Book Title: Vipashyana
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 8
________________ निवृत्त हो सकते हैं और उस सत्य का अनुभव कर सकते हैं जिसके लिए हम सब छटपटाते हैं। आत्मा-परमात्मा के सम्बन्ध में बहुत कहा गया है, लेकिन अनुभवजन्य कथन और पांडित्यपूर्ण कथन में भेद है । पूज्यश्री के मुख से सुनकर ऐसा लगता है कि वे नहीं, उनके अनुभव जिह्वा का अनुगमन कर रहे हैं। जब वे श्वास और भीतर की सच्चाई के बारे में बात करते हैं तो पूरी तरह उसमें डूब जाते हैं, अनुपश्यना का अनुभव उनको दिव्य गरिमा प्रदान करता है। वे चाहते हैं कि प्रत्येक साधक ऐसे अनुभवों से गुज़रकर अपने जीवन को अध्यात्ममय बनाए । यह आध्यात्मिकता उसे अन्तरमन की शांति एवं आनन्द के सरोवर से परिपूरित कर देगी। वे कहते हैं धर्म चर्चा का नहीं, जीने का आधार है और इसके लिए अनुपश्यना एक बेहतर और स्वर्णिम मार्ग है। ___पूज्यश्री ने भगवान बुद्ध के ‘महासतिपट्टान-सुत्त' का खूबसूरत विश्लेषण कर उसे सहज-सरल भाषा में हमारे सामने प्रस्तुत किया है। श्री चन्द्रप्रभ की विशेषता उनकी संवादमय शैली है, जो छोटी-छोटी कहानियों, उदाहरणों से बोधगम्य हो जाती है। पूज्यश्री झेन कहानी हो या बुद्ध-महावीर के जीवन की घटना अथवा जीसस और मुहम्मद साहब के जीवन से जुड़ी घटना, सहजता से उद्धृत कर संवादों को सीधे हमारे हृदय में उतार देते हैं। सचमुच, ये प्रवचन हमारे लिए मील के पत्थर और प्रकाशमयी दीप-शिखा का काम करते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में साधक को किन-किन बातों की सावधानी रखनी चाहिए और साधना की गहराई में कैसे उतरा जाए इसका सही-सुन्दर मार्गदर्शन है। प्रत्येक शब्द, प्रत्येक विचार अपने-आप में विलक्षण और अद्भुत है। हम पुस्तक के हर शब्द के साथ लहरों की तरह बहते जाएँ, अपने-आप हमारी जीवन-नौका पार लगती जाएगी। अब हम सीधे रूबरू हो जाते हैं जीवन की उन बातों से जिन्हें हम जानते तो हैं, पर पहचानते नहीं। जिनके बारे में सुना-पढ़ा तो है, पर अवगाहन नहीं किया। विपश्यना पर इतनी सुन्दर पुस्तक पाकर आप सचमुच मुग्ध हो उठेंगे। प्रभुश्री के चरणों में अहोभाव भरे प्रणाम ! - मीरा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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