Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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616
ठाणं न मुयइ घीरो उज्झउ सक्कयकन्वं डझड सो जोइसिजी
डज्झसि डज्झसु ज्झति कति
डिंभाण भुत्तसेस
ढक्कसि हत्थे मुहं ढलिया य मसी ढंखरसेसो वि महुरेहि दुरुदुलंतो रच्छामुहेसु सइया वारिज्जती as वोलते बालय तद्दियहारंभ
503
454
404
656
तु सिसिरदियहा बहिण निरवसेस
644
भित्तणम्मि डिंभेहि Add 496* 3
461
612
509
251
625
545
Add. 445*5
119
380
314
536
437
433
227
412
196
Add. 6052
तह कवि कुम्मुहुत्ते तह चंपिऊण भरिया
तह जंतिएण जंत
तह झीणा जह मउलिय
तह झोणा तुह विरहे
तह तुह विरहे मालइ
तह तेण विसा दिट्ठा
तह नीससियं जूहाहिवेण तह रुण्णं तीइ तड तह वासियं वर्ण मालईइ तं किं पि कम्मरयणं
तं किं पि पएसं तं किं पिक वि
तं किंपि साहसं
तं किं वच्चइ कब्वं
तं तं सा कुंडी
तं दट्ठूण जुवाणं
VAJJALAGGAM
: 682 । तं नत्थि वरं तं
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Add. 31*3
तं नस्थितं न हूयं
तं नमह जस्स गोट्ठे
108
Add. 31*6
तंबाउ तिनि सुपओ
तं मित्तं कायन्वं जं किर
537
617
तं मित्तं कायध्वं जं मित्तं
तं वंचिओ सि पिययम
ता किं करेमि पियसहि
ता किं करेमि माए निज्जियरुवस्स
तिणतूला वि हुलहुये 232 | तिलतुसमेत्तेण वि 111 तिलयं विलयं
ता किं करोमि माए लोयण
410
ता किं भएण किं चिंतिएण
676
ता जाइ ता नियत्तइ Add. 389* 5
ता तुंगो मेरुगिरी
103
ता धणरिद्धी ता
659
ता निग्गुण च्चिय वरं
695
ता रूवं ताव गुणा
134
तावश्चिय ढलहलया...
ताव च्चिय ढलहलया...
सिद्धत्था उण या
तावच्चिय होइ सु
तावय पुत्ति छइल्लो ता वित्थिण्णं गयणं
Add. 252*2 | तिहुयणणमिओ वि
485
तुच्छं तवणि पि
छेया नेहविहूणा Add. 284*2
Add, 64*1
278
591
160
68
69
तुलओ व समा
तुद्द अनेसणकज्जम्मि
तु गोत्तायणण
तु विरताविया
289
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Add. 397*1
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