Book Title: Vitrag Vigyana Pathmala 1 Author(s): Hukamchand Bharilla Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur View full book textPage 6
________________ Version 001: remember to check http://www.AtmaDharma.com for updates पाठ १ देव-स्तुति ___पं. दौलतरामजी दर्शन स्तुति दोहा सकल ज्ञेय ज्ञायक तदपि, निजानंद रसलीन । सो जिनेंद्र जयवंत नित, अरिरजरहस विहीन ।। १ ।। पद्धरि छंद जय वीतराग विज्ञानपूर। जय मोहतिमिर को हरन सूर।। जय ज्ञान अनंतानंत धार। दृगसुख वीरजमंडित अपार।। २ ।। जिनेन्द्र देव की स्तुति करते हुए पं. दौलतरामजी कहते हैं कि – हे जिनेन्द्र देव! आप समस्त ज्ञेयों ( लोकालोक) के ज्ञाता होने पर भी अपनी आत्मा के आनन्द में लीन रहते हो। चार घातिया कर्म हैं निमित्त जिनके, ऐसे मोह-राग-द्वेष, अज्ञान आदि विकारों से रहित हो-प्रभो! आपकी जय हो ।।१।। आप मोह-राग-द्वेष रूप अंधकार का नाश करने वाले वीतरागी सूर्य हो। अनन्त ज्ञान के धारण करने वाले हो, अतः पूर्णज्ञानी ( सर्वज्ञ) हो तथा अनंत दर्शन, अनंत सुख और अनंत वीर्य से भी सुशोभित हो। हे प्रभो! आपकी जय हो ।।२।। Please inform us of any errors on rajesh@AtmaDharma.comPage Navigation
1 ... 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35