Book Title: Vicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Author(s): Anathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
Publisher: Gujarati Chapkhana

View full book text
Previous | Next

Page 178
________________ वि० ८. आत्मवान् स्थितिवर्णेन. १६९ ( १०१ ) अत्र ग्रंथके रचनेमें हेतु कहे हैं:दोहा-पुरी नरोत्तम मित्र वर,खरो अतिथि भगवान ॥ वरणी माल विचारमें,तिहि आज्ञा परमान ॥४०॥ टीका:-अब परंपरासे श्रुतकथा लिखे हैं:-अनाथदासजी औ नरोत्तमपुरी जो परस्पर स्नेहके वशते विरक्त हुए साथ विचरते भए, कछु काल पीछे अदृष्ट वशते वियुक्त हुए, अनाथदासजी काश्मीरमें प्राप्त भए औ नरोत्तमपुरीजी विचरते हुए गुजरात देशमैं बड़ोदे नाम नगरमें प्रारब्धवशते राज्योंकर पूज्य होते भए, तब नरोत्तमपुरीजीने विचार किया,हमारे मित्र अनाथदासजी यद्यपि विरक्त हुए काश्मीरमें विचरे हैं, तथापि पूर्व संप्रदाय उक्त भेदवादके संस्कारते अद्वैतनिष्ठाते च्युत भए हैं वा अद्वैतमें निष्ठावान हैं, या परीक्षाके अर्थ पत्रिका लिखके ताके समीप पहुँचाई । ता पत्रिकामें यह लिखा परमेश्वर चिंतन अर्थ बहुत मोलवाली एक माला हमारे समीप भेजो। ताको पढ़के औ ताके अभिप्रायको

Loading...

Page Navigation
1 ... 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194