Book Title: Vruddhi Ratnamala
Author(s): Vruddhiratnamuni
Publisher: Keshrisinhji Saheb

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥१॥ जात्री बहु थावे नविजन नित ध्यावे होहो । पुजरचावे तन मनसुं॥ श्रीजिने मुखरा० ॥१३॥ प्रतिदिन उत्सव की महिमावरणीन जावे होहो॥ मुक्तिद्वारे का मालक ॥ श्री जिने मुख०॥ १४॥ वृद्धिचंद जिनवरकुं निश दिन ध्यावेहोहो॥तेजकविजिनराजस गावे॥श्री जिने मुख०॥१५॥ उगणी से समसठ पौषसुदशशी दूजो होहो ॥ एपद गाया सुंभव जलतारे॥श्रीजिनेश्वर मुखरा दरश दिखावो महाराराज ॥ १६ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥ ॥राग आशावरी॥ ॥अब मोहेमरहेरे उसदिनका । तजदे जरम सबमनका ॥ काची माटी काचा नांडा । संचित लागे ठणका ॥ अव॥१॥ यतीयोगी तपसी सन्यासी सब पाणीके पनका । काल आहेमी फिरत सर साधे दावपमे मृगवनका ॥ अब०॥शा मेरी: करत सबकुंठी जेसे स्वपन रयणीका । श्राखर लेखा पूरा होयगा ज्युमालाके मणिका ॥ अब० ॥३॥ तप जपदान शीयल संमय. वृत. पालो सफल होय जीयका ॥ वृद्धिचंद नजो जगवतकुं । सुखपावो For Private and Personal Use Only

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