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॥१॥ जात्री बहु थावे नविजन नित ध्यावे होहो । पुजरचावे तन मनसुं॥ श्रीजिने मुखरा० ॥१३॥ प्रतिदिन उत्सव की महिमावरणीन जावे होहो॥ मुक्तिद्वारे का मालक ॥ श्री जिने मुख०॥ १४॥ वृद्धिचंद जिनवरकुं निश दिन ध्यावेहोहो॥तेजकविजिनराजस गावे॥श्री जिने मुख०॥१५॥ उगणी से समसठ पौषसुदशशी दूजो होहो ॥ एपद गाया सुंभव जलतारे॥श्रीजिनेश्वर मुखरा दरश दिखावो महाराराज ॥ १६ ॥ इति पदं संपूर्णम् ॥
॥राग आशावरी॥ ॥अब मोहेमरहेरे उसदिनका । तजदे जरम सबमनका ॥ काची माटी काचा नांडा । संचित लागे ठणका ॥ अव॥१॥ यतीयोगी तपसी सन्यासी सब पाणीके पनका । काल आहेमी फिरत सर साधे दावपमे मृगवनका ॥ अब०॥शा मेरी: करत सबकुंठी जेसे स्वपन रयणीका । श्राखर लेखा पूरा होयगा ज्युमालाके मणिका ॥ अब० ॥३॥ तप जपदान शीयल संमय. वृत. पालो सफल होय जीयका ॥ वृद्धिचंद नजो जगवतकुं । सुखपावो
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