़ा किसी वृक्षकी पूर्णतया बन्द कराने का एक ही उपाय है और छालसे बनाया गया है जो वास्तविक चमड़ेका वह यह है कि पहिले शुद्ध मिठाई व घोकी पूरा काम देता है । यदि हमारे देशमें भी कलादुकानें खुलवा दी जायं जहां वह सस्ती बिके कौशलमें उन्नति करना धर्मके रक्षकोंने बुरा न तत्पश्चात् उपदेश दिया जाय वरना उपदेश समझा होता तो शायद इस प्रकारकी कोई चीन बहुधा निष्फल होगा। परंतु उपदेश देना तो अवश्य प्राप्त हो जाती जो वृक्षोंके बक्कल मादिसे सहल है मगर मिठाईकी दुकान खोलना कठिन बनाई जा सकती। फिर देखते कि अहिंसा है। फिर वह भी बिना नफेके कौन खोले और परमो धर्मःका प्रचार कैसी उत्तमताके साथ होता। खुलावे । हमको चाहिये कि प्रत्येक स्थानों पर केवल उपदेश अधिकांशमें निरर्थक है । और एक या अधिक दुकानें घी और मिठाईकी इस प्रकारके हटसे भी कभी प्रभावना नहीं समाजके चन्देसे खुलवा दें। बढ़ेगी जैसे कभी कभी समाचारपत्रोंमें लेख . चमड़ेके प्रयोगकी भी यही दशा है । बहुधा निकलते हैं कि दूधमें भी हिंसा होती है । महानुभावोंको टोपियों पर खख्त एतरान होता क्या इसका प्रयोग नैनीके लिये उचित है ? है क्योंकि उनमें भीतर चमड़ा लगा होता है। रेशमने भी उपदेशकोंके दांत खट्टे कर दिये हैं । मैं उनका यहां पर वर्णन नहीं करता हूं जो धर्म उपदेशककी अपेक्षा इस कार्य में पुलिटिकल टोपीके नाम पर ही चिढ़ जाते हैं। उनसे उपदेशकको अधिक सफलता प्राप्त हुई है। वार्तालाप करना निरर्थक है मगर जो महोदय बात यह है कि रेशमका प्रयोग एक प्रकारका चमड़ेके कारण टोपीके विरोध में वे यदि टोपीको प्रचलित फैशन है जिसका सर्वथा बन्द होना छोड़कर केवल चमड़ेका । - विरोध करें तो असम्भव है । इप्तलिये हिंसामयीके स्थानपर अनुमानतः ये अपने उपद में शीघ्र और. यदि दूसरे प्रकारका रेशम जिसमें कीड़े तीतरी अधिक सफलता प्राप्त करते हुये पायेंगे। बनकर पहिले निकल जाते हैं प्रचलित किया कारण कि टोपोमें कोई व्यक्ति धर्मविरुद्ध- जाता और उसके प्रयोगपर जोर दिया जाता ताके चिन्ह कभी नहीं दिखा सकेगा वरन् और उसीके बेचनेकी दूकानदारोंसे मुख्य रूपमें चमड़ेका सर पर पहुँचना अनिष्ट है ही। प्रेरणा की जाती तो अधिक उपयोगी होता । इस अनिष्टताके दूर करनेमें लोगों को थोड़ा यदि कोई व्यक्ति इसको सर्वथा छोड़ना चाहे कष्ट उठाना अस्वीकृत न होगा बलिक तो फिर कहना ही क्या है । वह पूरे धन्यवामनुष्य धर्मके नाम पर हर्ष सहित स्वीकार कर दका पात्र होगा । इस प्रकार हम देखते हैं कि लेंगे । सबसे सहल उपाय यह है कि कारखा- बहुतसे हिंसामय कार्य हमको सांसारिक विद्या नेवालोंसे ऐसी टोपिया बनवाई जावें जिनमें तथा कलाकौशलकी अनभिज्ञताके कारण करने चमड़की पट्टो न हो । सुना गया है कि जापा- पड़ते हैं। पिछले सहस्र वर्षमें हमको मानना Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ orm १६) दिगम्बर जैन । [ वर्ष १७ पड़ेगा कि हमने इस विद्या-विभागमें उल्टी पाबन्दी जैनियोंको करनी पड़ती है और अंग्रेजीउन्नति अर्थात् अवनति ही की है। दो बकोलों, बैरिस्टरोंके अतिरिक्त अन्य जैनमें ___ इस सहस्र वर्ष में जैनियोंकी संख्या कितनी एक भी पुरुष ऐसा नहीं है जो समाजके मुककम हो गई है इसका तो पता लगाना ही कठिन दमोंको कचहरियोंमें उचित रीतिसे स्वयं संभाल है, परन्तु इतना मालुम होता है कि एक सकें। ---- समयमें जैन धर्म समस्त भारत देश में फैला हुआ तीर्थों के प्रबन्धमें भी गत समयमें ऐसी था । अब बहुतसे स्थान ऐसे हैं जहां न जैन कारगुनारी की गई कि दिगम्बर जैनियोंका हैं न जैन-मंदिर या जहां केवल जैन-मंदिर प्रबन्ध सब जगह झगड़ेमें पड़ गया और कहीं ही रह गये हैं जैनी नहीं हैं। अब भी किन्हीं कहीं हाथसे भी निकल गया । भानकल भी स्थानोंपर ऐसे जैनी पाये जाते हैं जो अपने हमारे लाखों रु मुकद्दमातमें व्यर्थव्यय हो और अपने धर्मको करीब करीब बिल्कुल भूल रहे हैं ताकि हम पनी लापरवाहीके परिणागये हैं। यह इस कारणसे नहीं कि अंगरेजी मोंसे बचें ।। शिक्षाने उनको धर्मविरुद्ध कर दिया है। यह मतः जब हम' त सहस्र वर्षकी कारगुजरी लोग क्यों अपने और अपने धर्मसे अनभिज्ञ पर जो अंगरेजी शिक्षणसे पहिलेकी है, दृष्टि हैं ? इसके कई कारण हैं। अव्वल तो गृहस्था- डालते हैं तो प्रतीत होता है कि प्रत्येक स्थाचार्योका ही अभाव हो गया है यहां तक कि नमें अवनति और खराबी ही खराबी भर गई संस्कृत के बड़े बड़े विद्वानोंमेंसे भी कोई अब थी। न शास्त्रोंकी उचित रक्षा हुई न तीर्थो की इस पदको नहीं पहुंचता है। दूसरे धर्मपुस्तकें न धर्मका प्रभाव बढ़ा न धर्मात्माओंकी जनसंख्या भी २० वर्ष पूर्व प्रकाशित नहीं होती थीं। ही स्थित रही। सच तो यह है कि अंगरेनी हाथके लिखे हुये शास्त्र अधिकांश संस्कृत और शिक्षणके पूर्व समाज विधवा बनाने का कार्यालय प्रारूतमें ही होते थे निनको पढ़ना और सम- बना हुआ था जिसमें से सैकड़ों दुधमुहे बच्चे झना प्रत्येक व्यक्ति के लिये असम्भव था । इस सदैवके रोने बिलकनेके लिये विधवापनके सांचेमें लिये कौन आश्चर्यकी बात है कि ऐसी दशामें पड़कर बालविधवाके तौरपर सुसजित होते थे। लोग अपने धर्मसे अनभिज्ञ हो जावें। क्या यही धर्मानुकूलता है जिस पर किमीको जैन ला (कानून)की पाबन्दी भी गत समय में अमिमान हो सकता है ? धीरे धीरे कम होती गई। यहांतक नौबत पहुंची अंगरेनी शिक्षणने अभी २० वर्षके अन्दर कि कोई जैन कानूनकी पुस्तक पूर्णरूपमें अब ही अन्दर आंख खोली है। और तबसे उसकी नहीं मिलती हैं और जो अपूर्ण पुस्तकें मिलती दृष्टि इन बुराइयोंके दूर करनेकी और लगी हैं उनमें किन्हीं किन्हीं मौकों पर एक दूसरेमें हुई है। हर्षका स्थान है कि धर्मप्रभाव जो गत मतभेद पाया जाता है। अब हिन्दू ला की समयमें बहुत गिरी दशामें पाया जाता था भब Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwnwar अंक दिगम्बर जैन । भारतवर्षम ही नहीं वरन् संसारभरमें फैल रहा नो बुद्धिको तीन कर सकते हैं और न उनसे है।