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१७० विचारमाला जानके अनाथदासजीने यह विचारमाला रची। सो कहे हैं: नरोत्तमपुरी जो हमारे श्रेष्ठ मित्र हैं, पुनः कैसे हैं ? एक परमेश्वरही अतिथिवत् भली प्रकार जिनका पूज्य है, ताकी आज्ञाका स्वीकार करके हमने यह विचारमाला नाम ग्रंथ रचा है ॥ ४० ॥ ..
(१०२) अब या ग्रंथका माहात्म्य कहे हैं:दोहा-लिखै पढे अति प्रीति युत, अरु पुनि करे विचार ॥ छिन छिन ज्ञानप्रकाश तिहिं, होय सुरविहिप्रकार ॥४१॥
टीकाः जो पुरुष या ग्रंथको लिखे औ प्रीतिपूर्वक गुरुमुखात श्रवण करे तथा एकांतमें स्थित होयके विचारै, ता पुरुषको प्रतिक्षण प्रकाशरूप. ब्रह्मनिष्ठा दृढ होवै। जैसे उदयसे लेके मध्याह्नपर्यंत प्रतिक्षण सूर्यका- . प्रकाश वृद्ध होवै है तैसे ॥ ११॥ . . ... .. ...(१०३) अब जिन ग्रंथोंका अर्थ संग्रह कर या ग्रंथ: में लिख्या है, तिनके नाम कहे हैं।
दोहा-गीता भरथरिको मतो, एकादशः .