Book Title: Vipashyana
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 9
________________ अनुक्रमणिका 1. स्वयं के प्रति जगाएँ होश और बोध 2. पंचशील : आखिर आवश्यक क्यों ? 3. विपश्यना : आखिर क्या है ? 4. विपश्यना में चाहिए सचेतनता, निरन्तरता 5. आनापान-योग : समाधि का प्रवेश-द्वार 6. चलते-फिरते कैसे करें अनुपश्यना 7. आसक्तियों को कैसे काटें 8. वासना के चक्रव्यूह से कैसे निकलें 9. विपश्यना से पाएँ विलक्षण फल 10. कैसे करें चित्त की अनुपश्यना 11. अन्तर्द्वन्द्व से मुक्ति 107 124 140 ~~~~gave~~~~ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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