Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 1
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 13
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates आत्मा और परमात्मा ? कृपा प्रभाकर - हे गुरुदेव ! आत्मा और परमात्मा का स्वरूप क्या कर समझाइये; क्योंकि कल आपने कहा था कि यह आत्मा अपने स्वरूप को भूलकर दुःखी हो रहा है। योगीन्दु देव - हे प्रभाकर भट्ट ! आत्मा को समझने की इच्छा तुम जैसे मुमुक्षु के ही होती है । जिसने चेतन - स्वरूप आत्मा की बात प्रसन्न चित्त से सुनी वह अल्पकाल में ही परमात्म- पद को प्राप्त करेगा । आत्मज्ञान के समान दूसरा कोई सार नहीं है। ज्ञानस्वभावी जीव तत्त्व को ही आत्मा कहते हैं। वह अवस्था की अपेक्षा तीन प्रकार का होता हैं : १. बहिरात्मा २. अंतरात्मा ३. परमात्मा प्रभाकर - बहिरात्मा किसे कहते हैं ? योगीन्दु देव शरीर को आत्मा तथा अन्य पदार्थों और रागादि में अपनापन मानने वाला या शरीर और आत्मा को एक मानने वाला जीव ही बहिरात्मा है। वह अज्ञानी ( मिथ्यादृष्टि ) है। आत्मा को छोड़कर अन्य बाह्य पदार्थों में आत्मपन ( अपनापन ) मानने के कारण ही यह बहिरात्मा कहलाता हैं । अनादिकाल से यह आत्मा शरीर की उत्पत्ति में ही अपनी उत्पत्ति और शरीर के नाश में ही अपना नाश तथा शरीर से संबंध रखने वालों को अपना मानता आ रहा है। जब तक यह भूल न निकले तब तक जीव बहिरात्मा अर्थात् मिथ्यादृष्टि रहता है। - प्रभाकर “ बहिरात्मपन छोड़ना चाहिये” यह तो ठीक पर ....... । - योगीन्दु देव - बहिरात्मपन छोड़कर अंतरात्मा बनना चाहिये । जो व्यक्ति भेद-विज्ञान के बल से आत्मा को देहादिक से भिन्न, ज्ञान और आनन्द-स्वभावी जानता है, मानता है और अनुभव करता है; वह ज्ञानी ( सम्यग्दृष्टि ) आत्मा ही अंतरात्मा है। आत्मा में ही आत्मपन अर्थात् अपनापन मानने के कारण तथा आत्मा के अतिरिक्त अन्य किसी में भी अपनापन की मान्यता छोड़ देने के कारण ही वह अंतरात्मा कहलाता है। अंतरात्मा तीन प्रकार के होते है : १० Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.com

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