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________________ अंक ५ ] दिगम्बर जैन । व्याख्यान-- बेरिस्टर चंपरायजी, स्वागत सभापति सं० प्र० दि० जैन सभा अधिवेशन-प्रयाग। सज्जनंगण उपस्थित बन्धुओ, शुष्मना नाड़ियों के संगम स्वरूपको अपने रूप ___माजका दिन मेरे लिए बड़ा हर्षप्रद है कि द्वारा दर्शाती है जिसके मज्जन करनेका भाव मुझे जैन होस्टेल इलाहाबादकी ओरसे यु० केवल मूलाधार चक्रमें ध्यान द्वारा स्नान करपी. जैन सभाके स्वागत करनेका सौभाग्य प्राप्त नेका है ताकि विषयवासना शांत होकर कर्मलेप हुआ है । स्वागतका सम्बन्ध चार बातोंसे हुमा मात्मासे धुलकर छूट जाय । अतः जिस स्थान करता है । (१) स्थान (२) काल अर्थात समय पर स्वागत मनाया जा रहा है वह अपने महा(३) भागन्तुक (जिसका स्वागत किया जाय) रम्यकी अपेक्षासे निराली ही छवि रखता है। और (१) स्वागत करनेवाला । यहाँपर चारों दूसरी बात स्वागतके कालसे सम्बन्ध रखती मङ्ग स्वागतके श्रेष्ठतम हैं। है। यह स्वयंसिद्ध है कि कोई अवप्तर संसाप्रथम स्थानकी ओर ध्यान कीनिये जो प्रया- रमें देवाधिदेव श्री १००८ भगवान महन्तदेगरानके नामसे जगतप्रसिद्ध है। वर्तमान ब प्रत्यक्ष या परोक्ष रूपमें विराजमान होनेके भवसर्पिणीमें प्रथम पुज्य क्षेत्र प्रयागरान ही है। पयसे अधिक शुभ और मंगलकारी नहीं हो इसी क्षेत्रमें प्रथम पूज्य तीर्थकर भगवान श्रीता है । मेरे वक्तव्यका अवसर भी ऐसे ही मादिनाथस्वामीने तप धारण किया था और य प्राप्त हुआ है कि जिस समय प्रत्यक्षमें इस प्रकार इसको सदैव कालके लिये पवित्रता- नहीं परन्तु परोक्षमें साक्षात् मिनेन्द्र देव का पात्र तथा पूज्य बना दिया। यहांकी त्रिवेणी सर्व रूपमें यहां विराजमान हैं। और चूंकि अर्थात् गङ्गा, यमुना, सरस्वतीका संगम साक्षात् म अवसर अर्हन्त भगवानकी वेदी प्रतिष्ठाका सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्रके संगमरूपो धारा है इसलिए सर्वाश और सर्व-देश मंगलमय प्रवाहकी और संकेत करता है मानो मोक्षमार्गको है। हमारे हिंदू भाइयोंको भी ऐसा शुभ अवस्पष्टतया दर्शा रहा है। यही संगम दुसरे सर वर्षों पीछे प्राप्त हुआ है कि अर्धकुम्भ पर्व अर्थमें हमारे हिन्दू भाइयों के मुख्य तीर्थस्थानों. अनुमानतः एक माससे भारम्भ है और अभी मेंसे एक है जिसके मज्जनके लिए देश-देशा- कुछ दिनों रहेगा । इसलिए समय भी अत्यन्त न्तरके यात्री एकत्रित होते हैं और स्नान शुभ और लाभदायक है। नमस्कार द्वारा आत्मिक पवित्रता और शुद्धताको तीसरी बात आगंतुकके गुणोंसे सम्बन्ध रखती प्राप्त करनेकी इच्छा प्रगट करते हैं । योगि है । सो जगत्में अहिंसात्मक धर्म सर्वश्रेष्ठ माने, योकी भाषामें यही त्रिवेणी इड़ा, पिङ्गला और गये हैं, उनमेसे वह जो अहिंसा व्रतका सर्व
SR No.543195
Book TitleDigambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1924
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size7 MB
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