Book Title: Vidyanushasan
Author(s): Matisagar
Publisher: Digambar Jain Divyadhwani Prakashan

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Page 12
________________ 95959595952 विधानुशासन 959526 मंत्राराधन शूराधर्मदया स्वगूरू विनयशीलयुतः । मेधावी गत निद्रः प्रशस्त चित्तोभिमानरतः Post ॥ ९ ॥ यह मंत्र की आराधना में शूरवीर, धार्मिक दयालु, अपने गुरु की विनय करने वाला, शीलवान, बुद्धिमान, निद्रारहित, प्रशस्त चित्त वाला और अभिमानी हो । अर्थात कार्य करके सफलता प्राप्त करने का पूर्ण विश्वास रखने वाला हो । देवजिन समयभक्तः सविकल्पः सत्य वाग्विदग्धश्च वाक्यदुरपगत शंकः शुचिराद्रमनाविगतकामः ॥ १० ॥ यह जिनेन्द्र देव और जैन शास्त्र का भक्त, सविकल्प, सत्य भाषी, विदग्ध, बोलने में चतुर, निशंक, पवित्र और आर्द्र मन वाला तथा काम रहित हो। गुरुभणितमावर्ती प्रारास्तदर्शनोयुक्तः बीजाक्षरावधारी शिष्यस्यात सद्गुणोपेतः ॥ १९॥ वह गुरु के कहे हुवे मार्ग पर चलने वाला, भाग्य के परिणाम को भोगने के लिए उधत्त और बीजाक्षरों का निश्चय करने वाला हो, ऐसे उत्तम गुणों से युक्त शिष्य होता है। ॥ मंत्र साधक के अयोग्य पुरूष लक्षण ॥. सम्यक दर्शन दूरो वाक्कूठस्यांद सो भय समेतः शून्य हृदयोपलज्जो मंत्र श्रद्धा विहीन श्व ॥ १२ ॥ जो सम्यकदर्शन से दूर, कुंठित वाणी वाला, वेदपाठी, भय करने वाला, शून्य हृदय वाला, निर्लज्ज और मंत्र की श्रद्धा से रहित हो । आलस्यो मंद बुद्धिश्च मायावी क्रोध नोविट: गर्वी कामी मदोद्रितो गुरुद्वेषी च हिंसकः 11 23 11 जो आलसी मंद बुद्धि वाला, मायावी, क्रोधी, पर स्त्री, भोगी, इन्द्रिय लोलुपी, कामी, अभिमानी, गुरु से द्वेष करने वाला और हिंसक हो । अकुलीनोति बालश्च वृद्धोऽशीलोऽदय श्चलः चर्मादिश्रृंग केशादिधारी चाधर्मवत्सलः 95959519596959435959595195195 ॥ १४ ॥

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