Book Title: Vruddhi Ratnamala
Author(s): Vruddhiratnamuni
Publisher: Keshrisinhji Saheb

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१८) आणंद अति हर्षे करी श्राव्या दरशणके काज ॥ श्रीजिन ॥ नवि० सुदि आशाढत्रयोदशी शुजलग्न लियो तिहां साज॥श्रीजिन ॥१०॥ नवि० गुरु मुख झान सुणी करी चौमासो दीनो गय ॥ श्रीजिन ॥ नवि. जगवती सूत्र शुरु करयो गुरु शेजेजे महात्तम साथ ॥ श्रीजिन ॥ नवि० सतके सतके पूजा करी रुपैया गिन्नी मोहर ॥श्रीजिन० ॥११॥ नवि० आणंद तपस्या इणीपरे ग्यारे ने वली आठ॥श्रीजिन ॥ नवि० छठ थप छादश सहु करया शुलदीनो सुपात्रे दान ॥ श्रीजिन० ॥ १२ ॥ नवि० आ दशमी दिने शुरु कीनो तप उपधान ॥श्रीजिन ॥ जवि. नव श्रावकने श्राविका मिल गुणतीमें गुणसह ॥ श्रीजिन ॥ १३॥ नवि० पूजाने प्रनावना नित्य जोजन जक्ति विशेष॥श्रीजिन ॥ भवि० वरघोमा रथ यात्रा अट्ठाई महोत्सव कीध ॥श्रीजिन ॥१४॥ नवित नवकारसी नेतो फिरयो सवि जीम्या थतिहरषेद ॥श्रीजिना भवि० माला पहरी मोदसुं प्रनावना गिन्नी अर्ध ॥ श्रीजिन ॥ १५ ॥ नवि० पोथी पूजी ज्ञानरी शुश शास्त्र तणे परमाण ॥ श्री जिन ॥ जवि० गुरु सेवा साचेमने करे दिन ५ For Private and Personal Use Only

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