Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 1 Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 7
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates जय परमशांत मुद्रा भवि समेत । भविजन को निज अनुभूति हेत ।। वचजोगेवशाय। तुम धुनि ह्वै सुनि विभ्रम नशाय ।।३।। भागन तुम गुण चिंतत निजपर विवेक । प्रगटै विघटै आपद दूषणवियुक्त । तुम जगभूषण सब अविरुद्ध, शुद्ध, अनेक ।। महिमायुक्त विकल्पमुक्त ।।४।। चेतन–स्वरूप। परमात्म परम पावन शुभ अशुभ विभाव प्रभाव कीन । अनूप ।। स्वाभाविक परिणतिमय अछीन ॥ ५ ॥ अष्टादश दोष विमुक्त सचतुष्टयमय मुनिगणधरादि सेवत नव केवल धीर । तुम शासन सेय अमेय जीव । शिव गये जाहिं जैहैं राजत महंत। लब्धिरमा धरंत ।।६।। गंभीर ।। सदीव ।। वारि । भवसागर में दुख छार तारन को और न आप टारि ।।७।। यह लखि निज दुःखगद हरणकाज। जाने तुमही निमित्त कारण इलाज ।। तातैं मैं शरण आय। उचरों निज दुःख जो चिर लहाय ।।८।। ४ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.comPage Navigation
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