Book Title: Vajjalaggam
Author(s): Jayvallabh
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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किं ताल तुज्झ तुंगतणेण किं तुज्झ पहाए
किं तेज आइएण व किं ते जाइए वि
कीरइ समुद्दतरण कुडिलक्षणं च वकत्तणं च
किं वा कुलेण कीरइ
किं वा गुणेहि कीरइ Add. 90*13
किं विहिणा सुरलो
486
Add. 72* 5
574
589
कुद्दालघायघण कुप्पाढएहि कुलेइएहि
कुत्तेहि कुलाई
कुलबालिया पसूया कुललंछणं अकित्ती कुलवालियाइ पेच्छह कुसल राहे सुहिओ सि कुंकुमकयं गराय कुंजर महंददंसण कुंदलयामउलपरिट्ठिएण केसव पुराणपुरिसो
केसा दंत ठक् कुराण केसिवियारणरुहिरुल को एत्थ सया सुहिभ... खलणं को एत्थ सया सुहिभ... पलिअं को दाऊण समस्थ
को सो उब्वसिओ
INDEX
779
736 खंडिज्जइ विहिणा ससहरो खुहइ न कडुयं जंपइ 701 गज्जंति घणा भग्गा य पंथया 699 | गरुयछुाउलियस्स 143 गहचरिय देवचरियं
गहवइसुएण भणियं
गहिऊण चूयमंजरि गहिऊण सयलगंथं
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Add. 16*1 Add. 90*4
Add. 624*2
569
467
590
619
Add. 199* 5
248
599
681
595
127
667
677
442
खणभंगुरेण विसमेण Add. 349 2
383
खणमेतं संतावो खरपवणचाडुचालिर खर फरुसं सिप्पिउड खलसजणाण दोसा खल संगे परिचत्ते
126
Add. 48*1
648
195
668
516
635
578
गहियविमुक्का तेयं
683
गाढयर चुंबणुप्फुसिय Add. 300*5
गाढा सणस्स कस्स वि
गाहाग रसा महिलाण गाहाणं गीयाणं
गाहा रुअइ अणाहा
गाहा रुअइ वराई गाहाहि को न हीरइ गाहे भज्जिहिसि तुमं गिरहे दवग्गि गुणवज्जिए वि हो गुणहीणा जे पुरिसा गुणिणो गुणेहि विवेहि गुरुविरह संधिविग्गह गुरुविवलंघिया अवि गुरुविववित्थस्त्यंभिरे गोमहिसतुरंगाणं घरवावारे घरिणी
घाण मओ सण मई
घेतण करंड भमइ
444 | घेप्पर मच्छाण पए
688
घोलंततारवण्णुजलेण
64 | चच्चरघरिणी Add 64* 2 | चलचमरकण्णचालिर
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