Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 26
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates राजा के सामने उन चारों का अभिमान चूर्ण हो गया। उस समय तो वे लोग चुपचाप चले गए पर रात्रि में चारों ही ने वहाँ आकर मुनिराज पर प्रहार करने को एक साथ तलवार उठाई, किन्तु उनके हाथ कीलित होकर उठे ही रह गये। प्रातः यह समाचार जब राजा और जनता ने सुना तो सब वहाँ आगये। मुनिराज की सब ने स्तुति की और राजा ने चारों मंत्रीयों को देशनिकाला दे दिया । छाञ - वे मुनिराज रात को वहाँ कैसे रहे ? उन्हें तो जहाँ संघ ठहरा था, वहीं ध्यानस्थ रहना चाहिये था। अध्यापक जब उन्होंने उक्त विवाद की चर्चा आचार्यश्री से की तो उन्होंने कहा कि तुम्हें उनसे चर्चा ही नहीं करनी चाहिये थी। क्योंकि जिस प्रकार साँप को दूध पिलाने से विष ही बनता है, उसी प्रकार तीव्र कषायी अज्ञानी जीवों से की गई तत्त्वचर्चा उनके क्रोध को ही बढ़ाती है। हो सकता है कि वे कषाय की तीव्रता में कोई उपसर्ग करें। अत: तुम उसी स्थान पर जाकर आज रात को ध्यानस्थ रहो । ? - छात्र - फिर....... अध्यापक - वे चारों मंत्री हस्तिनागपुर के राजा पद्मराय के यहाँ जाकर कार्य करने लगे। किसी बात पर प्रसन्न होकर पद्मराय ने उन्हें मुँह माँगा वरदान माँगने को कहा। उन्होंने उसे यथासमय लेने की अनुमति लेली । एक बार वे ही अकंपनाचार्य आदि सात सौ मुनिराज विहार करते हुए हस्तिनागपुर पहुँचे। उन्हें आया देख बलि ने राजा पद्मराय से सात दिन के लिए राज्य माँग लिया । राज्य पाकर वह मुनिराजों पर घोर उपसर्ग करने लगा। तब राजा पद्मराय के भाई जो पहिले मुनि हो गये थे, उन मुनिराज विष्णकुमार ने उनकी रक्षा की । छात्र- ऐसे दुष्ट शक्तिशाली राजा से निःशस्त्र मुनिराज ने कैसे रक्षा की ? अध्यापक - मुनिराज को विक्रिया ऋद्धि प्राप्त थी । छात्र - विक्रिया ऋद्धि क्या होती है ? अध्यापक - विक्रिया ऋद्धि उसे कहते हैं जिसके बल से अपने शरीर को चाहे जितना बड़ा या छोटा बना लें I २३ Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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