मान जैनधर्मको समझने के लिये संमारके पेट ही भरा जा सकता है और न उनकी संसाबड़े बड़े बुद्धिमान प्रस्तुत हुये हैं। अर्मनी, में मांग ही है। परन्तु पदार्थ ज्ञानसे सीनों फ्रान्स के विद्वान् उसकी पुस्तकों का अध्ययन बातें हासिक होती हैं। यदि कोई मनुष्य धर्मसे करते हैं। लन्दनमें एक " महावीर बिरादर भटककर कुमार्गपर पहुंच जाता है तो ग्रह हुड" नामी संस्था कायम है। हिन्दी, गुजराती, किसी खास विक्षणका दोष नहीं हो सका है। माहठी, अंगरेजी और संस्कृत भाषामें भी किसी काभदायक शिक्षण को सर्वथा बुरा कहा बहुबसे अन्य जैनधर्मके तत्वोंको दर्शाने के लिये कर त्याग देना उचित नहीं है। हां, यदि मौजूद हैं। इस २० बर्षके भीतर अंगरेजी उसमें कोई त्रुटियां मार पड़ें तो तुमको चाहिये शिक्षणने छाफेके विरोधी हठको पीरे धीरे तोड़- कि उनको दूर करो या मी कमी हो उसको कर जैनधर्मका प्रभाव समस्त संसारमें फैला पूरा करी, परन्तु यदि इतनी योग्यता वहीं रखते दिया है, इस बीचमें ब्याह-सम्बन्धी कुरीति- हो कि उसकी भलाई या बुराई को समझ सको योंका सुधार भी बहुत कुछ हुमा है। बाल- तो जो मनुष्य उससे जानकारी रखता हो उससे विवाहकी कुरीति भी कुछ कम होगई है और उचित कार्य करने को कहो,परंतु विनासमझे बुझे राय भाशा है कि थोडे ही समयमें यह अपवित्र प्रकट करके दूसरोंके काममें बाधक मत बनो । प्रणाकी इस देश में प्रचलित न रहेगी। मैन वास्तवमें इस समय इस बातकी भावश्यक्ता कानूनके सुधारका प्रबन्ध होरहा है। संगठन है कि इलाहाबाद जैन होस्टल जैसी संस्थाओं मौर प्रबन्धके खयालत भी अब समागके दिलमें (Instituions) की सहायता की जाय और उत्पम हो गये हैं। क्या यह अंगरेमी शिक्षणकी इस प्रकारके छात्रालय अन्य स्थानों में भी खोले कारगुजारी यथेष्ट नहीं है ? क्या सहस्रों वर्षों की जावें । एक जैन कोलिन लखनऊ, इलाहाबाद, चली आई हुई अवनतिको रोकना और उसमेंसे कानपुर या बनारस जैसे स्थानपर होना आव. त्रुटियों को दूर करना कोई चीज ही नहीं है। श्यकीय है। चाहिये तो एक जैन विश्वविद्याऔर मुख्यतः सख्त विरुद्धताके प्रतिकूल जैसे कय भी जहां कि संस्कृत व अंगरेजी भाषाओंकी शास्त्रोंक छापनेके विषयमें ? यथेष्ट शिक्षा साथ साथ दी जा सके उसका अतः हम देखते हैं कि अंगरेजी शिक्षाका प्रबन्ध अब हमारे हाथों में होगा तो हम वहांके प्रभाव हानिकारक नहीं वरम मुणकारी है। विद्यार्थियों के जीवन बबारित्रको यथोचित बना सत्य यह है कि विद्या हर दशामें लाभदायक हो सकेंगे। नया मापने नहीं सुना कि शान्तिकिहोती है और विद्याओं में काव्य और अलङ्कारोंके केतनके विश्वभारती में अन्य देशों के विद्वान मुकाबिलेमें सत्य पदार्थ-ज्ञान विशेषकर लाभ- भाकर काम करते हैं और विद्योपान करते दायक होता है क्योंकि काव्य और शङ्कार हैं। यदि मा विशनिवालय कहीं होता तो Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AN दिगम्बर जैन । [ वर्ष १७ हमारे यहां भी अन्य देशों के विद्वान् लोग जायगा। इसमें संस्कृत पर कोई आक्षेप नहीं पधारते और हमारी शोभा बढ़ाते। किया जा रहा है। संस्कृत तो दस बीस पण्डित- इस समय भारतके प्रान्तरमें ईसाइयों के स्कूल जन ही समझ सकेंगे मगर हिन्दीसे हजारों और कोलिन खुले हैं जहां वे अपने धर्मकी लाखों मनुष्यों को लाभ होगा। समय तथा देशकी - शिक्षा देते हैं। मुसलमानों का विश्वविद्यालय दशाको देखकर कार्य करने में सफलता प्राप्त अलीगढ़ में खुला हुआ है जहां मुसलमानी मत होती है। संस्कृत तो जैन सिद्धान्तकी प्रारम्भिक की शिक्षा दी जाती है। काशीमें हिन्दुओंका भाषा भी नहीं है। अधिकांशमें जैन ग्रंथ प्रारूत विश्वविद्यालय है जहां सहस्रों विद्यार्थी धर्मशिक्षा भाषा ही में लिखे गये हैं निससे वर्तमानकालमें पाते हैं । जैनियों के विश्व विद्यालय अभावरूप बहुत कम आदमी जानकारी रखते हैं। संस्कृतदेशमें ही हैं अर्थात् कहीं नहीं हैं । क्या यह की रक्षा भी अनुवादोंमें संस्कृत मूळके देने द्वारा अत्यन्त दुःख की बात नहीं है? मैं आशा करता भले प्रकार हो जायगी। है कि इस अवसरपर आप सज्जनवृन्द इस अब केवल एक बात कहनेको शेष रही है जो मावश्यकीय प्रार्थनाकी ओर ध्यान देंगे। अति आवश्यकीय है। मापने "वीर" के फरएक और आवश्यकता इस बातकी है कि निसको । रीके अंकमें पढ़ा होगा कि मैनपुरी निलेमें मैं अनुभव कररहा हूं और मेरा विचार है कि कि शिकोहाबाद जंकशनसे १० कोसकी दूरी पर भाप महानुभावोंने भी अनुभव किया होगा कि महावीर भगवानकी एक विशाल मनोज्ञ प्रतिमा समस्त शास्त्र प्रचलित भाषा अर्थात हिन्दी में ४॥ फिट ऊँची किसी मठमें विराजमान है और लिखवाये जायें ताकि प्रत्येक व्यक्तिको उनके जखें'टेयाके नामसे इस पर सहस्रों पशुओंका अवलोकन तथा समझने का अवसर प्राप्त हो। बलिदान चढ़ाया जाता है। यह महाभीषण बिना समझे शास्त्रोंका पाठ केवल तोता-रटन्त अत्याचार है जिसको सुनकर प्रत्येक व्यक्ति , है जिससे विशेष काभकी आशा करना बालू में से शोकातुर हो जायगा। निःसन्देह उपस्थित तेल निकालने की आशा करना है। यह कार्य सज्जनगण इस विषय पर भी उचित विचार करेंगे। एक संस्था द्वारा होना चाहिये ताकि अनुवाद ___इन. थोड़ेसे शब्दोंके साथ मैं होस्टेलकी ओरसे करते समय सब बातोंकी ओर ध्यान रक्खा आपके शुभागमन पर कृतज्ञता प्रकट करते हुये जाय कि पहिले किन किन शास्त्रोंका अनुवाद प्रार्थी हूँ कि आप महानुभावोंके खागत तथा कराया जाय, भाषा जैपुरी मरहठी हो किन प्राथा है - सेवामें जो त्रुटियां रह गई हों उनके लिए हमको हो, किप्त बुद्धिमानको कौन कार्य सौंपा जाय सेवा ". क्षमा कीनिये और इन बच्चोंकी प्रार्थना तथा इत्यादि इत्यादि । इस उपायसे आगामी ममयमें । आवश्यकताओं पर ध्यान देकर इन कृतज्ञ पज्य जिनवाणी और शास्त्रभण्डारकी रक्षा होगी कीजिये ताकि आगामी कालमें यह विधिपूर्वक और साधारण जैनियों तथा जनताको धर्मका आपका हाथ पॅटाने में समर्थ हो सकें। स्वरूप भलेपकार जानने का अवसर प्राप्त हो ॐ शान्तिः ! शान्तिः !! शान्तिः !!! Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक १] दिगम्बर जैन [ १९ जातिके साथ सहवास करनेके लिए विशेष KKKKKKKKKKKIX सहवासके नियम । 