Book Title: Vastusara Ratnapal Charitre Author(s): Agamoddharak Granthmala Publisher: Agamoddharak Granthmala View full book textPage 2
________________ समर्पणम् प्रकाशकीय वक्तव्य आ संस्थाने आगमोद्धारक ग्रन्थमालाना आ त्रीजा प्रन्थने पूज्यपाद्गणिवर्य-श्रीलब्धिसागरमहोदयानाम् .. बाहर पाडतां अत्यन्त आनन्द थाय छे के आ एकज वर्षमा संस्थाये त्रण ग्रन्थरत्नो बाहर पाड्या छे। विद्यमानं सर्व संसारसुखं तिरस्कृत्य भवान् युवावस्थायां आमां पू. श्रीमलयसागरजी महाराज पासेथी सांभलेली निष्कान्तः / सर्वमपि कुटुम्बिजनं असारात् संसाराद् उद्धृत्वा | बे कथाओने संस्कृत पद्यमां मुनिराज श्रीत्रलोक्यसागरजी म. संयममार्गे प्लावितं च / अस्मिन् समयेऽपि भवत् कुटुम्बिनः | रचेल छे। अने तेनी शुद्धि पू. श्रीसूर्योदयसागरजी म. तथा चतुर्विशति संयमिनः संयमानन्दमनुभवन्ति / पू. श्रीप्रबोधसागरजी म. करेल छे. तेने प्रकाशन करवानो ____भवतामुपदेशप्रेरणाभ्यां जीर्णोद्धारादिनि अनेकशुभकार्याणि तमाम खर्च आसपुर निवासी श्रीप्रेमचन्दभाईना स्मार्थे तेमना लघुभ्राता मोतीचन्दभाईए आपेल छे / तथा चरित्रोनां प्रुफो संजातानि भवन्ति च / अतो भवतां गुणाकृष्टोऽहं इमे लघू | सुधारवान कार्य पू० श्रीकञ्चनविजयजी म. सा. तथा श्रीप्रमोदचरित्रे उपदि करोमि. सागरजी म. करेल छे. द्रव्य सहायक तथा पू. मुनिराजोनो अमो आभार मानीए छीए. प्रेस दोष के दृष्टि दोषथी कोई अशुद्धि रही होय. तो सुधारी वाचवा अमारी भलामण छे. aspeedeeapemperceptodeeDEOS त्रैलोक्यसागरः | // 2 // प्रकाशक Scanned with CamScaPage Navigation
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