Book Title: Vruddhi Ratnamala
Author(s): Vruddhiratnamuni
Publisher: Keshrisinhji Saheb
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( ) ॥ देशी पनजीकी॥ कामण गारोजी पारस प्रनु मन हर लीयो हमारोजी ॥ कामण ॥ मनमो वशकर लियो प्रचुते एसोजापुमारोजी॥ तुऊ सिवाय नहीं देव दूसरा लागत प्यारोजी॥ कामण ॥१॥ लूद्रव पुरके मांय प्रनुजी देख्यो तोय छंदगारोजी ॥ दिनमें रुप के ही प्रगटे तुं मुलकसे न्यारोजी ॥ कामण ॥२॥ केशर चंदन मृगमद घसकर पुजू अंग तुमारोजी॥ शिवचंद कदे इस जवसागर से पार उतारोजी ॥ कामण ॥३॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥ देशी नारनोलके ख्यालकी ॥
जेशाणे मांहि किलापर सांचो पारस नाथजी॥ जशाणे० ॥ किलाउपर भला विराज्या वामासुतजिनराय॥ हीरावरण अंग प्रनुजोको, रविसेंतेज सिवाय ॥ देख जिलक प्रजुके लिलाटको शशी गयो सरमायजी ॥ जेशाणे ॥ १ ॥ सित्तर सहस्र रुपैयों की अंगी सोहत हे नगकारी ॥ शिरपर सहस्र फणामनमोहे, सुरत लागे प्यारी ॥ जिन को प्रनु परचा देवे पुजे उनियां सारीजी ॥ जेशाणे ॥२॥
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