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________________ अंक १] दिगम्बर जैन [ १९ जातिके साथ सहवास करनेके लिए विशेष KKKKKKKKKKKIX सहवासके नियम । 985 उत्सुकता होती है । इस प्रकार ऋतुकाळ अथवा किसी विशेष समयके सिवा उनके और किसी समय भी सहवास करनेकी इच्छा प्रकट नहीं होती । यहां तक कि उक्त विशेषकालके अतिरिक्त और किसी समय में यदि पुरुष जातिका प्राणी सहवासकी इच्छा से स्त्रीजातिके निकट जाता है तो वह तत्काल उससे लड़ने को तैयार होजाता है । इसीलिए प्रकृतिने सृष्टिकी रक्षा के लिये मनुष्य पशु पक्षी, कीड़े मकोड़े आदि समस्त संसारके प्राणियोंके सहवास के सम्बन्धमें समय निर्दिष्ट कर दिया है किन्तु मनुष्य जो सबसे उच्च श्रेणीका प्राणी है उसने इस अत्यन्त तुच्छ और शरीरनाशक क्षणिक सुखमें मुग्ध होकर अपने आपको पशुसे भी नीच बना लिया है और फिर भी कुछ लज्जा और घृणा नहीं करता, यह कितने आश्चर्य और सन्तापका विषय है। जो क्षुद्र जीवजन्तु पलभर में जलकी तरंगकी समान जीवनयात्राको समाप्त करके अनन्तकालके गर्भमें लीन होजाते हैं वे भी सदैव नियमानुकूल चलते हैं; किन्तु १०० वर्षको आयु प्राप्त करनेवाला तथा अत्युन्नत मस्तिष्कवाला मनुष्य यदि निर्बुद्धे होकर क्षणिक और अतितुच्छ सुखकी खोज में सदैव लगा रहे तो उसका मनुष्य जन्म इतर प्राणियों के जन्मसे भी अधम समझना चाहिए । जो इन्द्रिय स्वर्गीय महान् उद्देश्य (उत्तम सन्तानकी उत्पत्ति ) की सिद्धिके लिए व्यवहृत होनी चाहिए, उसका दुर्व्यवहार करना कितना निन्द्यकर्म है । इस विषयपर विचार करनेसे मालूम होता है कि हमने महापापी 1 ARAKANKAA हमारे अस्तित्त्वकी रक्षा के लिए प्रकृतिने हमको जननेन्द्रिय और उसको यथाविधि संचालन करके उत्तम सन्तान उत्पन्न करने की प्रवृत्ति प्रदान की है । उत्तम सन्तान उत्पन्न करनेके सिवा सहवासका और कोई उद्देश्य नहीं है। केवल इन्द्रिय सुखके लिए सहवास करने की प्राकृतिक आज्ञा नहीं है । इन्द्रिय सेवनसे उत्पन्न हुआ सुख अत्यन्त तुच्छ और क्षणस्थायी होता है । इस कारण इस प्रकार के क्षणस्थायी और सामान्य सुखके लिए अनियमित इन्द्रियसेवनके द्वारा शरीरका क्षय करना महान् अन्याय और महत्पुरुषों की आज्ञा भङ्ग करना है । सहवासकी इच्छा और तज्जनित सुखका जो अनुभव होता है, वह केवल सन्तान उत्पन्न करनेका सहायक मात्र है। पशु, पक्षी और छोटे छोटे जीव, जन्तु आदि जितने भी संसार में प्राणी हैं, उनको देखने से यही मालूम होता है कि ईश्वरने एकमात्र सन्तानोत्पत्ति के लिए ही कामेन्द्रिय और कामेच्छा प्रदान की है, केवल विषयसुखके लिए नहीं । हाथी, घोड़ा, बैल, भैंसा, कुत्ता आदि प्राणि योंकी सहवास प्रणालीको देखनेसे स्पष्टरूपसे समझा जासकता है कि स्त्रियोंके जैसे ऋतुधर्म होता है, उसी प्रकार अन्यान्य स्त्रीजातिके प्राणियों को भी ऋतुधर्म अथवा किसी विशेष प्रकारका परिवर्तन होता है और उनके पुरुष
SR No.543195
Book TitleDigambar Jain 1924 Varsh 17 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1924
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size7 MB
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