Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 23
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates आचार्य नेमिचन्द्र - हाँ! मूलरूप से ये कर्म आठ प्रकार के होते हैं। इन आठ प्रकार के कर्मों में ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, मोहनीय और अन्तराय तो घातिया कर्म कहलाते हैं और वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र ये चार अघातिया कर्म कहलाते हैं। चामुण्डराय - घातिया और अघातिया से क्या तात्पर्य ? आचार्य नेमिचन्द्र - जो जीव के अनुजीवी गुणों को घात करने में निमित्त हों वे घाति कर्म हैं, और आत्मा के अनुजीवी गुणों के घात में निमित्त न हों उन्हें अघातिया कर्म कहते हैं। चामुण्डराय - ज्ञान पर आवरण डालने वाले कर्म को ज्ञानावरण और दर्शन पर आवरण डालने वाले कर्म को दर्शनावरण कहते होंगे ? प्राचार्य नेमिचन्द्र - सुनो ! जब आत्मा स्वयं अपने ज्ञान भाव का घात करता है, अर्थात् ज्ञान-शक्ति को व्यक्त नहीं करता तब आत्मा के ज्ञानगुण के घात में जिस कर्म का उदय निमित्त हो उसे ज्ञानावरण कहते हैं। और जब आत्मा स्वयं अपने दर्शन-गुण (भाव) का घात करता है तब दर्शन-गुण के घात में जिस कर्म का उदय निमित्त हो उसे दर्शनावरण कहते हैं। ज्ञानावरणी पांच प्रकार का और दर्शनावरणी नौ प्रकार का होता है। चामुण्डराय - और मोहनीय................? आचार्य नेमिचन्द्र - जीव अपने स्वरूप को भूल कर अन्य को अपना माने या स्वरूपाचरण में असावधानी करे तब जिस कर्म का उदय निमित्त हो उसे मोहनीय कर्म कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है : १. दर्शन मोहनीय, २. चारित्र मोहनीय। मिथ्यात्व आदि तीन भेद दर्शन मोहनीय के हैं, २५ कषायें चारित्र मोहनीय के भेद हैं। चामुंडराय - अब घातिया कर्मों में एक अन्तराय और रह गया ? प्राचार्य नेमिचन्द्र - जीव के दान, लाभ , भोग, उपभोग और वीर्य के विघ्न में जिस कर्म का उदय निमित्त हो, उसे अन्तराय कर्म कहते हैं। यह पांच प्रकार का होता है। चामुण्डराय - अब कृपया अघातिया कर्मों को भी.............? आचार्य नेमिचन्द्र - हाँ! हाँ!! सुनो! २० Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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