________________
१४ ]
दिगम्बर जैन ।
[ वर्ष १७ महाभारतके समयमें धनुष विद्या एक वैज्ञानिक कि बाणमें से किसी प्रकारसे सर्प निकल निकलविभाग था। इसको शिष्य वर्षों गुरुओंसे सीखा कर मनुष्योंको लिपट जाते थे और फिर गरुड़ करते थे। एकएक बाणमें वह शक्ति थी कि पक्षी आनकर उन स निगल जाते थे। उसके द्वारा शत्रुओंकी समस्त सेनाको बांध इसी भांति और विद्याये और कलायें भी नष्ट सक्ते थे और इसी प्रकार उनको बँधी दशासे. हो गई हैं। मुक्त भी कर सकते थे | क्या यह लोग जो नियम यह है कि के लिये पूर्णतया वर्षों गुरुओंसे धनुषविद्या सीखा करते थे केवल धर्मका पालना और उसका रक्षा उसी समय निशाना लगाना ही सीखते थे ? नहीं, नहीं ! सम्भव है जब कि वह अपनी चतुरतासे अन्य निशाना लगाना कोई ऐसी कठिन बात नहीं पुरुषोंके हृदयोंपर अपने धर्मका प्रभाव डाल है जिसके सीखने के लिये किसी गुरुकी आब- सके ताकि उनके हृदयों में भी उसके धर्मकी श्यकता पड़े या जो वर्षों में भी न आवे। हालके श्रेष्ठता अंकित हो जाय । मनुष्यके हृदयमें यौरुपीय महा संग्रामके शस्त्रोंपर ध्यान देनेसे दूसरे धर्मके लिये आदर उसी समय उत्पन्न विदित होता है कि बाणविद्या में Chemistry होता है जब कि उसके नियम उसके मक्ष को भी बहुत कुछ दखल था। बाण इस प्रका- इस प्रकार दर्शाये जायं जिनको उसकी बुद्धि रका बनाया जाता था कि जिप्तमेंसे मालूम तुरन्त ग्रहण करले और जिन पर वह चारित्र. होता है कि एक प्रकारका माद्दा निकलकर या सोपानकी प्रारम्भिक पैड़ियोंमें पहनमें ही पदाफूटकर फैल जाता था और निस मनुष्यसे र्पण कर सके । उपदेश भी उसी समय लाभउसका स्पर्श होता था उसके जोड़ जोड़ दायक और ग्राह्य होता है जब उस पर अमल शिथिल हो जाते थे। इसी कारणसे उसका करना सहज ही में सम्भव हो। पारिभाषिक नाम 'नागपाश' रक्खा गया था। उदाहरणके तौर पर, वर्तमानकालमें विलायती यह बाण 'गरुड़' बाण द्वारा शांत किया जाता अशुद्ध खांडका कुछ ऐसा प्रचार हो गया है था। 'गरुड़' बाणमें मालूम होता है कि ऐता कि करीब २ प्रति स्थानमें उसीका प्रयोग होता है। कीमियाई मसाला मरा जाता था जिसके प्रभा. जैन और अजैन कदाचित् ही कोई उससे बचा वसे नागपाश द्वारा उत्पन्न हुई शिथिलता तुरंत होगा। अव्वल अव्वल इसका अत्यन्त विरोध नष्ट हो जाती थी। इसी तरह पर बहुत प्रका- हुमा था मगर सस्ती और सफेद होनेके कारण रके बाण बनाये जाते थे। यह बाणविद्या तो इसका रिवाज चल पड़ा। वास्तवमें यह अत्यंत अब सर्वथा नष्ट हो गई है और इस हद तक मनिष्ट पदार्थ है परन्तु क्या इसके विरुद्ध केवल इसका लोप हो गया है कि अब ' नागपाश' उपदेशका कोई फल होता है ? नहीं ! क्योंकि
और 'गरुड़ ' बाणके अर्थ शब्दार्थमें लगाये मिठाई खाये विना सर्व साधारणका काम नहीं जाते हैं। कोई कोई तो यहां तक समझते हैं चलता और शुद्ध मिठाई मिलती नहीं। घी की