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(३१) शिरपे सब दुमा गुरुने जो फरमाया है । इसीसें हमको दे इज्जत भला सव जगमें बोलेंगे। सन खबरांऐ खुशीकी दुसमणां सब सरमायाहै। गुरुकी हे महरवानी जिनंदवानीको सच जानी। तजेंगे गुरु श्रग्यानी वे इक्ष्मांकु नरमाया है। गुरुके चरणां में पमकर सर्वी हम पाप खोवेंगे। रामजपता कुशल गुरुको उसीकी छत्रछाया है। इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥राग किंझोटी ताल केरवा ॥
गुरु देवदै ज्ञानकी ज्योति३ मोतिसमहेजजास ॥गुरुग। वांडिंग नंदा-ए-वदा-सुरंदा तुमको ५ राम रांणा तुमदाश ॥गु० ॥१॥ गुरुग्यानीकी वानी सुहानी हमको सुण्या हुवे हर्ष उल्लास॥गुण ॥२॥ दाश उवारोनिहारे कर धारे तुम्ने पूरी सहुनी आश. ॥ गुण्॥३॥ गुरु वश्यां की धुश्यां ५ हमरश्यां निश दिन २ दुर हुवे दुःख त्रास॥गुण ॥४॥ सोहे सुरतमुरत पुरत ५ मनके चित्ते रामकी पूरो आश ॥गु० ॥५॥ इति पदं संपूर्णम् ।
॥ राग धनाश्री तीनताल ॥ गुरु चरणे ललचाना मेरातो मन । स्याद
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