Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

Previous | Next

Page 686
________________ IND X . 601 मालइविरहे रे तरुण 241 रायंगणम्मि परिसंठियसस 678 मा वञ्चह वीसंभ 61 राहाइ कवोलतलुच्छलंत 596 मा सुमरसु चंदण 192 रुणरुणइ वलह 240 मा होस सुयग्गाही Add. 90*7 रुंदारविंदमंदिर 633 मित्तं पयतोयसमं 67 रे रे कलिकालमहा 43 मित्तो सूरो कयपत्त 716 | रेरे विडप्प मा 483 मुत्ताहलं व कव्वं 8 | रे ससिवाहणवाहण मा 371 मुत्ताहलं व पहुणो 693 रे ससिवाहणवाहण वारिज्जतो 372 मुय माणं माण पिय 360 रहइ पियपडिरंभण Add. 389*4 मुहभारियाइ सुट्ठ वि 540 रेहइ सुरयवसाणे 328 मुहराओ चिय पयडइ 403 लच्छिणिलयत्तणुत्ताण 714 मूलाहिंतो साहाण 645 लच्छीइ विणा रयणायरस्स 750 मेरू तिण व सग्गो 105 लच्छीए परिगहिया 713 मोत्तण करणगणियं 505 ललिए महुरक्खरए 29 मोत्तण बालतंत 520 लवणसमो नस्थि रसो Add. 90*1 मोत्तण वियडकेसर Add. 252*1 लंकालएण रत्तंबर Add. 637*1 रइकलहकुवियगोरी 606 लंकालयाण पुत्तय रच्छातुलग्गवडिओ Add. 496*10 लीलावलोयणेण वि 283 रजति नेय कस्ल वि वइमग्गपेसियाई 427 रज्जावंति न रजहि न देंति 550 वग्घाण नहा सीहाण 214 रज्जावंति न रज्जहि हरति 549 ! वच्चिहिलि तुमं पाविहिसि रणरणइ घरं रणरणइ Add. 7247 Add. 263*1 रत्तं रत्तेहि सियं Add. 300*5 वच्छत्थलं च सुहडस्स 178 रत्ते रत्ता कसणम्मि 551 वडवाणोण गहिरो रमियं जहिच्छयाए 'वड्ढसि विरहे Add. 389*7 रयणाइ सुराण समप्पिऊण 758 वसु मालइकलिए . 228 रयणायरचत्तण 356 । वड्ढाधियकोसो जं 715 रयनायर त्ति नाम 762 वणय तुरयाहिरूढो 630 रयणायरम्मि जम्मो 268 | वण्णड्ढा मुहरसिया स्यणायरस्स न हु होइ | वम्मह पसंसणिज्जो 396 रयणायरेण रयणं 746 वम्महभक्खणदिवोसहीइ 663 रयणुज्जलपयसोहं वरतरुणिणयण 680 स्यणेहि निरंतरपूरिएहि 753 ' वरिससयं नरमाऊ 666 637 548 751 661 561 755 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708