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________________ ( ६ ) 3 मधनपालघरे भीषमांगेखाइके || पढ्यो हैवेदांत कछु बोलवेकोसीख्योतव || वादहिविवादकरेयुगतिलगाइके ॥ . पोपटज्यों बोले- हदेग्रंथि सोनखोलेसारासारहिनतोलेता सेंरह्यो ठगाइके ॥ केतहरिसंग ० ॥ २० ॥ बनजकोआयो कहा हांसिलकमायोधनगांठकोगमायो भयो भिषारीलुटाइके ॥ सीयोचारोवेदता को भेदजोनजानेतो तू फिरत हो योंहीखालीबोजकोउठाइके || घनहिअखूटतेरेहाथसोंग माइकरि || आपषूटिऔरकोतू देतहो खुटाइके ॥ केतह. सिंग० ॥ २१ ॥ सतगुरुदेवब्रह्मवेत्ता केशरणजाइ चोरासीकोफंदतोको देवेंगेलडाइके | कौन हूंमें कांसे आयोकरिलेविचारऐसे || देहरूपहोइरह्योदे हमें जुडाइके ॥ देहको प्रकासीतीनकालमैनहोइदेह काहेकोतबंध फिरछूटनातुड्राइके || केतहरिसंग || २२ || बाहिरसेवृत्तितेरीखेंचि करभीतरको | सोहं सोहंजापसदारह्यो हैजपाइके | आंबकोउखेड़िपेड़ बबुलकोबीज़बोवे ॥ ताकीतूकरतवाडचंदनकपाइके || हीरा सोतो मुठिभरिफेकिदेतद्वारबार ।। जूतीकोजतनकरिराखतचुपाइके || केतहरिसंग० ॥ २३ ॥
SR No.007743
Book TitleVicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
PublisherGujarati Chapkhana
Publication Year1832
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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