Book Title: Vruddhi Ratnamala
Author(s): Vruddhiratnamuni
Publisher: Keshrisinhji Saheb

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Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६) क्षीर समुन से कलशा नरके स्नात्र वणवाई ॥ पार्श्व० ॥ ३॥ अठाई महोत्सव प्रनुको करके निज थानक जाई ॥ अश्वसेन वामाके छारे बटरही बधाई ॥ पार्श्व० ॥ ४॥ परमजोति मुख चंड विसोकित देखत मुख जाई ॥ केवल ग्यान उपाय जिनेश्वर मुक्ति रमणी पाई ॥ पार्श्वग ॥५॥ पुण्य वंत पुनमके सूरज पुजन बणवाई ।। श्रावक और श्राविका मिलके नक्ति दिखलाई ॥ पार्श्व० ॥६॥ जप सूरि शाखा खरतरगच्छ जट्टारक आई ॥ वृद्धि चंड पारस प्रतु नेट्या ब्रह्मसरमाई॥ पार्श्व० ॥७॥ इति पदं सम्पूर्णम् ॥ ॥ उधोमोहनजीकणा एदेशी॥ चिंतामणि पार्श्व मेरामें दासहूं प्रजुतेरा। दरशणकुं जीया मेरातरसे जेरा जाग्य उदयजोफरसे॥चिंता० ॥१॥प्रनु मामदेश में राजे जिन लुश्व पुरमें विराजे॥ अश्वसेनजीके चंदा वामा देवीके नंदा॥ चिंता ॥॥ श्याम वरण प्रज तन सोहे। अजी निरखत सब जन मोहे ॥श्री संघ यात्री आवे अष्ट उव्य से पूज रचावे ॥ चिंता ॥ ३ ॥ चिंतामणि पार्श्व For Private and Personal Use Only

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