Book Title: Veerjinindachariu
Author(s): Pushpadant, Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 6
________________ ४७ प्रस्तावना ५. धर्मोपदेश इस केवलज्ञानको प्राप्त कर भगवान् महावीर मगधकी राजधानी राजगृहमें साकर विपुलायल पर्वतपर विराजमान हुए। उनके समवसरण व सभामण्डपकी रचना हुई, धर्म व्याख्यान सुनने के इच्छुक राजा ध प्रजागण वहाँ एकत्र हुए और भगवानुने उन्हें अपने पूर्वोक्त तत्त्वोंका स्वरूप समझाया, तथा जीवनके सुखमय आदर्श प्राप्त करने हेतु गृहस्थोंको अणुव्रतोंका एवं त्यागियों को महावतोंका उपदेश दिया । ६. महावीर-वाणोपर आश्रित साहित्य भगवान महावीरके इन्द्रभूति, गोतम, सुबम, जम्मू आदि प्रघा ग्यारह शिष्य जिन्हें गणधर कहा जाता है। उन्होंने महावीरके समस्त उपदेशोंको बारह अंगोंमें प्रिन्धारूक किया जो इस प्रकार थे १. भाचारांग-इसमें मुनियोंके नियमोपनियमोंका वर्णन किया गया। इसका स्थान वैसा ही समझना चाहिर जैसा बौद्ध धर्ममें विनय पिटकका है । २. सन्नतांग-इसमें जैन दर्शन के सिद्धान्तों तथा क्रियावाद, अक्रियावाद, नियतिवाद आदि उस समय प्रचलित मतमतान्तरोंका निरूपण व विवेचन किया । ६. स्थानांग-इसमें संरूपानुसार नमशः वस्तुओं के भेदोपभेदोंका विवरण था। जैसे दर्शन एक, चरित्र एक, समय एक, प्रदेश एक, परमाणु एक, आदि। क्रिया दो प्रकार की जैसे-तीव-क्रिया और अजोव-क्रिया । जीव-क्रिया पुनः दो प्रकार को-सम्परत्र-क्रिया और मिथ्यात्व-क्रिया । इसी प्रकार अजीव-क्रिया भी दो प्रकार की ईपियक और साम्पराधिक इत्यादि । ४. समयायांग-इसमें पदार्थों का निरूपण उनके भेदोपभेदोंकी संख्याके अनुसार किया गया है जैसा कि स्थानांग में। किन्तु यहाँ वस्तु ओंकी संख्या स्थानांग के समान दश तक ही सीमित नहीं रही, किन्तु शत तथा शत-राहन पर भी पहुँच गया है। इस प्रकार इन ये अंगों का स्वरूप त्रिपिटकके अंगोत्तरनिकायके समान है। ५. व्यासपा प्रज्ञा-इसमें प्रश्नोतर रूपसे जैन दर्शन व आचारविषयक बातोंका विवेचन था। ६. नासाधम्मकहा-इसका संस्थान रूप सामान्यतः ज्ञात-धमकया किया जाता है और उसका यह अभिप्राय बतलाया जाता है कि उसमें ज्ञातृ-पुत्र महावीर के द्वारा उपदिष्ट धार्मिक कथाओंका समावेश था। किन्तु सम्भवतया ग्रन्थके उक्त

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