985 उत्सुकता होती है । इस प्रकार ऋतुकाळ अथवा किसी विशेष समयके सिवा उनके और किसी समय भी सहवास करनेकी इच्छा प्रकट नहीं होती । यहां तक कि उक्त विशेषकालके अतिरिक्त और किसी समय में यदि पुरुष जातिका प्राणी सहवासकी इच्छा से स्त्रीजातिके निकट जाता है तो वह तत्काल उससे लड़ने को तैयार होजाता है । इसीलिए प्रकृतिने सृष्टिकी रक्षा के लिये मनुष्य पशु पक्षी, कीड़े मकोड़े आदि समस्त संसारके प्राणियोंके सहवास के सम्बन्धमें समय निर्दिष्ट कर दिया है किन्तु मनुष्य जो सबसे उच्च श्रेणीका प्राणी है उसने इस अत्यन्त तुच्छ और शरीरनाशक क्षणिक सुखमें मुग्ध होकर अपने आपको पशुसे भी नीच बना लिया है और फिर भी कुछ लज्जा और घृणा नहीं करता, यह कितने आश्चर्य और सन्तापका विषय है। जो क्षुद्र जीवजन्तु पलभर में जलकी तरंगकी समान जीवनयात्राको समाप्त करके अनन्तकालके गर्भमें लीन होजाते हैं वे भी सदैव नियमानुकूल चलते हैं; किन्तु १०० वर्षको आयु प्राप्त करनेवाला तथा अत्युन्नत मस्तिष्कवाला मनुष्य यदि निर्बुद्धे होकर क्षणिक और अतितुच्छ सुखकी खोज में सदैव लगा रहे तो उसका मनुष्य जन्म इतर प्राणियों के जन्मसे भी अधम समझना चाहिए । जो इन्द्रिय स्वर्गीय महान् उद्देश्य (उत्तम सन्तानकी उत्पत्ति ) की सिद्धिके लिए व्यवहृत होनी चाहिए, उसका दुर्व्यवहार करना कितना निन्द्यकर्म है । इस विषयपर विचार करनेसे मालूम होता है कि हमने महापापी 1 ARAKANKAA हमारे अस्तित्त्वकी रक्षा के लिए प्रकृतिने हमको जननेन्द्रिय और उसको यथाविधि संचालन करके उत्तम सन्तान उत्पन्न करने की प्रवृत्ति प्रदान की है । उत्तम सन्तान उत्पन्न करनेके सिवा सहवासका और कोई उद्देश्य नहीं है। केवल इन्द्रिय सुखके लिए सहवास करने की प्राकृतिक आज्ञा नहीं है । इन्द्रिय सेवनसे उत्पन्न हुआ सुख अत्यन्त तुच्छ और क्षणस्थायी होता है । इस कारण इस प्रकार के क्षणस्थायी और सामान्य सुखके लिए अनियमित इन्द्रियसेवनके द्वारा शरीरका क्षय करना महान् अन्याय और महत्पुरुषों की आज्ञा भङ्ग करना है । सहवासकी इच्छा और तज्जनित सुखका जो अनुभव होता है, वह केवल सन्तान उत्पन्न करनेका सहायक मात्र है। पशु, पक्षी और छोटे छोटे जीव, जन्तु आदि जितने भी संसार में प्राणी हैं, उनको देखने से यही मालूम होता है कि ईश्वरने एकमात्र सन्तानोत्पत्ति के लिए ही कामेन्द्रिय और कामेच्छा प्रदान की है, केवल विषयसुखके लिए नहीं । हाथी, घोड़ा, बैल, भैंसा, कुत्ता आदि प्राणि योंकी सहवास प्रणालीको देखनेसे स्पष्टरूपसे समझा जासकता है कि स्त्रियोंके जैसे ऋतुधर्म होता है, उसी प्रकार अन्यान्य स्त्रीजातिके प्राणियों को भी ऋतुधर्म अथवा किसी विशेष प्रकारका परिवर्तन होता है और उनके पुरुष Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०] दिगम्बर जैन । [ वर्ष १७ बनकर अपने दोषोंसे ही उसकी इस स्वर्गतुल्स हिन्दुनातिकी रक्षा उन मार्य महर्षियों के मार्गका भूमिको नरकके समान बना दिया है। अवलम्बन करनेसे ही होसकती है, अन्यथा अनियमित रूपसे इन्द्रिय-सेवनके द्वारा उ. किसी प्रकार भी नहीं होसकती । भाजलके त्पन्न हुमा महापाप मानकळ विकट रूप धारण मनुष्य किस प्रकार उत्तम वृक्ष उत्पन्न होगा, करके समस्त जगतको प्रसनेका प्रयत्न कररहा किस तरहसे घोड़ा अच्छा होगा और किस है। इस महापापकी अधिकतासे ही गाजा प्रकारसे कुत्ता अच्छा होगा इत्यादि बाह्य पदामनुष्य समान मीर्ण-शीर्ण, रोगी और समवमें थोकी उन्नतिका विचार किया करते हैं; किंतु ही वृद्धावस्थाको प्राप्त झेर मृत्युके मुख प्राचीन कालके महात्मा पुरुष पहले इस बातका पतित होता जारहा है। हिन्दूनातिके वर्तमान विचार करते थे कि किस प्रकारसे उत्तम संतान अधःपतनका एकमात्र प्रधान कारण अमित और उत्पन्न होगी ? और वे केवक विचार करके मवैध इन्द्रिय सेवन करना ही है। ही नहीं रहनाते थे; बरिक वे सहवास संबंधी यदि कोई मनुष्य अपनी सन्तानको वास्तविक सैकड़ों, हनारों प्रकारके कठिन नियमोंका भी सुखी, दीर्घजीवी, आरोग्य, बुद्धिमान् बौर धर्म- पालन करते थे। वान देखना चाहे तो उसको मर्भाधान संस्कारसे सहवासके सम्बन्धमें मार्य महर्षिण निनर पूर्व पवित्र मन और पवित्र भावसे उपयुक्त नियमों की व्यवस्था करगये हैं और आजका समय (अर्थात् ऋतुस्रावके चार दिन बाद ) में लके बड़े बड़े पाश्चात्य विज्ञानवेत्ता पण्डितोंने सहवाप्त करना चाहिए। यदि पुत्रको पवित्र, उन व्यवस्थाओंके विषयमें जिन वैज्ञानिक उनत भावापन बनाना हो तो सबसे पहले अपने तत्वोका भाविष्कार किया है, हम उन्हींकों भापको उन्नत बनालेना चाहिए, पश्रात पुत्रो- यहां संक्षिप्त रूपसे वर्णन करते हैं, आशा है त्पादन करना चाहिए । मार्य महर्षियोंका एक कि पाठक महोदय इन समस्त तत्त्वोंको विशेष मात्र मादेश है कि-शास्त्रोक्त विधिके अनुसार ध्यान देकर पढ़ेंगे। प्रथम ब्रह्मचर्य व्रतका पालन करना चाहिए और चरकसंहिताके शारीरस्थानके मातिसूत्रीय फिर सन्तान उत्पन्न करनी चाहिए। विद्या, अध्यायमें महर्षि मात्रेय कहते हैं:तपस्या, इन्द्रिय संयम मादिके द्वारा रेतः संयम “ स्त्री पुरुषयोरव्यापनशुक्रशोणितयोनिगकरके प्रथम अपने में मनुष्यता प्राप्त करनी चाहिए र्भाशययोः श्रेयसी प्रजामिच्छतोस्तानतिफिर दुसरेको मनुष्यत्व प्रदान करने यत्न करं कम्मोपदेष्यामः ।" करना चाहिए। वीर्यरक्षा ब्रह्मचर्य व्रतका एक अर्थात् जब स्त्री और पुरुषका शुक्र, शोणित प्रधान अंग है । इस वीर्यरक्षाको ही मार्य (डिम्ब ), योनि और गर्भाशय किसी प्रकामहर्षियोंने जीवन का सबसे प्रधान कार्य बतलाया रके दोषसे दृषित न हों तब उत्तम सन्तान है। वर्तमान काल में हमारा पुनरुत्थान और प्राप्त करनेकी इच्छा करनेवाले उन स्त्री पुरुषोंको Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक ५] दिगम्बर जैन। जो कर्म करना चाहिए, उसी विषयके कुछ . "तनश्चतुर्थेऽहन्येनामुत्साद्य सशिरस्का सदुपदेशोंका नीचे वर्णन करते हैं- स्नापयित्वा शुक्लानि वासांस्याच्छादयेत्पूरू... "अथाप्येतौ स्त्रीपुरुषौ स्नेहस्वेदाभ्याम- षञ्च ।" पपाद्य वमनविरेचनाभ्यां संशोध्य क्रमात्क - अर्थात् इसके पश्चात् चौथे दिन शरीरमें उबतिमापादयेत्संशुद्धौ चास्थापनानुवासनाभ्या- टन और तेलादिकी मालिश करके स्त्रीको शिरसे मुपाचरेदिति ।" स्नान कराकर शुक्ल वस्त्र पहिरावे । इसी अर्थात् प्रथम उन दोनों स्त्रीपुरुषोंके शरीरको प्रकार पुरुषको भी स्नान कराकर शुक्क बस्त्र स्नेहन और स्वेदनसे मृदु बनाकर फिर क्रमसे धारण करावे । वमन और विरेचनके द्वारा संशोधन करके "ततः शुक्लवाससौ च स्रग्विणौ मुमउनको उत्तम प्रकृतिवाला बनावे । इस प्रकार नसावन्यान्यमभिकामी संवसेतामिात ब्रूयात्।" दोषादिकोंसे शरीरके शुद्ध होनानेपर दोनोंको अर्थात् इसके अनंतर वैद्य उन श्वेत और मधुर द्रव्यों और घृत, दुग्धादिकोंके द्वारा शुद्ध वस्त्र धारण किये हुए, सुगंधित पुष्पमा. "मास्थापन और अनुवासन वस्ति देवे। लादिसे सुशोभित, शुद्ध मनवाले और परस्पर सन का उत्तम सन्तानकी कामनासे सहवास करनेकी ब्रह्मचारिण्यवशायिनी पाणिभ्यामनमर्जर- इच्छावाल दाना स्त्रीपुरुषाको सहवास करनेका पाने भुजाना न च काश्चिदेव मृजामापयेत।" . अर्थात् इसके पश्चात् जिस दिन जिस समय ___" स्नानात् प्रभृति युग्मेष्वहःसु संवसेतां समी ऋतुमती हो उस दिनसे लेकर तीन सत्रि 6 पुत्रकामौ तौ चायुग्मेषु दुहितकामौ ।" का पर्यन्त ब्रह्मचारिणी अर्थात् पतिके सहवाससे अथोत् पुत्र