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ज्ञानसाधन. .
वि० ४. दोहा-तिय अतिप्रिय जे जानिनर, करत . प्रीति अधिकाय॥ तेशठ अति मतिमंद जग, वृथाधरी नरकाय॥४॥
टीका:-जे नर स्त्री• अति प्यारी जानकर तामें अति प्रीत करै हैं, ते पुरुष शठ हैं औ अति मंदबुद्धि हैं, काहेते मोक्षका साधन मनुष्यशरीर तिन्होंने व्यर्थ खोया है ॥ ४ ॥ दोहा-अस्थि मांस अरु रुधिर त्वक, कश्मलनखसिषपूरणनिरधन अशुचिमलीनतन,त्याग आगज्यूं दूर ॥५॥
टीकाः-हे शिष्य ! स्त्रीशरीर हाड मास अरु रक्त चमडी इन अशुद्ध पदार्थोंकर नखसे लेकर शिखापर्यंत पूरन है औ जातिकर भी नीच भगवानने कही है औ ऊपरसे शरीरकर अपवित्र औ मलीन है औ यह स्त्री शरीरकरही दुष्ट नहीं किंतु स्वभावसेभी दुष्ट है । सोभी कहा हैः-॥ चौपाई ॥ “नारिस्वभाव स