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________________ mm दिगम्बर जैन । [ वर्ष १७ अर्थात् गर्भ ग्रहण करनेके एक प्रहर पश्चात् पदार्थों का भोजन करके दोनों ही सुंदर सुगघिसे स्त्रीको शीतल जलसे अपने नेत्र, मुख और सुशोभित होकर उत्तम बिछौने वाली शय्यापर योनि आदि अङ्ग धोने चाहिए। ___शयन करें। उसपर प्रथम पुरुषको दाहिने पांवसे ___"अत्रात्यशिता क्षधिता पिप सिता भीता और फिर स्त्रीको वाम पांवसे चढ़ना चाहिए। विमनाः शोकार्ता क्रुद्धा चान्यञ्च पुमांस- इसके पश्चात् उस शय्यापर बैठकर दोनों " ॐ मिच्छन्ती मैथुने चातीकामा वा नारी गर्भ अहिरसि आयुरसि" इत्यादि मंत्रको पढ़कर न धत्ते, विगुणां वा प्रजां जनयति ।" सहवास करें। ___ अर्थात् जिस स्त्रीने अत्यन्त भोजन किया हो “सा चेदेवमाशासीत ।" या जो भूखी, प्यासी, भयभीत, मैथुनकी इच्छा अर्थात् स्त्री यदि इस प्रकारकी इच्छा करे न करनेवाली अथवा दूषित मनवाली, शोकान्वित कि मेरे उन्नतिशील, श्वेतवर्णवाला, सिंहके क्रुद्ध, अन्य पुरुषकी इच्छा करनेवाली अथवा समान पराक्रमी, सदाचारी, तेजस्वी,पवित्र और अत्यन्त कामातुरा हो, वह स्त्री गर्भको धारण सतोगुणी पुत्र उत्पन्न हो तो उसको ऋतुस्नानके नहीं करती। यदि कदाचित् ऐसी स्त्रीके गर्भ पश्चात् शुद्ध होकर जौ के सतुओंका मन्थ बनास्थित हो भी जाय तो कुरूप और विगुण कर उसको घृत और एक वर्णके बछड़े सन्तान उत्पन्न होती है। ___वाली गायके दूध मिलाकर चांदीके अथवा " अतिबालामतिवृद्धां दीर्घलोमिनीमन्येन र कांप्तीके पात्र में करके प्रतिदिन प्रातःकाल सात पा विकारेणोपसष्ट वर्जयेत् ।" दिन तक पान करना चाहिए और शालिचाव अर्थात् अत्यंत छोटी अवस्थाकी, अत्यंत वृद्धा लोका भात या यवान्न अथवा दही, दूध और बड़े बड़े वालों वाली और अन्य किसी आर घृत इनको एकत्र मिलाकर सेवन करना चाहिए। भयङ्कर रोगसे ग्रसित स्त्रीसे सहवास नहीं । “ तथा सायमवदातशरणशयनासनयानवकरना चाहिए। । सन भुषणवेषा च स्याव" " पुरुषेऽप्येत एव दोषाः । अतः सर्व 4. अर्थात् इसके अनन्तर स्त्री सायङ्कालमें पवित्र दोपवर्जितौ स्त्रीपुरुषो संमृज्येयाताम् । . और सुसज्जित गृहमें उत्तम शय्यापर शयन अर्थात् पुरुषके भी यदि ये समस्त दोष हों ! करे, शुद्ध आसन आदिपर बैठे, पवित्र वस्त्र तो उसको भी स्त्री संसर्ग नहीं करना चाहिये। हय। और उत्तम माभूषणोंसे अलंकृत होकर वेशइसलिए सर्व प्रकारके दोषोंसे रहित स्त्री-पुरु- विन्यास करे । षोंको सहवास करना चाहिए। " सायं प्रातश्च शाश्वत् श्वेतं महान्तमव " सजातहर्षों मैथुने ।" ममाजानेय हरिचन्दनाङ्कितं पश्येत् ।" ___ अर्थात् स्त्री और पुरुष दोनों ही परस्पर अर्थात् वह स्त्री सायङ्काल और प्रातःकालमें हर्षसहित मैथुनकी अभिलाषा करनेपर हितकर नित्य श्वेतवर्णवाले और बड़े भारी शरीरवाले
SR No.543195
Book TitleDigambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1924
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size7 MB
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