उत्पन्न होनेकी इच्छा हो तो वे रहित रहे, हाथका तकिया लगाकर भूमिमें पाना : दोनों स्नान करनेके दिनसे अर्थात् चौथे दिनसे शयन करे और पुराने पीतल, लोहादि धातुके । युग्म दिनोंमें (ऋतुकालकी १३ रात्रियोंमसे या मिट्टीके पात्रमें हाथोंसे मन्नको लेकर भोजन ४-६-८-१०-१२-१४ और १६वीं रात्रिमें) करे । किप्तीको स्पर्श न करे । और इस सम. और कन्या उत्पन्न होनेकी इच्छा हो तो वे यमें स्नान, शरीरमार्जन आदि किप्ती प्रकारका . अयुग्म दिनोंमें (अर्थात् ५-७-९-११-१३ भी शुद्धाचार अथवा किसीका अहित नहीं करें। और १५ वीं रात्रिमें) सहवास करें । "न च न्युजां पार्वगतां वा संसेवेत।" प्राचीनकालके समस्त ऋषि, मुनियोंने एक अर्थात् उल्टी या दाहिने, बायें करवटसे स्वरसे ऋनुसावके समय ( अर्थात् ऋतुकालके शयन करती हुई स्त्रीसे सहवास नहीं करना तीन दिन तक) सहवास करने का विशेष रूपसे चाहिए। स्त्रीको चित्त लेटकर वीर्य ग्रहण करना निषेध किया है। चाहिए। महर्षि मात्रेय कहते हैं " पर्याप्ते चैनां शीतोदकेन परिषियेत् ।" Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mm दिगम्बर जैन । [ वर्ष १७ अर्थात् गर्भ ग्रहण करनेके एक प्रहर पश्चात् पदार्थों का भोजन करके दोनों ही सुंदर सुगघिसे स्त्रीको शीतल जलसे अपने नेत्र, मुख और सुशोभित होकर उत्तम बिछौने वाली शय्यापर योनि आदि अङ्ग धोने चाहिए। ___शयन करें। उसपर प्रथम पुरुषको दाहिने पांवसे ___"अत्रात्यशिता क्षधिता पिप सिता भीता और फिर स्त्रीको वाम पांवसे चढ़ना चाहिए। विमनाः शोकार्ता क्रुद्धा चान्यञ्च पुमांस- इसके पश्चात् उस शय्यापर बैठकर दोनों " ॐ मिच्छन्ती मैथुने चातीकामा वा नारी गर्भ अहिरसि आयुरसि" इत्यादि मंत्रको पढ़कर न धत्ते, विगुणां वा प्रजां जनयति ।" सहवास करें। ___ अर्थात् जिस स्त्रीने अत्यन्त भोजन किया हो “सा चेदेवमाशासीत ।" या जो भूखी, प्यासी, भयभीत, मैथुनकी इच्छा अर्थात् स्त्री यदि इस प्रकारकी इच्छा करे न करनेवाली अथवा दूषित मनवाली, शोकान्वित कि मेरे उन्नतिशील, श्वेतवर्णवाला, सिंहके क्रुद्ध, अन्य पुरुषकी इच्छा करनेवाली अथवा समान पराक्रमी, सदाचारी, तेजस्वी,पवित्र और अत्यन्त कामातुरा हो, वह स्त्री गर्भको धारण सतोगुणी पुत्र उत्पन्न हो तो उसको ऋतुस्नानके नहीं करती। यदि कदाचित् ऐसी स्त्रीके गर्भ पश्चात् शुद्ध होकर जौ के सतुओंका मन्थ बनास्थित हो भी जाय तो कुरूप और विगुण कर उसको घृत और एक वर्णके बछड़े सन्तान उत्पन्न होती है। ___वाली गायके दूध मिलाकर चांदीके अथवा " अतिबालामतिवृद्धां दीर्घलोमिनीमन्येन र कांप्तीके पात्र में करके प्रतिदिन प्रातःकाल सात पा विकारेणोपसष्ट वर्जयेत् ।" दिन तक पान करना चाहिए और शालिचाव अर्थात् अत्यंत छोटी अवस्थाकी, अत्यंत वृद्धा लोका भात या यवान्न अथवा दही, दूध और बड़े बड़े वालों वाली और अन्य किसी आर घृत इनको एकत्र मिलाकर सेवन करना चाहिए। भयङ्कर रोगसे ग्रसित स्त्रीसे सहवास नहीं । “ तथा सायमवदातशरणशयनासनयानवकरना चाहिए। । सन भुषणवेषा च स्याव" " पुरुषेऽप्येत एव दोषाः । अतः सर्व 4. अर्थात् इसके अनन्तर स्त्री सायङ्कालमें पवित्र दोपवर्जितौ स्त्रीपुरुषो संमृज्येयाताम् । . और सुसज्जित गृहमें उत्तम शय्यापर शयन अर्थात् पुरुषके भी यदि ये समस्त दोष हों ! करे, शुद्ध आसन आदिपर बैठे, पवित्र वस्त्र तो उसको भी स्त्री संसर्ग नहीं करना चाहिये। हय। और उत्तम माभूषणोंसे अलंकृत होकर वेशइसलिए सर्व प्रकारके दोषोंसे रहित स्त्री-पुरु- विन्यास करे । षोंको सहवास करना चाहिए। " सायं प्रातश्च शाश्वत् श्वेतं महान्तमव " सजातहर्षों मैथुने ।" ममाजानेय हरिचन्दनाङ्कितं पश्येत् ।" ___ अर्थात् स्त्री और पुरुष दोनों ही परस्पर अर्थात् वह स्त्री सायङ्काल और प्रातःकालमें हर्षसहित मैथुनकी अभिलाषा करनेपर हितकर नित्य श्वेतवर्णवाले और बड़े भारी शरीरवाले Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAN मंक ५] दिगम्बर जैन । बैलको तथा पीले चन्दनसे चर्चित सफेद घोड़ेके दर्शन करे । उस स्त्र को मनको सान्त्वना देने सचा सुख। वाले वचनोंके द्वारा सन्तुष्ट करना चाहिए । पुरुषको भी ऐसा ही माचरण करना चाहिए। हाय ! हम अनादि कालसे भूले हुए संसा. एवं जिन पुरुष और स्त्रियोंकी सौम्य प्रकृति, रकी चतुर्गतियोंमें भ्रमण करते हुए भटक रहे सौम्य शरीर और सुन्दर उपचार और सदुद्योग हैं, और अनेकानेक कष्टोंका साम्हनाकर, हों उनके एवं इंद्रियोंको तृप्त करनेवाले अन्या- अपनी आत्मशक्तिको खो बैठे हैं। हम जो न्य उत्तम पदार्थोके उसको दर्शन कराने चाहिए। चाहते हैं वह हमें प्राप्त नहीं होता। हमारी उस स्त्रीकी सखी सहेलियोंको चाहिए कि वे तीव्र इच्छा है कि हम सुखी बने, और दुःखसे उसको प्रिय और हितकर पदार्थों के द्वारा सदैव सदैव बचते रहें। प्रसन्न रक्खें। ___ संसारका कोई भी क्षेत्र ऐसा न होगा, जहां " इत्यनेन विधिना सप्तरात्रं स्थित्वेति ।" पर हमने जन्म लेकर सुखकी इच्छा न की ___ अर्थात् इस प्रकार सात रात्रि व्यतीत हो हो, किंतु हम जहां गये वहां ही सुखसे वंचित - जानेपर पाठवें दिन स्त्री प्रातःकाल पतिके साथ रहे । क्या नरक गति, क्या पशु गति, और शिरसे स्नान करके नवीन और पवित्र वस्त्रोंको क्या देवगति, कहीं भी हमको सच्चा सुख प्राप्त धारण करे एवं सुंदर पुष्पमाला और अलंकारोंके नहीं हुभा। अब किसी पूर्वोपार्जित पुण्यके द्वारा शरीरको सुशोभित करे । द्वारा हमें मनुष्य गतिकी प्राप्त हुई है, किंतु इन सब क्रियाओंके पश्चात् महर्षियोंने स्त्री उसमें भी सुखके चिह्न दीख नहीं पड़ते । यह पुरुषको विविध प्रकारके धर्मानुष्ठान अर्थात् क्या है ? यह सब मिथ्या कल्पना है । इसका जप, तप, हवन, यज्ञादि करनेका उपदेश दिया कारण यह है कि यदि निश्चित रूपसे देखा है। इसी प्रकार अन्य मार्य महर्षि भी स्त्री पुरु जाय तो हमारे भीतर ही हमारा सच्चा सुख षको सहवाप्त करनेसे पहले ईश्वराराधना और गर्मित है. परन्तु हम रागद्वेष मोहादिके जाल में परमात्मचिंतन करने का आदेश देगये हैं । सह. फंस, उसे भूलरहे हैं। यदि हम रागद्वेषादिके वासके पूर्व यदि शारीरिक और मानसिक अव फंदेको तोड़ अपने भापमें निमग्न हो जावें, तो स्था उत्तम हो और उस समय परमात्म-चिंत. अवश्य ही हम अपने सच्चे सुखके भोक्ता बन जाव। "वन किया जाय तो सम्पूर्ण विषयोंमें उत्कृष्ठ और धार्मिक संतान उत्पन्न होगी, इसमें कुछ - इस समय हमारी दशा वैसी ही है, जैसी कि एक मदिरा पीनेवाले मनुष्यकी। मदिराका भी संदेह नहीं। वैद्य " से उद्धृत । पीनेवाला मदिराको पीकर उसके नशे में मस्त झे जाता है, तब उसे अपने मापेकी कुछ सुध Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ] नहीं रहती । उसे इतना भी ज्ञान नहीं रहता कि मैं कौन हूं, और कहां पर हूं, तथा इस समय मेरी दशा क्या है । और तो क्या वह अपनी मां, बहिन, स्त्री आदिके पहिचानने में भी असमर्थ होजाता है, इससे वह उस समय अपनी मां स्त्री और स्त्रीको मां कहकर पुकारता है, किंतु जब उसका नशा उतरता है, तब वह अपनी मांको मां और स्त्रीको स्त्री समझता है । बस, वैसी ही हमारी दशा है । हमने अनादिकालसे मोह मदिराको पी लिया है, जिसका नशा हमको अभीतक घुमाये हुए है । इसी कारण हम अपने स्वरूपको मूलकर दूसरोंके रूपमें लुभा रहे हैं। जो पदार्थ अपने नहीं हैं उनसे ममत्व बुद्धि रखना हमारी मूर्खताका परिचय है । दिगम्बर जैन । [ बर्ष १७ दलवल देवी देवता, मातपिता परिवार | मरती विरियां जीवको, कोई न राखनहार ॥ परन्तु यह मोही आत्मा अपने आपको मूलकर उन्हीं नाशवान पदार्थोंको अपना मानता है यह उसकी बड़ी भूल है । ore हमको विचार करना चाहिये कि जब आत्माके साथ घन, कुटुम्ब आदि कुछ भी नहीं जाता, तो फिर उसके साथ जाता क्या है ? इसके सम्बंध में इतना ही कह देना उचित होगा, कि आत्माका किया हुआ पुण्य वा पाप ही उसके साथ जाता है, इसके सिवा आत्माके साथ और कुछ भी जानेका नहीं यह जैनद्धांतका कथन है । अब यह निश्चय हो चुका कि केवल पुण्य और पाप ही हमारे आत्माके साथ जा सकते हैं इस आधारपर यह कहा जा सकता है कि केवळ पुन्य कार्य ही किये जावें और पाप कार्यों का त्याग किया जाय जिससे हमें इस लोक तथा परलोकमें सुख प्राप्त हो किंतु हमारे आचार्योंने इस सम्बन्धमें ऐसा कहा है कि पुण्य और पाप दोनों ही कर्मबंधके कारण है और कर्म बन्ध ही संसार परिभ्रमणका मुख्य कारण है । सोही पं० दौलतरामजीने कहा हैपुण्य पाप फल मांहि हरख विलखो मत भाई । यह पुल पर्याय उपज विनसे फिर थाई ॥ यह प्रत्यक्ष देखने में आता है कि जब कोई आत्मा अपने वर्तमान शरीरसे मुक्त हो नबीन शरीर में प्रवेश करता है तब उसका सब ठाटवाट यहीं पड़ा रहजाता है । उसके साथ और कुछ जावेगा ही कहांसे, जब कि उसका पौद्धिलक शरीर भी उसके साथ नहीं जाता जिसको उसने बड़े लाड़ प्यारसे पोषण किया था तथा जिस बनको उसने बड़े परिश्रमसे कमाया था, बह भी जहांका तहां पड़ा रहता है, और उसने जिस कुटुम्बके हेतु अनेक पापोंसे धन संचय किया था वह भी उसके साथ नहीं जाता । कहने का तात्पर्य यह कि मरते समय आत्माका कोई भी साथी नहीं होता, और न कोई उसे मरनेसे बचा सकता है । बही कविवर भूधरदासजीने कहा है प्यारे आत्मन् ! तू कर्मबंध से तभी छूट सकता है, और तभी ही मोक्षके अनंत सुखको पा सकता है, जब तू अपने आपमें निबंध भावको स्थान देवे, क्योंकि निर्बंध भाव ही तुझे मोक्ष प्राप्ति में सहायक होंगे। जिन भावों में Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भक ] दिगम्बर जैन पुण्य पापका अंश नहीं, जिन भावों में रागद्वेष मोही आत्मा अपने को कभी सुखी.कभी दुखी, नहीं, तथा जिन भावों में परपदार्थोके प्रति मोह कभी रामा. कभी रंक, कभी धनिक कभी निर्धन, नहीं, ऐसे माव ही निबंध भाव हैं, जैसा कि कभी पंडित, कभी मूर्ख, कभी गोरा, कमी काला, पं० दौलतरामनीने छह ढालेमें कहा है- कभी कुबड़ा, कभी सुडौल सुन्दर शरीरवाला, जहां ध्यान ध्याता ध्येयका न, कभी कांना, कभी लंगड़ा इत्यादि मानता है, विकल्प वच भेद न जहां। किन्तु यथार्थमें ये सब पुद्गलके रूप हैं, उसके चिद्भाव कर्म चिदेश करता, (आत्माके) नहीं। इसीसे वह अपने सच्चे सुखचेतना किरिया तहां ॥ को नहीं पाता । यदि यह सुख दुःख आदिकी तीनों अभिन्न अखिन्न शुध, मिथ्या कल्पनाको छोड़ ऐप्ता विचार करे, कि उपयोगकी निर्मल दशा। प्रकटी जहां हग ज्ञान वृत ये, मैं मुखी, दुःखी, गोरा, काळा, आदि कुछ भी तीन धा एकै लशा॥ नहीं हूं, मेरा स्वरूप तो सबसे निराला है, मैं उक्त भाव ही भास्माके सचे सुखकी प्राप्ति अखंड, अविनाशी, शिवपुरका वासी, चैतन्य करा सकते हैं। आत्मा ज्ञान-दर्शनमय, चैतन्य, भास्मा हूं, इस विचारसे वह अवश्य ही अपने अखंड, अमूर्ति, अविनाशी है। यह अनंतसुखी सच्चे मुखामृतके सागरमें निमग्न हो मोक्षका तथा अनंत वशका धारक चिदानंद, चैतन्य अधिकारी हो सकता है, बस यही आत्माका भावोंका भोक्ता है। यदि वह अपने चैतन्य सच्चा सुख है। रूपमें लीन होजावे तो वह सहज हीमें सच्चे ॐ शांतिः शांतिः शांतिः। मुखकी प्राप्ति कर सकता है, किंतु वह मिथ्या प्रेमचंद पंचरत्न मोहके कारण अपने स्वरूपकी पहिचान नहीं विद्यर्थी, दि. नैन विद्यालय-भिन्ड । करता, परपदार्थोसे स्नेह नहीं तोड़ता, रागढे संयक्तधान्तके-प्राचीन जैनस्मारक । पादि भावोसे विरक्त नहीं होता, और न अपने ब्रा सीतलप्रप्तादनी द्वारा संग्रहित इस ग्रंथमें आपको अपनाता, बस इसीसे वह अपने सचे संयुक्तपातके ३७ निलों के प्राचीन स्मारकका अपूर्व सुखका लाभ नहीं कर पाता। दिग्दर्शन है। मुख्य लागत मात्र सिर्फ छह माने । मिथ्या मोहके वशीभूत होकर यह आत्मा अपनी ना एक मंगानेवाले 12) के टिकिट भेनें। समाळकर पर परणतिको ही अपनी परणात शिर उडीसाके प्राचीन मान लेता है, जैसे शरीरके जन्मको अपना जन्म .. जन्म जैन स्मारक-इस ग्रन्थमें भी ब्रह्मचारीनीने और शरीरके नाशको अपना नाश । अथवा जो बंगाल विहार उड़ीसाके ५७ निलां के प्राचीन जैन राग, द्वेष, काम, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि स्मारक का दिग्दर्शन कराया है। लागत मात्र मू. प्रकट रूपसे जीवों को दुख देनेवाले हैं, उन्हीं की पांच आने एक मंगानेवाले !) के टिकिट भेजें ! सेवा करता हुआ अपने को सुखी समझता है। मैने नर-दि० जैनपुस्तकालय-हरत। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . १६] ܘ दिगम्बर जैन । ८० प्राणनको विनिपात । द्वेष कहांतें जात ॥३६ भूषण क्षमा पुमान । नीतिरत्न - माला - २. सर्वबैरको हेतु है, यातें त्रेधा जिन तनो, लज्जा भूषण पोषिता, भूषण धारण अन्यथा, विधवा बिंदु समान ॥ १७ दान भोग बिन जासदिन, गये जांयगे जांय | तिस धन जीवित इमनि फल, बिंदु अंक विहाय १८ अति परिचयतें मानक्षय, नवगुण पूजित होय | पुत्रे दोयज चंद्रमा, पूर्ण चंद्र नहिं कोय ॥ ३९ जलनिधि वेष्टित भूमिवर, वेष्टित गृह प्राकार । भूपाऽवरणित देश शुभ, लज्जाऽवरणित नार ॥ ४० गुप्त भेद सब मित्रसे, मत कहो नहीं विश्वाप्त । रोषित होय कदापि तौ, सबमें करै प्रकास ॥ ४१ शत्रु सहायक यूथमें, देखो जब सब मेल । सावधान है तब रहो, होय फूट तब केलि ४४ अंतर्कापिका=मोक्षप्राप्तिको पात्रको कौन चेतनावान सप्त तत्वको क्या करें, भव्य जीव सरघान ४ ३ महत्व बढ़नके अर्थ जो, करहैं बाद विवाद | बुद्धिमान विद्वानसे, जानो तिसधी छाद ॥४४ जावो जहां उपदेश हो, धर्मनीति अरु ज्ञान ४१ श्रेष्ठि सभा में बिन कहे, गये होय अपमान | शौर्य रणमें पुरुषको कोष हुवे विद्वान | विपति पंडे पर मित्रकी, स्वतः परष हो आन ॥ ४६ द्रव्य बंधु वय सच्च रेत, विद्या सब न प्रधान । मनुष्य प्रतिष्ठा वर्द्धिका, वस्तु पांच सुजान ॥ ४७ दान समा कोड पुन नहिं, लोभ समां नहिं पाप । सुक्ख नहीं संतोष सम, चित! सम संताप ॥ ४८ स्वहित आचरो परवथा किं बहु नलिकान | नहिं उय कोऊ इतो, तो सर्व पुमान ॥ ४९ १ भव्य २ जीव ३ सरधान । निरमलता जिम रत्नमें, विना शान नहिं होय । साधु प्रकृतितिम प्रकट, आपद बिन नहिं होय ॥ २३ जैसो चित तैसो बचन, यथा वाच तिम कर्म । मनवचतनत्रय एकता, साधुनको यह धर्म ॥२४ अंतर्लापिका न किसेको प्रथम, नमें किसे तीर्थेश | ध्यान स्मरण किने कब करें, अरहत सिद्ध इमेश ।। २५ बोध सुकृत धन दानहित, चिंता स्वात्मविचार । जीवन तिनको धन्य है, बाचा पर उपकार ॥ २६ सर्वावस्था सब जगह, गुणिजन पावत मान । मणिमूर्ध्निगल बाहुकर, पहनो तहां शोमान ॥२७ होय विवेकी धन हुवे, विनयि विद्यावान | जु रहित मान सत्ता मिले, चिन्ह महाजन जान ॥ २८ मागम साक्षी बिन करै, पावै सो अपमान । ज्योतिष वैद्यक धर्मको, निर्णय दंड विधान ॥ २९ दुर्जन ढूंढें छिद्रको व्यवसायी व्यापार । पाचक ढूंढ़े दानिको कामी कुलटा नार ॥ ३० ज्ञानि च सिद्धांतको, वेश्या घनिक महान | योगीजन एकांतको, चाहें ठग अज्ञान || ११ राजा स्त्री अरि सरप, योवन रूप निधान । वायु इन बसु बस्तुको करो प्रतीतक दान ॥ ३२ जहर शस्त्र विक्रय करै, चौर क्रूर मद पान | गर्भपाविनी स्वैरिणी, संगति करो कदान ॥ ३३ आतम विद्या हीनको, विद्या जाल निरर्थ । जैसे विधवा नारि तन, भूषण भूषित व्यर्थ ॥ ३४ धर्म र अरु काम शिव, इन जड जीवन जान । तिसरक्षक किन दियो, इरता क्यान इरान ॥ ३५ १ अरहत, २ सिद्ध, ३ अरइतसिद्ध हंमेश । [ वर्ष १७ Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंक १ ] दिगम्बर जैन | [ २७ SAKIMIKKEIIIX समय किसी आदमीने उन लोगोंको सलाह दी मिट्टी के उपचार । कि जुम्टके पास जाकर इसकी जांच कराई XRRATA जायगी तो अच्छा होगा। वैसा ही किया गया। जुने उस सर्प काटे हुए आदमीको पहिले मिट्टी में गडवा दिया और फिर इसके थोडी ही देर बाद निकाल कर देखा गया तो उसे सुध आगई थी । यह अघटित घटना है, परन्तु जुस्टको झूठ लिखनेका कोई कारण नहीं है । मिट्टीमें गडवानेसे बहुत गरमीका होना तो प्रकट बात है, परन्तु उस सांप काटे पर मिट्टींके अदृश्य जन्तुओंका क्या प्रभाव पडा, इसके जानने का कोई साधन नहीं हैं । तत्र भी इतना तो जान पडता है कि मिट्टी में विषको चूस लेनेका गुण है | इतना होनेपर भी जुट लिखता है कि किसीको यह न समझ लेना चाहिये कि सांप काटे हुए सभी मिट्टी इलाज से जी उठते हैं, परन्तु किसी खास मौकेपर मिट्टीका इलाज करना आवश्यक है । बिच्छू और ततैया के काटेवर मिट्टीका इलाज विशेष उपयोगी है। इनके डंकोंपर मैंने स्वयं परीक्षा करके देखा है कि इस इलाजसे तुरन्त लाभ हुआ है । ऐसे समय डंकपर मिट्टीको ठंडे पानी में मलकर गाढी पुलटिस बांत्र देनी चाहिये और उसपर पट्टी बांध देनी चाहिये । नीचे लिखे हुए उदाहरणों में मैंने मिट्टीके उपचारका स्वयं अनुभव किया है । दस्तवाले के. पेडूपर मिट्टीकी पुलटिस बांधने से दो तीन दिन में आराम हो गया है । सिरदर्दवालोंके सिरपर मिट्टीकी पुलटिससे तत्काल लाभ हुआ है । आंखोंपर मिट्टीकी पुकटिल बांधने से आंखों का मिट्टीके उपचारोंके सम्बन्धमें भी हमें थोड़ी बहुत जानकारो की आवश्यकता है; क्योंकि कितने ही रोगों में पानी के इलाज से भी मिट्टी के इलाज आश्चर्यकारक देखे गये हैं । हमारे शरीरका बहुतसा भाग मिट्टीका बना है, इस कारण यदि हमारे शरीरपर मिट्टीका प्रभाव पड़े तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। मिट्टीको सब पवित्र मानते हैं । दुर्गंध दूर करनेके लिये मिट्टीसे जमीन लीपी जाती है, सडी हुई जगह मिट्टीसे पूरी जाती है, हाथ मिट्टीसे साफ किये जाते हैं। यहांतक कि गुप्त अंग भी मिट्टी से पवित्र किये जाते हैं । इस देश ( नाताल ) के लोग फोडे फुन्सियों पर मिट्टीका प्रयोग करते हैं । मुर्दो को मिट्टीके भीतर गाडनेसे वे हवा को खराब नहीं कर सकते । मिट्टीकी इस महिमासे हम अनुमान कर सकते हैं कि मिट्टी में कितने ही खास और उत्तम गुणोंका होना संभव है । जैसे लुइकूनेने पानी के सम्बन्ध में बहुत विचार करके कितने ही अच्छे अच्छे लेख लिखे हैं वैसे ही जुस्ट नाम के एक जर्मनने मिट्टी के संब में बहुत कुछ लिखा है । उसका तो यहांतक कहना है कि मिट्टी के उपचारसे असाध्य रोग भी मिट सकते हैं । उसने लिखा है कि I एक बार उसके पास के गांव में एक आदमीको सपिने काट खाया था, बहुतसे आदमियोंने समझ लिया कि वह मर गया, परन्तु उस Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिगम्बर जैन । [ वर्ष १७ दर्द मिट जाता है। चोट लगकर सुनन चढः चाहिये। अगर मिट्टी में गोबर बहुत हो तो गई हो, या न भी चढी हो तो मिट्टीकी पुल. उसे काममें न लेनी चाहिये। मिट्टी बहुत टिपसे दोनों दर्द आराम हो जाते हैं । कई चिकनी न होकर थोडो चिकनी और रेतीली वर्ष पहिले मैं जब फ्रूट साल्ट लेता तभी अच्छा अच्छी होती है। उसमें किप्ती प्रकारका कचरा रह सकता था । १९०४ में मिट्टीकी उपयो- वगैरह न होना चाहिये। मिट्टीको बारीक चलगिता पर मेरा ध्यान गया और तमीसे मुझे नीमें छानकर सदा ठंडे पानी में भिगो रखनी फ्रूट साल्ट वगैरहके लेनेकी किसी दिन भाव- चाहिये । अटेको गूरनेसे वह जितना कठिन श्यकता न पड़ी। जिसे बद्धकोष्ट रहता है उसे रहता है उतनी ही कठिन मिट्टी भी रहनी पेडूपर मिट्टी की पुलटिस बांधनेसे बड़ा लाभ चाहिये । मिट्टी को बिना इस्त्री किये हुए साफ होता है । पेटमें दर्द होता हो तो मिट्टी बांध- बारीक कपड़े में बांधकर निप्त नगह मावश्यकता नेसे वह हलका हो जाता है । मिट्टोके बांधनेसे हो वहांगर पुटिसके माफिक उसका उपयोग अतिप्तार तक मिट जाता है। पेडू और सिरपर करना चाहिये । मिट्टी शरीरपर सुख न जाय मिट्टीके बांधनेसे जोरका बुखार भी एक दो घंटे में इसके पहिले ही उसे हटा लेना चाहिये । एक कम पड जाता है। फोडे, फुसी, खुजली, दाद वारकी पुलटिम साधारण तौरपर २-३ घंटेतक वगैरह पर मिट्टी धनेसे