Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 19
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ ४ षट् आवश्यक ( मंदिरजी में शास्त्र-प्रवचन हो रहा है। पंडितजी शास्त्र-प्रवचन कर रहे हैं और सब श्रोता रुचिपूर्वक श्रवण कर रहे हैं।) प्रवचनकार - संसार के समस्त प्राणी सुख चाहते हैं और दुःख से डरते हैं, और उन दुःखों से बचने के लिये उपाय भी करते हैं, पर उनसे बचने का सही उपाय नहीं जानते हैं, अतः दुःखी ही रहते हैं। एक श्रोता - तो फिर दुःख से बचने का सच्चा उपाय क्या है ? प्रवचनकार - आत्मा को समझकर उसमें लीन होना ही सच्चा उपाय है और यही निश्चय से आवश्यक कर्तव्य है। दूसरा श्रोता - आप तो साधुओं की बात करने लगे, हम सरीखे गृहस्थ सच्चा सुख प्राप्त करने के लिये क्या करें ? प्रवचनकार - दुःख मेटने और सच्चा सुख प्राप्त करने का उपाय तो सब के लिये एक ही है। यह बात अलग है कि मुनिराज अपने उग्र पुरुषार्थ से आत्मा का सुख विशेष प्राप्त कर लेते है और गृहस्थ अपनी भूमिकानुसार अंशतः सुख प्राप्त करता है। उक्त मार्ग में चलने वाले सम्यग्दृष्टि श्रावक के आंशिक शुद्धिरूप निश्चय आवश्यक के साथ-साथ शुभ विकल्प भी आते हैं। उन्हें व्यवहार-आवश्यक कहते है। वे छह प्रकार के होते हैं : देवपूजा गुरुपास्ति, स्वाध्यायः संयमस्तपः। दानञ्चेति गृहस्थानां, षट् कर्माणि दिने दिने।। १. देवपूजा २. गुरु की उपासना ३. स्वाध्याय ४. संयम ५. तप ६. दान श्रोता - कृपया इन्हें संक्षेप में समझा दीजिये। प्रवचनकार - ज्ञानी श्रावक के योग्य प्रांशिक शुद्धि निश्चय से भाव-देवपूजा है और सच्चे देव का स्वरूप समझकर उनके गुणों का स्तवन ही व्यवहार से भाव-देवपूजा है। ज्ञानी श्रावक वीतरागता और सर्वज्ञता आदि गुणों का स्तवन करते हुये विधिपूर्वक प्रष्ट द्रव्य से पूजन करते हैं उसे द्रव्यपूजा कहते हैं। १६ Please inform us of any errors on rajesh@ AtmaDharma.com

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