Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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सम्भावे पहुहिए समउतुंग विसाला -सयलजण पिच्छणिज्जो Add. 1993
सरला मुड़े न जीहा Add 199*4
218
- सरसलिएण भणियं सरसाण सूरपरिसंठियाण सरसा निहसणसारा
717
575
सरसा वि दुमा
63
सरसा वि हु कष्वकहा Add. 31*1
सरसरमणसमध्पण
326
293
697
1
39
सवियारस विब्भम
सव्वत्तो वसइ धरा
- सम्वन्नुवयणपंकय सन्वस एह पयई सव्वंगरगरतं
- सब्बायरेण रक्खह सब्वो गाहाउ जणो सव्वो छुहिओ सोहद्द सहद्द सलोहा बणघाय
सहस सि जं न दिट्ठो सहस तिजं न भज Add संकुयकंपिरंगो
संकुद्द संकु
संकेय कुडं गोड्डीण संघडियघडिय
संणियथोरजुय
INDEX
175 | संभरिऊण य रुष्णं 304
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Add. 5782
318*4
सात सहत्थदिन सातम्मि हियय दुलहम्मि
Add. 496*5
106
179
608
56
82
सा तुझ कए गयमय सादियहं चिय पेच्छइ
सामाखामा न सहेइ सामा नियंबगरुया
634
570
161
562
284 | सिरजाणुए निउत्तो
सिसिरमय रंदपज्झरण
सायर लज्जाह कह सा रेवा ताइ पाणियाइ
107
सा सुहय सामलंगी Add. 438*4 साहसमवलंबतो 264 साड़ीणामयरयणो 14
761
सिग्धं आरुह कज्जं सिद्धंंगणाउरस्थल
सालत्तयं पयं ऊरुएसु सालंकाराहि सलक्खणाहि
662 | सिहि पेहुणावयंसा 146
Add. 454*2
435
Add. 438*1
514
317
764
187
623
428
432
संज्ञासमए परिकुविय
संतं न देति वारेंति संतेहि असंतेहि य संधुकिज्जइहिए संपत्तियाइ कालं गमेसु संपत्तिया विखज्जइ Add. 496*9 | सुयणो न कुप्पह च्चिय
संभरसि कण्ह कालिंदि
605 | सुयणो सुद्ध सहावी
Add, 199*1 सियक सिणदीहरुज्जल Add 300*4
587
532
212
सुपमाणा य सुसुत्ता
सुम्मइ पंचमगेयं
620
10
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सिहिरडियं घणरडियं Add. 4454 सिंचतो वि मियंको Add. 496*12 सीलं वरं कुलाभो कुलेण
सीलं वरं कुलाओ दालिद्द
सीसेण कह न कीरह Add
92
86
85
507 *1
573
290
सुम्मइ वलयाण रवो
321
सुयणस्स होइ सुक्खं Add. 48*2
33333
34
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