प्रायः बहुत लाभ चक सकती है। काममें आई हुई मिट्टी फिर होता है। फोडोंसे रसी निकलती हो तो मिट्टीकी काममें न लेनी चाहिये । काममें भाया हुआ उपयोगिता कम हो जाती है। जलेपर मिट्टो कपडा, यदि उसमें पीव, खून न लगा हो तो, बांधनेसे जलन कम हो जाती है और सुनन फिर काममें लाया जासकता है। पेडू पर मिट्टी नहीं चढती। मर्श (मसे ) वालेको मिट्टीका रक्खी हो तब उसपर एक गरम कपडा रखकर बांधना लामकारी है। पाला पडनेसे प्रायः हाथ, पट्टा बांध देना चाहिये। हरएक आदमी एक पैर सुर्ख होकर सुख माते हैं, उनपर मिट्टी डब्बे में मिट्टी भरकर रख छोडे तो उसे ठीक बांधने का असर हुए विना रह ही नहीं सकता। मौकेपर इधर उधर भटकने फिरने की आवश्य. खुनलीवाली बादीपर मिट्टी गुणकारी है। दुखते कता न पडेगी । उसे जब जरूरत पडेगी तभी हुए जोडोंपर मिट्टी लगानेसे तरन्त लाभ होता वह उस मिट्टीको काममें का सकेगा । बिच्छूके है। इस तरह मिट्टीके बहुत से प्रयोग करने पर डंकपर जितनी जरदी मिट्टी रक्खो जासके, मुझे मान पडी है कि घरू इमानके तौरपर उतना ही अच्छा है। "जयानीप्रताप "" मिट्टी अनमोल चीन है। सब प्रकारकी मिट्टीका एकसा गुण नहीं होता। पवित्र काश्मीरी केशरसुर्ख मिट्टी विशेष गुणकारी जान पडी है। का भाव ३) फी तोला है। मिट्टीको हमेशा अच्छी जगहसे खोदकर लानी मैनेजर-दि० जैन पुस्तकालय-सरत। Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ જ ૧ ] दिगम्बर जैन । ©©©©©©©©©©© કર્યું” કે જે સોનું તોલા ૪૦) વરવાળે આપવાનું © જ્ઞાતિતંત્ર કહે તે વિવાહ કરીએ. અમારે સેનું ઘરમાં મુકવું નથી પણ એ તો જોઈએ. લગ્ન થાય તે પહેલાં તે સોનાના દાગીના જોઈએ એવું તો લખી આજકાલ ગરમીની રજાઓ હોવાથી વિદ્યા- આપે અને ટી2 લગાવી સહી કરી આપે તો ર્થીઓ પોતાની માતૃભૂમિએ ગયા હતા, તેથી વિવાહ કરીએ. આવી વાત સાંભળી મારા ભાઈબંધ કામકાજ છું હોવાથી અમે દરરોજ સાંજે રેલવેના અને હું તે આશ્ચર્ય થઈ ગયા. મારા ભાઈબંધને કે સબ સુધી મિત્ર સાથે ફરવા જતા હતા. આજે ત્રણ પુત્ર અને એક પુત્રી હતી અને સાધારણ રવિવાર હોવાથી રાત્રે અમારા યુવક મંડળની સ્થિતિના હતા. અને સર્વે ભેગા થઈ વિવાહ સભા હતી તેથી અમે વહેલા ફરવા જવા ઇછતા કરે કે નહિ તેને વિચાર કરવા લાગ્યા પરંતુ હતા. રસ્તામાં ચાલતાં ભાઈ છગનલાલ અચાનક ગામના આગ્રહથી ત્રીજે દિવસે વિવાહ કર્યો અને મળી ગયા અને તે સાથે વાર્તાલાપ કરતાં રેવે ગોળધાણા આપી નક્કી કર્યું. કોસીંગ સુધી ગયા. ઝાડની ઘટાને લીધે ઠંડા મણિલાલ-વાહ! વિવાહ તે બહુ સારી રીતે પવનનાં મોજાં આનંદ આપવા લાગ્યાં એટલામાં થયો. તમે કહો છો કે ભાઈબંધ ની સ્થિતિ સાધાનીચે પ્રમાણે વાર્તાલાપ શરૂ થયઃ રહ્યું છે. વળી ત્રણ પુત્ર તેમજ એક પુત્રી છે તે મણિલાલ-કેમ ભાઈ છગનલાલ ? હાલમાં તે સેનું કયાંથી લાવીને આપો? જરા તો વિચાર તમો કરવા આવતા નહેતા તેનું શું કારણ? કરો કે બીજા છોકરાઓની સ્થિતિ શું થશે ? પ્રકૃતિ તો સારી હતીને? તમારા ભાઈબંધના ઘરના છાપરા ઉપર નળીયાં છગનલાલ-ભાઇ મણીલાલ! મારી તબીઅત કેટલાં છે? તે સારી હતી, પણ ગરમીની રજાઓને લીધે હું આપણી જ્ઞાતિમાં દિવસે દિવસે સુધારા તે મારા ભાઈબંધને ત્યાં મળવાને માટે ગયા હતા, પ્રથમ કરતા સારા થતા જણાય છે. આવા સુવાએટલે લગભગ પંદર દિવસ ત્યાં રહ્યા હો, તેથી રાથીજ આપણી જ્ઞાતિની ચઢતી થવા વકી છે. તમને મળી શક્યો નથી. ઠીક રીવાજ તે સારા થયે ! ભાઈ છગનલાલ, મણિલાલ-ભાઈબંધને ત્યાં ગયા પડ્યું ત્યાંના વર તેમજ કન્યાની ઉમર કેટલી છે ? બંનેએ નવાજીની સમાચાર તો જણ્વશે કે નહિ ? કંઈ અભયાસ બીજે કરેલો છે કે નહિ ? આટલા બધા દિવસ મળવાનું કેવું હોય ? છગનલાલ-માઇ, લગ્ન વખતે કોકના ત્યાં છગનલાલ-ભાઈ, મારે તે ત્યાં ફકત ત્રણું ઘર ગીરો મુકી દાગીને બનાવીશું અને કન્યા દિવસ રહેવાનું હતું પરંતુ ચોથા દિવસે મારા આવશે ત્યારે દાગીના લઈ લેઈ ગીરોવાળાને ત્યાં ભાઇબંધના છોકરાના વિવાહ કરવા સારૂ કેટલાક વેચી મારીશ. વળી કન્યાવાળા તે કહેતા હતા. ખાપણી જ્ઞાતિમાંથી આવ્યા હતા, અને તે કારણ કે બીજી છોકરાએ ભલે ભીખ માગે પણ અમે લીધે વધુ દિવસ રહેવું પડ્યું. તો લખ્યા મુજબ કરીશું. વળી વર તેમજ કન્યાની મણિલાલ ત્યારે તે તમારે મિષ્ટાન્નપાણીની ઉંમર પુછવાની નથી. કારણ કે એ તે લાકડે માંકડું બહ લહેજત પડી હશે ! વિવાહ કેવી રીતે કર્યો વળગાડયું છે. ભલે વર કાણું હોય કે પછી તે વાંધો નહિ હોય તો જણાવશે. કન્યા બબડી હોય. ભણવાની બાબતમાં તો બંને છગનલાલ-ભાઈ વિવાહની તો વાતજ કહેવાની જણ પારંગત થયેલાં છે એટલે તે તે પુછવાનું નથી. પહેલે દિવસે વિવાહ કરવાવાળાઓએ મનમાં રહ્યું જ નથી. કંઈ ગુપચુપ ચલાવ્યા કર્યું અને છેવટે જાહેર મણિલાલ-ભાઈ, ત્યારે તમારાથી આ બધું Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૧૦ ]. ફિશર મીના [વર્ષ ૧૭ P સહન કેમ થયું ? વિવાહ ત ન ક થઈ છે કે છગનલાલ-અમે જ્યાં જાન લઈ જવાના હતા હજું કંઈ બાકી રહી ગયું છે? ત્યાં આપણે જ્ઞાતિવાળાંની વસ્તી રાંડરાંડ બાઈઓ ' છગનલાલ-જે સહન ન કરૂં તે તે વખતે સાથે દશ કે બાર ધરની હતી. અને તેથી ખરી શું કરું ? આ તે હજુ બોલ બેલ્યા છે. કાગળ તો ફકત ત્રણ કે ચાર મણનું હતું, પરંતુ કન્યા લખવાના બાકી છે. બે એક મહિના પછી સારો વાળો જેમ કહેશે તેમ તે પીને ઉપયોગ થશે. દિવસ એટલે કે સોમવાર આવતાં અઠવાડીયું લાગે - મણિલાલ-કન્યાવાળો મરજીમાં આવશે તે તેવું મુરત કાઢી પચીશ, ત્રીસ માણસ મારા પ્રમાણે ઉડાઉ ખરય કરાવી પોતાની દીકરીનાં ભાઈબંધને ત્યાં આવશે. પહેલે દિવસે કંસાર, ઘરમાંથી પસા કઢાવે છે. તેની ધૃણ જરા પશુ બીજે દિવસે શીરોત્રીજે દિવસે માલપુઆ એમ નથી આવતી કે શું ? આના કરતાં દાપાન રૂપીઆ ફરતું જમણ જમશે અને આખો દિવસ ખાટ- લેવા તે વધારે સારૂ છે. ' લામાં સુઈ રહી દિવસે પસાર કરશે. તેમાં જે છગનલાલ-તમારું કહેવું યથાય છે, પણ વળી નવરાશ મળશે તો ગપગેજેટ ચલાવી કોઈનું તેમનું કહેવું તે એમ છે કે ભલે દીકરી ઘેર જઈ નોદ કાઢશે. આવી રીતે પીપળાનું અઠવાડીયું છીછયા લે પણ અમારે તે પટેલીયા, દરજી, સુતાર, પુરૂં થશે એટલે હુ ઘેર જશે. લુહાર વિગેરેને અમારી મરજી પ્રમાણે આપવું મણિલાલ-ત્યારે તે ભાઈ તેઓ ચેમાસાના પડશે. અને આગળ સીધું મોકલાવ્યું છે, તેને નવરાસના દિવસોમાં અવશે, એટલે ચતુર્મસ પણ તેવી જ રીતે ઉપયોગ થશે. હોવાથી દેવદર્શન સારી રીતે થઇ શકશે. - મણિલા-આ તો બધું સાંભળ્યું. પ્રિક, પશુ - છગનલાલડા ભાઈ હા, ચોમાસાના નવરા- તરવા ના નેવરી- વરવાળાએ જાન કાઢી વરઘોડો ફેરવ્યું તે પી બીના શના દિવસેામાં આવશે, એટલે ખાઈ પી એશઆ... તો રહી ગઈ. રામથી સુઈ રહેશે. દેવદર્શનને બદલે કોઇની ખાટી છગનલાલ-વરઘોડે વદી ૮ ન