Book Title: Vitrag Vaibhav
Author(s): Gunvant Barvalia
Publisher: Saurashtra Kesari Pranguru Jain Philosophical and Literary Research Centre

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Page 172
________________ ३०७-८. मिच्छो सासण मिस्सो, अविरदसमो य देवविरदो य । विरदो पमत्त इयरो, अपुव्व अणियट्टि सुहुमो य ॥२॥ उवसंत खीणमोहो, सजोगिकेवलिजिणो अजोगी य । चोदस गुणट्ठाणाणि य, कमेण सिद्धा य णायव्वा ||३|| मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र, अविरत सम्यग्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय, उपशान्तमोह, क्षीणमोह, सयोगिकेवलीजिन, अयोगिकेवलीजिन—ये क्रमश: चौदह गुणस्थान हैं। सिद्धजीव गुणस्थानातीत होते हैं । 309-८. मिथ्यात्व, सास्वाहन, मिश्र, अविरति सम्यहष्टि, हेशविरति, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, निवृत्तिनाहर, अनिवृत्तिनाहर, सूक्ष्मसंपराय, उपशांत मोह, क्षीरामोह, सयोगी डेवजी, અયોગી કેવળી—એમ ચૌદ ગુણસ્થાત છે. સિદ્ધ જીવ ગુણસ્થાતાતીત હોય છે. 307-8. (False Belief), Mithyatva, Saswadana, Mishra (Mixed ), Avirat Samyakdrashti, Deshvirati Sarvavirati, Pramata sanyat, Apraamata Sanyat, Nivruti Baadar, Anivraati Baadar, Sukshma Samparaya, Upashanta Moha, Ksheen Moha Sayogi kevali and Ayogi kevali these are fourteen Gunasthanakas (Resting places of/on merits). However Liberated souls are devoid of (aboved Gunasthanakas) - - ३०९. तं मिच्छत्तं जमसद्दहणं, तच्चाण होदि अत्थाणं । संसइदमभिग्गहियं, अणभिग्गहियं तु तं तिविहं ॥४॥ तत्त्वार्थ के प्रति श्रद्धा का अभाव मिथ्यात्व है । यह तीन प्रकार है— संशयित, अभिगृहीत (सत्य पर अश्रद्धा) और अनभिगृहीत (जन्मजात अश्रद्धा) । GLORY OF DETACHMENT ૧૧

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