Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 689
________________ 49 624 VAJJ LAGGAM सुरयप्पसुत्त कोवण Add. 328*3 | हत्थठियं कवालं 436 सुरयावसाणसमए Add. 328*2 | हरथफंसेण वि पिय 409 सुरसरिपूरं वडविडवि Add. 72*1/ हत्थे ठियं कवालं Add.72*4 सुलहाइ परोहड 527 हयदुज्जणस्त वयणं सुसह व पंकं 653 | हरसिरसरणम्मि गओ 269 सुसिएण निहसिएण वि 728 | हरिणा जाणंति गुणा 215 सुत्य गयं तुह विरहे। 431 | हतूण वरगइंदं 618 सुहियाण सुहंजणया Add. 641*4| हंसेहि समं जह Add. 263*3 सेयच्छलेण पेच्छह 318 | हंसो मसाणमझे 258 सेला चलंति पलए हंसो सि महासरमंडणो 257 सो कस्थ गओ सो सुयणवल्लहो हारेण मामि कुसुम Add. 397 2 सो सुहाण 782 हा हियय किं किल मसि 452 सो कत्थ गओ सोसुयणवल्लहो हा हियय झीणसाहस 451 सो सुहासिथ Add. 412*2 हिट्ठकयकंटयाणं . 706 सोको वि न दीसइ सामलंगि हिट्ठठे जाणिवहं 150 एयम्मि 343 हियए जं च निहितं Add.284*8 सो को विन दीसइ सामलंगि हियए जाओ तस्थेव 115 जो घडइ Add. 349-10 | हियए रोसुग्गिणं 616 सो चिचय सयडे सोच्चिय 184 हिययठिमी वि पिओ Add.41264 सो तहाइयपहिय व्व Add. 312*2 हिययठिओ वि सुहवो 787 सो मासो तं पि दिणं Add. 412*3 | हे हियय अव्ववठिय Add. 454*1 सोसणमई उ निवससु 744 होसह किल साहारो। 639 सो सुवइ सुहं सो 341 होही तं किंपि दिणं Add. 412*5 सो सोहइ दूसंतो 26 होति पर जणिरया Add. 48+3 सो होहिइ को विणिो 873 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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