Book Title: Vruddhi Ratnamala
Author(s): Vruddhiratnamuni
Publisher: Keshrisinhji Saheb

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) ध्यावो सुख संपत्ति आणंद पावो ॥ वृद्धिचंद प्रछु गुणगाया में रतन चिंतामणि पाया ॥ चिंता ॥४॥ इति पदं सम्पूर्णम् ॥ ॥ अथ लावणी लिख्यते ॥ श्रीश्रादि नाथ महाराज नवो जव दमकुं दर शण दीजे ॥ श्री आदि० ॥ प्रजमोरा देवी माता जाया तोरे पिता नानिजोराया। तुम जन्म अयोध्या पाया जिहां अशाणी आया ॥ तिहां जन्म महोत्सव करके। परम आणंद सुख तिहां पाया। श्रीआदि० ॥१॥ देव जल जर कंचन लाया। प्रजुजीको नवण कराया। फेर केशर चंदन घसाया नव अंगे अंगीय रचाया। तिहां धूप दीप नैवेद्य आरतो नाटक खूब बणाया ॥श्री आदि० ॥२॥ श्ण विध महोत्सव करके । देव गये श्रापणे घरपे । सब जीवन को मन हरखे प्रनु लीनो संयम धरके। कर्मोकुं काट मुख जाल मोद मारगकुं हीया में धरके ॥ श्रीश्रादिः ॥३॥ण विधीसे जेनर ध्यावे सुख संपत्ति आनंद पावे दूबध्या सहुरे जावे जेरा जन्म मरण मिटजावे । देवी कोट चौमासी पूनम For Private and Personal Use Only

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