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पाठ ८
बारह भावना पं. जयचंदजी छाबड़ा
व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व
(संवत् १७९५-१८८१) जयपुर के प्रतिभाशाली आत्मार्थी विद्वानों में पं. जयचंदजी छाबड़ा का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। आपका जन्म जयपुर से तीस मील दूर डिग्गीमालपुरा रोड पर स्थित फागई ( फागी) ग्राम में हुआ था। आपके पिता का नाम मोतीरामजी छाबड़ा था।
ग्यारह वर्ष की अल्पायु में आपकी रुचि तत्त्वज्ञान की तरफ हो गई थी। कुछ समय बाद आप फागई से जयपुर आगये जहाँ आपको महापण्डित टोडरमलजी आदि का सत्समागम प्राप्त हुआ था। आपको आध्यात्मिक ज्ञान जयपुर की तेरापंथ सैली में प्राप्त हुआ था। इसका उन्होंने इस प्रकार उल्लेख किया है :
सैली तेरापंथ सुपंथ, तामें बड़े गुणी गुन-ग्रंथ। तिनकी संगति में कछु बोध, पायो मैं अध्यातम सोध ।।
आपके सुपुत्र पं. नन्दलालजी भी महान् विद्वान् थे। पं. जयचंदजी ने स्वयं उनकी प्रशंसा लिखी है।
आपकी रचनायें प्रायः टीकाग्रंथ हैं, जिन्हें वचनिका के नाम से कहा जाता है। वैसे आपकी कई मौलिक कृतियाँ भी हैं। आपके कुछ महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ निम्नलिखित हैं:
१. तत्त्वार्थसूत्र वचनिका २. सर्वार्थसिद्धि वचनिका ३. प्रमेयरत्नमाला वचनिका ४. द्रव्यसंग्रह वचनिका । ५. समयसार वचनिका ६. अष्टपाहुड वचनिका ७. ज्ञानार्णव वचनिका ८. धन्यकुमार चरित्र वचनिका
९. कार्तिकेयानुप्रेक्षा वचनिका १०. पद-संग्रह प्रस्तुत बारह भावनायें आपके द्वारा ही बनाई गई हैं।
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