Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 679
________________ 614 Add. 328*4 चलवल यमेहलरवं चंचुपुडकोडिवियलिय Add 641*2 48 538 चंदणतरु व्व सुयणा चंदणवलियं दिढंकंचि चंदस्स खओ न हु तारयाण चंदाहयपडिबिंबाइ चंदो धवलिज्जइ पुण्णिमाइ 267 चिक्कणचिक्खल्लचट्ट चिरयाल संठियाई चितामंदरमथाण चोराण कामुयाण य छज्जइ पहुस्स ललियं छणवंचणेण वरिसो छन्नं धम्मं पयडं च छंडिज्जइ हंस सरं छप्पय गमेसु कालं छंद अयाणमाणेहि छंद जो अणुवइ छंदेण विणा कव्वं VAJJALAGGAM 609 73 182 Add. 178*1 छुइ दर्द कुद्दालं छेयाण जेहि क उत्तमो ति भण्णइ जइ जइ कह वि ताण छप्पन्न जह गणसि पुणो वि तुमं जह चंदो किं बहुतारएहि जइ देव मह पन्नो जह देवरेण भणिया जह नत्थि गुणा ता किं Jain Education International 19 658 147 छाया हिस्स छिज्जउ सीसं अह होउ छिन्नं पुणो विहिज्जउ छिन्ने रणभिम बहुपहु छीए जीव न भणियं Add. 624*1 586 275 471 281 504 89 90 718 244 18 88 Add. 31*5 737 71 484 176 जड़ नाम कह वि सोक्खं जइ फुड एत्थ मुयाणं जर माणो कीस पिभो जइ वच्चसि वच्च तुमं अंचल जइ वच्चसि वच्च तुमं एव्हि जइ वच्चसि वच्च तुमं को जइ विसइ विसमविवरे जइ वि हु कालवसेणं 757 जड़ सा पद्दणा भणिया 615 जइ सा सहीहि भणिया तुज्झ पई 624 जइ सा सहीहि भणिया तुज्ह मुहं 613 जइ सुयाइ भणिया 623 जइ सो गुणाणुराई 470 जइ सो न एइ गेहूं जडसंवाहियफरुस जणसंकुलं न सुनं जन्तो नेहस्स भरो जत्तो विलोलपम्हल जत्थ गओ तत्थ गओ जत्थ न उज्जग्गरओ जत्थ न खुज्जयविडवो जन्म दिणे थणणिवडण जम्मंतरं न गरुयं गरुयं पुरिसस्स गुणगणग्गणं जम्मंतरं न गरुयं गरु गुणगणारुणं जम्मे विजं न हूयं जलडहणेण न तहा जलणपवेसो चामीय रस्स जलणं जलं च अमियं 153 479 355 369, 367 366 122 For Private & Personal Use Only 417 709 493 292 294 544 333 482 149 Add. 90*10 पुरिसस्स 687 54 768 767 266 752 Add. 349 * 3 | जलणिहिमुक्केण वि 747 622 जस्स तुमं अणुरता 543 685 जस्स न गिण्हंति गुणा Add. 90-3 www.jainelibrary.org

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