Book Title: Vicharmala Granth Satik Pustak 1 to 8
Author(s): Anathdas Sadhu, Govinddas Sadhu
Publisher: Gujarati Chapkhana

View full book text
Previous | Next

Page 167
________________ -१५८ विचारमाला. वि० ८० नको कर्तृत्व अभिमान है नहीं, याते स्वरूप दृष्टिसे न किसीका ग्रहण करे है औ न त्याग करे है, या - ते ताकी प्रवृत्तिही संभव नहीं तो बंधनकी शंका कैसे बने ? ॥ २० ॥ ~} (८८) ननु कर्तृत्व अभिमान ज्ञानीको काहेते नहीं ? या शंकाके होयां विद्वान की दृष्टिमें कर्ता भोक्ता जीव नहीं, या अर्थको दो दोहोंकर दिखावे हैं:दोहा :- हौं अबोध अनंत गति, परस्यो ? चित्त समीर ॥ बहु कलोल तामें उठें, ना ना रूप शरीरं ॥ २१ ॥ चित्त वात भयो शांत अब, जीव लहरि भइ लीन ॥ केवल रूप अनंद हौं, रह्यो शुभाशुभ हीन ॥ २२ ॥ टीका :- देशपरिच्छेदते रहित समुद्ररूप स्वमहि - मामें स्थित मेरे आत्मामें अघटन घटन पटीयसी मायाकर, चित्तरूप वायुके संबंधसे, देव तिर्यक मनुष्यादि

Loading...

Page Navigation
1 ... 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194