હતા. તેમાં કથલી કરી પાપ ધોઈ નાખશે કારણકે ધોબી તો પંચની રજા જોઈએ તે તે ઠીક વાત છે, પણ પૈસા આપીએ તે કપડાં ધુવે અને આ તે વગર દશ દશ વખત ફેરા ખાઈએ તે પણ ભેગું તે જેસે પાપ ધોવાય. મોટી મોટી પાડીઓ બાંધી થાયજ નહિ. વળી જે દિવસે જન કાઢી ત્યારે તે આ વખતે આવશે અને મેજમજા ભેગવશે. હમારા પગ ફરી ફરીને થાંભલાજ થઈ ગયા. કમાડ મણિલાલ-બળી તમારી મેજમજા. એવી પાછળ કથળે મુકી ના, હા, કરતાં જ્ઞાતિવાળામોજમજાને નાખે ખાડામાં. મને તે એવી વાતો અને જાનમાં લઈ ગયા. સાંભળીને કંટાળે ઉપજે છે. મણિલાલ-જાન જે લંબાણુની હોય તે રસ્તામાં - છગનલાલ-આટલાથી તમે શું થાકી જાવ કંઇ જમાડવું પડે કે નહિ ? છે ? હજી આગળ સાંભળશે એટલે વધારે જાણુ છગનલાલ-અલબત, તે તે કંઈ ચાલે ખરું કે? વાનું મળશે. વિવાહ કર્યા પછી અમો અમારા રસ્તામાં વખત થાય એટલે ખીચડું નાખવું જ ભાઈબંધ સાથે તેમના સાળાના લગને ગયા. લગન પડે. તેમાં જે ભાગોગે શાક મળી આવે તો વિશાખ વદી ૧૧નું હતું. જાન વદી ૧૦ ના રોજ ખીચડું પણ જમે નહિ અને વરવાળાને ખરા જવાની હતી. લગન પહેલાં ઘીના ઠરબા ૨૦ તા૫માં ત્રાહે ત્રાહે પિકરાવે. તથા બીજે સીધાને સરસામાન સાથે ત્રણ ગાદલાં - મણિલાલ-ખરેખર આવી રીતે જ આપણી ભરાવી પહેલાં મોકલી દીધાં હતાં.. ઉન્નતિ થઈ શકશે ! વરવાળાને મદદ કરવાનું તે - મણિલાલ-આટલા બધા ડાબડા લઇ ગયા રહ્યું પણ તેનાથી ઉલટું તેને હેરાન કરશે હતા એટલે હું ધારું છું કે ત્યાં સાઇ, સીત્તેર રીવાજ તો આપણી જ્ઞાતિમાંજ છે. ઠીક છે થરની વસ્તી હશે ? આગળ ચાલવા દે, Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ME श्री महावीर जयन्ती १७ एपिल सन् १९२४ ई० को। वीर शासनकी पताका फहरा दो। समय सदा एकसा किसीका नहीं रहता । उत्थान, पतन, उन्नति, भवनतिका चक्र 'सदेव घूमता ही रहता है। किन्तु हमारी जैन समाजके ह्रासकी गति विधि ही निराली है। सबसे हाम मार्गपर इसने कदम रक्खा है, यह गिरती ही जा रही है । दशा यह है कि उसके मस्तित्वके अभावका प्रश्न सन्मुख है और उसे जैसे उसका पता तक नहीं है। -मिरना बुरा नहीं । जो चढ़ते हैं वे ही गिरा करते हैं। जो गिरते हैं वे ही बढ़ा करते हैं। किंतु यदि गिरा हुमा व्यक्ति अपने विगत गौरवका विस्मरण करदे, वह अपनी पतित अवस्थामें ही उद्धार समझ ले, तो उसका उत्थान असम्भव है । उसका पतन चरम सीमा तक हो चुका समझना चाहिये । दुर्भाग्यवश हमारी जैन समाज की अवस्था भी ऐसी ही हृदय-विदारक होती जारही है । भानसे ११५० वर्ष पूर्वकी बात है । भगवान महावीर मपने दर्शनोंसे धरणीतकपर शांवि-सौख्य वृष्टि कर रहे थे । प्राचार्य मुनिवृन्द बिहारकर ज्ञानामृत बरषाके साथ साथ धर्म-प्रभावना करते थे । सारे संसारमें हिंसाधर्मकी पावन-पताका फहरा रही थी। हां, हां, वीर शासनकी जयजयकारसे वायुमंडल गूंज रहा था। उसके पश्चात हमारे पूर्वनोंने धर्म चारित्रको पाला, और साधिकार वीर जयंती मनाते रहे। ___ पतनका प्रारम्भ हुआ और जैन समाजमें भेद-भावकी वृद्धि हुई । बात यहांतक बढ़ी कि एक सम्प्रदाय दुसरे सम्प्रदायके परम शत्रु बनते गए और आज वे धर्मके नामपर निस अंतःकलहके रक्षक बन रहे हैं उसका विचार सच्चे धार्मिकके हृदयमें गहरी चोट पहुंचाये विना नहीं रह सकता। देखें कहीं पूर्वज हसारे स्वर्गसे आकर हमें । भांसू बहावें शोकसे इस वेषमें प्राकर हमें ॥ . इधर हम भेदभावकी चक्कीमें पिस रहे हैं । उधर समय अपने तीक्ष्ण प्रहार करने पर तुला हुआ है । जैन समाजका मस्तित्व उसका महत्व और अधिकारकी स्वीकृति तकमें क्या सरकार क्या कांग्रेस-हर स्थल पर उपेक्षा की जारही है। और यह हमारा अपना दोष है कि हम इस बेवसीकी दशासे छुटकास पाने के लिए बेदार नहीं होते। - वह जातियां जिनका उत्थान असम्भव समझा जाता था, आन दौड़ लगा रही हैं। भेद-भावका क्रीणास्थळ हिंदू :माज सजग होगया है। संख्या वृद्धिके महत्वको उसने समझ लिया है । यवन अपनी उन्नतिके लिए कितने बेदार हैं ! संगठित ईसाई Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "Digamber Jain" Regd. No. B. 744. और आर्य समाजकी तो आज जैसे बन पड़ी है; इने गिने सिक्खों की सीख जातीयताका कैसा आदर्श रख रही है, मगर जैन समाजकी गंगा उलटी ही बह रही है / उसकी पाचन-शक्ति विनष्ट होचुकी है। यदि अब हम जीना चाहते हैं ? PMA जैसा कि श्री महावीर जयन्तीकी हलचलसे परिलक्षित होता है, तो कमर कसकर कर्तव्य-क्षेत्रमें अवतीर्ण होना पड़ेगा। अपनी आन्तरिक और बाह्य विरोधी शक्तियोंसे डट 16 कर मोरचा लेना होगा। अब समय नहीं रहा कि सब अपनी 2 ढपली और अपना 2 राग अलापकर अपना अस्तित्व कायम रखा जासके / विशाल जैन जगतके निर्माणके लिए हमें रमपने हृदयोंको विशाल बनाना चाहिये / व्यक्तिगत स्वार्थियोंकी स्वार्थसाधना वीर-शाप्सन की प्रभावनामें बाधक नहीं होसकती। श्री महावीर भगवान, दिगम्बर, श्वेताम्बर, स्थानकवासी सबके समान पूज्य हैं / उनके 8 वियोगके पश्चात् ही हम अभागे प्रथक श्रेणीवृद्ध होगये हैं। आओ! जागृत जैनसमाजके आधारभूत वीरो, आओ !! बिछड़े भाई वीर भगवान के नामपर गले मिलने का आयोजन करें। भगवान वीरके समयकी ओर बढ़नेके लिए-ऐक्यसुत्रमें बँधनेके लिए-फिर आगे बढ़े। यही उपयुक्त समय है जब कि जैन मात्र एक होकर श्री महावीर जयन्ती मनावें / और प्रत्यक्ष करदें कि मतभेद होते हुए भी हमारे हृदय एक हैं और अहिंसा धर्मके प्रचार के लिए हम सब एक ही हैं / इसके लिए ऐमा संगठन वांछनीय है जहां दिगंबर, श्वेतांचर, स्थानकवाली समस्त जैन बांधव प्रेमसे मिलकर जातीयता और जैनधर्म प्रचार की चेष्टा कर सकें। श्री भारत जैन महामण्डल-ही एक ऐसा संगठन है जिसके द्वारा हम अपना लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। इसके उद्देश्यः 1. जैन समाजकी एकता व उन्नति / 2. जैनधर्मकी रक्षा व प्रचार हैं अतएव सर्वाङ्गापूर्ण जैन धर्मकी छाप संसारके हृदयपर लगाने तथा जैन समाजकी स्वत्वरक्षाके लिए यह आवश्यक है कि सब सम्प्रदायके जैन बंधुओंकी सम्मिलित शक्तिसे श्री भारत जैन महामण्डलकी शाखाएँ स्थान 2 पर खोली जाय।। वीर भगवानके भक्तों ! आओ-विशाल मैन जगतके निर्माण में सहायक होकर सच्ची महावीर जयंती मनाने के अधिकारी बनो ! श्री भारत जैन महामण्डकके विषयमें विशेष जानने के लिए निम्न पनेपर पत्र व्यवहार कीजिये: चेतनदास, बी० ए० प्रधान मंत्री, भारत जैन महामंडल, हेडमास्टर, गवर्नमेन्ट हाईस्कूल- मथुरा / "जैनविजय " प्रिन्टिग प्रेस खपाटिया चकला-सूरतमें मूलचंद किसनदास कापड़ियाने मुदित किया भार "दिगम्बर जैन" आफिस, चंदावाड़ी-सूरतसे उन्होंने ही प्रकट किया।