Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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612
एक्को चिय दुव्विसहो raat far दोसो एक्को वि को विनिय ए दइइ मह पसिज्जसु एमेव कह विकस्स वि एमेव कह वि माणसिणीइ
एवं चिय नवरि फुड
एयं चिय बहुलाहो एयं वज्जालागं ठाणं
एयं वजालग्गं सव्वं
ओ खिप्पर मंडल ओलग्गिओ सि धम्मम्मि
कज्जं एव्व पमाणं aust ausो निसि कहो जय जवाणो
VAJJĀLAGGAM
Add. 364* 2
11
59
795
5
207
154
388
ओसरसु मयण घेण ओ सुम्म वासरे
324
ओ सुयइ विल्लरव्विल Add. 214*1
379
कइया गओ पिओ कक्खायपिंगलच्छो
647
Add. 90*6
594 592
602
80
205
185
कहो देवो देवा वि
तो उग्गमइ रई तो तं रायघरे
कत्तो लब्भंति धुरंधराइ कत्तो लवंगकलिया
कत्थ वि दलं न गंध कद्दम रुहिरविलित्तो करचरणगडलोयण करफेसमलणचुंबण करिणिकरपियणवसरस करिणो हरिणहर
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638 | कलियामिसेण उन्भेवि
731 कल्लं किर खरहियओ
170 कवडेण रमंति जणं
352 79
254
237
Add. 178*2
316
Add, 559*2
199
581
234
365
568
Add. 4212
कस्स करण किसोयरि Add. 624*3 कस्स कहिज्जति फुडं कस्स न भिदइ हिययं कह कह वि रएइ पर्यं
295
22
कह नाम तीइ तं तद्द
312
कह लब्भइ सत्थरयं
494
कह वि तुलग्गावडियं Add.
कह सा न संभलिजइ जत्थ
कह सा न संभलिजइ जा सा
अत्तत्त
कह सा न संभलिज्जइ जा सा
घरबार
कइ सा न संभलिजइ जा सा नवणलिणि
कह सा न संभलिज्जइ जा सा
नीसास
कंकेल्लिपल्लवुच्चेल्लमणहरे कंचीरएहि कणवीरएहि कंठब्भंतरणिग्गय
कंपंति वलति समूससंति
का समसीसी तियसिंदयाण
का समसीसी सह मालईइ
कित्तियमेत्तं एवं
किसिओ सि कीस
किसिणिज्जंति लयंता
किं करइ किर वराओ
किं करइ कुरंगी बहुसुएहि
किं करइ तुरियतुरियं किंकरि करि म अजुत्तं
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