Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 25
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ ६ रक्षाबंधन अध्यापक - सर्व छात्रों को सूचित किया जाता है कि कल रक्षाबंधन महापर्व है। इस दिन अकंपनाचार्य आदि सात सौ मुनियों का उपसर्ग दूर हुआ था। अत: यह दिन हमारी खुशी का दिन है। इसके उपलक्ष में कल शाला का अवकाश रहेगा। छात्र - गुरुदेव! अकंपनाचार्य कौन थे, उन पर कैसा उपसर्ग आया था, वह कैसे दूर हुआ ? कृपया संक्षेप में समझाइये। अध्यापक - सुनो! अकंपनाचार्य एक दिगम्बर संत थे, उनके साथ सात सौ मुनियों का संघ था और वे उसके प्राचार्य थे। एक बार वे संघ सहित विहार करते हुए उज्जैन पहुंचे। उस समय उज्जैनी के राजा श्रीवर्मा थे। उनके यहां चार मंत्री थेजिनके नाम थे – बलि, नमुचि, बृहस्पति और प्रह्लाद। जब राजा ने मुनियों के आगमन का समाचार सुना तो वह सदल-बल उनके दर्शनों को पहुंचा। चारों मंत्री भी साथ थे। सभी मुनिराज आत्मध्यान में मग्न थे। अतः प्रवचन-चर्चा का कोई प्रसंग न बना। मंत्रिगण मुनियों के प्रास्थावान न थे, अतः उन्होंने राजा को भड़काना चाहा और कहा “ मौनं मूर्खस्य भूषणम्”- मौन मूर्खता छिपाने का अच्छा उपाय है, यही सोचकर साधु लोग चुप रहे हैं। श्रुतसागर मुनिराज पाहार करके आरहे थे। उन्हें देख एक मंत्री बोला - एक बैल ( मूर्ख) वह आरहा है और वे मंत्री मुनिराज से वाद-विवाद के लिए उलझ पड़े। फिर क्या था, मुनिराज ने अपनी प्रबल युक्तियों द्वारा शीघ्र ही उनका मद खंडित कर दिया। २२ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35