Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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618
देसियस पलोहं
देसे गामे नयरे... न पसरइ देसे गामे नयरे... न वियरइ
Add.
देहि ति कह नु भण्णइ दोसिय घणगुणसारं दोहिं चिय पज्जत्तं
90*15
158
792
42
धणसंचया सुगुज्झा
565
धणु संघइ भुयवलय Add, 300*1
धनं तं चैव दि
धना बहिरंधलिया
धम्मस्थकामरहिया
धम्मो घणाण मूलं
धम्मिय धम्मो सुष्वइ Add. 532*2 Add. 90*8
धवलं धवलच्छीए धावंति तम्मुहं धारिया
धीरा मया वि कज्जं Add धीरेण समं सम
धुत्तीरएण धम्मिय जड् इच्छलि धुत्तीरएण धम्मिय जो होइ
धुत्तीरयस्स कज्जे धुत्तीरयाण कज्जेण
VAJJALAGGAM
न महुमहणस्स
28 नमिऊण गोरिवयणस्स नमिऊण नं विढप्पड़
700
नयनब्र्भतरघोलंत
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785
Add. 64 * 3 145
Add. 532*1
नइ पुरसच्छ हे
न गइ रुवतं
नग्धंति गुणा विहडंति न जलंति न धगधगंति Add. 389*6 न तहा पइमरणे वि हू Add. 214 *3
न तहा मारेइ विसं
335
न तहा लोयम्मि
660
न मए रुष्णं न कथं
370,
Add. 300*7
118
नयरं न होइ नवण लिणमुणालुल्लोल
न विणा सन्भावेणं
न वि तह पढम
न सहइ अब्भस्थणियं
597 | नहकुंत भिन्ना समुहाय 300 119 * 2 नहकुंतग्गयभिन्ना हारावलि 112
523
524
525
354
566
123
नयणाइ तुझ सुंदरि
नयणाइ तुह विभए
नयणाइ नयंति
नयणाइ फुससु नयणाइ समाणियपत्तलाइ
नयणाण पडड वज्जं
Add. 454*3
Add. 454*+
नासइ जूएण धणं
नालइ वाएण तुसं
नाहं दूईन तुम निग्गुण गुणेहि निय निद्दय कुद्दालय मज्झ निद्दाभंगो आवंडुरत्तणं
निमो गुणरहिओ
निद्धोय उदयकंखिर
निबिडदलसंठिय
निम्मलपवित्तहारा निकम्मे हि विनीयं
नहमासभेयजणणो
न संति परं न थुवंति
नहु कस्स विदेति धणं
नाराय निरक्खर
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Add. 312*6
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