Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates सात तत्त्व प्रवचनकार - संसार में समस्त प्राणी दुःखी दिखाई देते हैं, और वे दुःख से बचने का उपाय भी करते हैं। परन्तु प्रयोजनभूत तत्त्वों की सही जानकारी एवं श्रद्धा के बिना दुःख दूर होता नहीं। मुमुक्षु - ये प्रयोजनभूत तत्त्व क्या हैं जिनकी जानकारी और सही श्रद्धा के बिना दुःख दूर नहीं हो सकता ? प्रवचनकार - दुःख दूर करना और सुखी होना ही सच्चा प्रयोजन है और ऐसे तत्त्व जिनकी सम्यक् श्रद्धा और ज्ञान बिना हमारा दुःख दूर न हो सके और हम सुखी न हो सकें, उन्हें ही प्रयोजनभूत तत्त्व कहते हैं। तत्त्व माने वस्तु का सच्चा स्वरूप। जो वस्तु जैसी है, उसका जो भाव , वही तत्त्व है। ___ वे तत्त्व सात होते हैं, जैसा कि तत्त्वार्थ सूत्र में प्राचार्य गृद्धपिच्छ उमास्वामी ने कहा है - "जीवाजीवास्त्रवबंधसंवरनिर्जरामोक्षास्तत्त्वम्" ।।१।।४।। जीव, अजीव, आस्रव , बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्त्व हैं। प्रश्नकर्ता - कृपया संक्षेप में इनका स्वरूप बताइये। प्रवचनकार - जीव तत्त्व ज्ञान-दर्शन स्वभावी आत्मा को कहते हैं। ज्ञान-दर्शन स्वभाव से रहित तथा आत्मा से भिन्न समस्त द्रव्य (पदार्थ) अजीव तत्त्व कहलाते हैं। पुद्गलादि समस्त पदार्थ अजीव है। इन शरीरादि सभी अजीव पदार्थों से भिन्न चेतन तत्त्व ही आत्मा है। वह आत्मा ही मैं हूँ, मुझसे भिन्न पुद्गलादि पाँच द्रव्य अजीव हैं। सामान्य रूप से तो जीव अजीव दो ही तत्त्व हैं। प्रास्त्रवादिक तो जीव अजीव के ही विशेष हैं। शंकाकार - यदि प्रास्त्रवादिक जीव अजीव के ही विशेष हैं, तो इनको पृथक् क्यों कहा है ? Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35