Book Title: Vasnunandi Shravakachar Author(s): Sunilsagar, Bhagchandra Jain Publisher: Parshwanath Vidyapith View full book textPage 5
________________ प्रकाशकीय. जैनधर्म विशुद्ध मानवतावादी धर्म है । वह व्यक्ति से समष्टि की शुद्धि में विश्वास करता है। आत्मोदय से सर्वोदय चेतना और सर्वोदय से सामुदायिक चेतना को झंकृत करता हुआ जैनधर्म प्राचीन काल से आजतक जीवन को गतिमान् बनाये वस्था इसी गतिमत्ता का एक पड़ाव है, आध्यात्मिकता का एक है। जैनधर्म ने इस द्वार पर विशेष विचार किया है। उसने श्रावक के लिए आचारसंहिता प्रस्तुत की है जो जीवन को सही दिशा में ले जाने के लिए वाहक का काम करती है। बैनधर्म में श्रावकाचार की एक लम्बी श्रृंखला है । उस शृंखला में प्राकृत भाषा में लिखा आचार्य वसुनन्दि कृत श्रावकाचार का विशिष्ट स्थान है। मुनिश्री नीलसागर जी ने इस पर विस्तार से अर्थ, भावार्थ और विशेषार्थ देकर टीका लिखी Fiमाध्यात्मिक पिपासुओं के लिए यह टीका सहज ग्राह्य है। डॉ० भागचन्द्र जैन हमारे पार्श्वनाथ विद्यापीठ के कुशल निदेशक हैं । उन्होंने नुत ग्रन्थ की "प्रावकाचार और सामाजिक सन्तुलन' शीर्षक से एक विस्तृत नालखी है जो आज के पर्यावरण के सन्दर्भ में जैनधर्म की भूमिका को स्पष्ट आशा है, पाठकों के लिए यह पुस्तक उपयोगी सिद्ध होगी। इस ग्रन्थ का प्रकाशन श्री भोपाल सिंह जैन इटावा के अर्थ -सौजन्य से हो रहा है। हमारा संस्थान उनका हार्दिक आभारी है। भूपेन्द्र नाथ जैन मंत्रीPage Navigation
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