Book Title: Vicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Author(s): Anathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
Publisher: Gujarati Chapkhana
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मधनपालघरे भीषमांगेखाइके || पढ्यो हैवेदांत कछु बोलवेकोसीख्योतव || वादहिविवादकरेयुगतिलगाइके ॥ . पोपटज्यों बोले- हदेग्रंथि सोनखोलेसारासारहिनतोलेता सेंरह्यो ठगाइके ॥ केतहरिसंग ० ॥ २० ॥ बनजकोआयो कहा हांसिलकमायोधनगांठकोगमायो भयो भिषारीलुटाइके ॥ सीयोचारोवेदता को भेदजोनजानेतो तू फिरत हो योंहीखालीबोजकोउठाइके || घनहिअखूटतेरेहाथसोंग माइकरि || आपषूटिऔरकोतू देतहो खुटाइके ॥ केतह. सिंग० ॥ २१ ॥ सतगुरुदेवब्रह्मवेत्ता केशरणजाइ चोरासीकोफंदतोको देवेंगेलडाइके | कौन हूंमें कांसे आयोकरिलेविचारऐसे || देहरूपहोइरह्योदे हमें जुडाइके ॥ देहको प्रकासीतीनकालमैनहोइदेह काहेकोतबंध फिरछूटनातुड्राइके || केतहरिसंग || २२ || बाहिरसेवृत्तितेरीखेंचि करभीतरको | सोहं सोहंजापसदारह्यो हैजपाइके | आंबकोउखेड़िपेड़ बबुलकोबीज़बोवे ॥ ताकीतूकरतवाडचंदनकपाइके || हीरा सोतो मुठिभरिफेकिदेतद्वारबार ।। जूतीकोजतनकरिराखतचुपाइके || केतहरिसंग० ॥ २३ ॥

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