Book Title: Vrundavanvilas
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Hiteshi Karyalaya

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Page 12
________________ कविवर वृन्दावनजीका था!" तव साहबने कहा, “तुम क्या कहटा था, हम सुनना चाहटा । है।" इसपर कविवरने सारी विनती साहवको पढ़कर सुनाई और उसका अर्थ भी समझाया, जिससे पाषाणहृदय अग्रेजका हृदय भी पिघल गया। उसने उसी समय तीन वर्षकी जैलको एक महीनाकी कर दी । और कहा, एक मास पूर्ण हो जाने दो, दो चार दिन बाकी है । इस वीचमें। * आप दिनभर चाहे जहा रहैं, परन्तु रातको जैलमें आकर सो रहा करें। कविवरकी इसी घटनासे "हे दीनबंधु श्रीपति" की विनतीका माहात्म्य इतना बढ़ गया कि, आज वह सारे जैनसमाजमें घर घर गाई जाती है। * और संकटमोचनस्त्रोत्रके नामसे प्रसिद्ध हो गई है। जैल जानेकी घटनाके कविवरकी कवितामें बहुतसे प्रमाण मिलते हैं, जिनमेंसे हम थोड़ेसे यहा उद्धृत करते हैं: "अव मोपर क्यों न कृपा करते, यह क्या अंधेर जमाना है। * इन्साफ करो मत देर करो, सुखवृन्द भरो भगवाना है ।" (पृष्ट २) "वृषचन्दनन्दवृन्दको, उपसर्ग निवारो।" (पृष्ठ २०) । "इस वको जिनभक्तको, दुख व्यक्त सतावै। ऐ मात तुझे देखके, करुणा नहीं भावै ॥" "बे जानमें गुनाह मुझसे बन गया सही, ककरीके चोरको कटार, मारिये नहीं ॥" "अब मो दुख देखि द्रवी करुणानिधि,राखहु लाज गहौ मम हाथा ॥" "क्यों न हरौ हमरी यह आपति" इन सब कविताओसे प्रत्येक पुरुष अनुमान कर मकना है कि, अबश्य ही किसी सकटके समयमें उन्होंने ये उदार निकाले है। निम्नलिखिन पद्योसे तो विलकुल ही स्पष्ट हो जाता है कि, वे लकी विपतिमें पर। "श्रीपति मोहि जान जन अपनो, हरो विधन दुख दारिद जेल।"

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