Book Title: Uvangsuttani Part 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1113
________________ १०३६ वणस्सइकाइय-वण्णिय ५२ वणस्सइकाइय (वनस्पतिकायिक) प १।१५,३०; १३५,१६६,२६६,२७२,५।३२,५८,७।१७८ २।१३ से १५,३१६,५० से ५२,५८,६० से ६३. वण्णओ (वर्णतस्) ५ ११५ से ६१११५४,२८७, ६६,७१ से ७४,८०.८१,८४ से ८७,६३,६५, २०,२६,५३ १६८ से १७०,१८३,४८८,६० से १४;५३, वण्णग (दे०वर्णक) उ ३।११४ १७,१८,६६,६।५३,८६,१०२,११५,६।२१; वण्णग (वर्णक) ज ११३२,३।६,२०,३३,५४,६३, १५३८५,१२१,१३७,१८।२७,३५,४०,४३, ७१,८४,१३७,१४३,१६७,१८२,१६३,१६७, ४४,५२;२०१८,२११५,४१,२२।३१,३६।३३ २२२,४।१,११७,५११३;७।५५ ज २।१३१,१४४ वण्णचरिम (वर्णचरम) प १०।४६,४७ वणस्सइकाइयत्त (वनस्पतिकायिकत्व) ज ७।२१२ वण्णणाम (वर्णनामन्) प २३।३८,४७,१०१ से वणस्सति (वनस्पति) प ६।१०२,६।४ १०६,१०६ वणस्सतिकाइय (वनस्पतिकायिक) प ३।५०,५१, वण्णतो (वर्णतस्) प ११८,६२८।३२,६६ ६०,६३,६५,१८३;४।८६,५।१८,६।६३,८३; वण्णनाम (वर्णना मन् ) प २३।१०१ १५७६; २४।६३०।१६ वण्णपज्जव (वर्णपर्यव) ज २।५१,५४,१२१,१२६, वणिज (वणिज) ज ७।१२३ से १२५ करण नाम १३०,१४०,१४६,१५४,१६०,१६३,७।२०६ वणिय (वणिज्) ज २।२३ वण्णपरिणाम (वर्णरिणाम) प १३।२१,२६ वणीमगबहुल (वनीपकबहुल) ज १११८ वण्णमंत (वर्णवत्) प १११५२,५३,२८।५,६,५१, विण्ण (वर्णय) वण्णइस्सामि प १।११३ वण्ण (वर्ण) प ११४ से ६; २।२० से २७,३०,३१, वण्णय (वर्णक) प २।३२,४२,४३ ज ११२,३,१२, ४०,४०१६;२।४१,४८,४६,६४,३।१८२,५५, १६,२३,२५,२८,३१,३५,३८,२।११,८३; ७,१०,१२,१४,१६,१८,२०,२४,२५,२८,३०, ४।३,२५,३१,३६,४०,४७,५७,६७,७६,११०, ३२,३४,३७ से ३६,४१,४५,४६,५३,५६,५६, ११२,११५ से १२०,१२६,१२८,१३५,१३६, ६१,६३,६८,७१,७४,७६,७८,८३,८६,८६,६१, १४१ से १४४,१४७ से १४६,१५३ से १५६, ६३,६७,१०१,१०४,१०७,१०६,१११,११५, १७८,१८३,२००,२०१,२१३,२१५,२१६, ११६,१२६,१३१,१३४,१३६,१३८,१४०, २२१,२३४,२४०,२४५,२४६,२४८,५३, १४३,१४५,१४७,१५०,१५२,१५४,१६३, २६ से ३३,३५ से ३७ च ६,७,८ सू १।२,३ १६६,१६६,१७२,१७४,१७७,१८१,१८४, उ १११,३।६१;४।१०।५।१४ १८७,१६०,१६३,१६७,२००,२०३,२०७, वण्णय (दे०वर्णक) उ ३।११४ २११,२१४,२१८,२२१,२२४,२२८,२३०, वण्ण (वासा) (वर्णवर्षा) ज ५१५७ २३२,२३४,२३७,२३६,२४२,२४४; वण्णादेस (वर्णादेश) प ११२०,२३,२६,२६,४८ १०।५३।१;११।५३;१७।१।१,१७१७,१७,१८; ११४११,१२३ से १२६,१३२ से १३४; वण्णाभ (वर्णाभ) प २।२० से २५,५०,५६,६० २३।१०८,१६०,२८।६,७,२०,२६,३२,५२, ज ४१२२,३४,६०,६४,८४,११३,२६६,२७२ ५३,६६,३०।२५,२६,३६।८०,८१ ज १।१३, वण्णावास (वर्णव्यास) ज ११११,४६,३।१६५, २६; २१७,१८,१३३,१४२, ३।३,११,१२,८८, १९७;४।४,७,१५,२६,८४,१४६,५१३ २११,४।२२,३४,३६,६०,८२,८४,८६,६४, वण्णिय (वणित) प १।१।३१६।२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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