Book Title: Uvangsuttani Part 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1143
________________ १०६६ ११०,११२, ११४,११६,११६.१२०, १२२, १२३:२०६४।५:६।१।१,६१ से १६,२० से ४५,६० से ६४,६७,६८ १०३०१,२, १०२७०.७१ १२१२४, ३३१५।५८११.१६०३४, ३७१८१५६,६०,६२,६३,६७,५०,८१,८४, ८७, ८६, ६५, ६८, १०२, १०४, २०११११, २०१६ से १३:२२०५४,५६,५८,५६,७६,२३४६२. १९३३००२५, २६३६१८५८७६२ ज १।२. ४,५, १४; २४,७१,०८,०६१,१३१,१२४, १३८,१४१:३११०३, ५३१,६,८,९ से १२,१५, ४८, ५० से ५२७।५७,६०,११२०१ च ६४६, १० ११,४,५६।१८ १९ २ १०११५२ से १६१।११।२ से ६,१ से २८,३० १३०१,२१७१ १६०२५२०१३,५,७ ११ से ३,६,१६, २८, ५१.६५,७६, १४४; २१४,१७,३०४ से ६, ६, १२, २१, २४, २५, २७, ४८,५०,५५ से ५७,६४,६८,७१,७४,७६, ८६, १०, १५, १०, ११, १०६,१३१,१३२,१५५ से १५७,१५६,१६८,१६६, ४/४ से ६,१०,५४, १४,२१,२४,२६,३६,४०, ४१ समय ( समक) ज १।१४ समयक्वेत ( समयक्षेत्र) १२०,२१ समयखेत ( समयक्षेत्र ) प २१८६ समर (समर) ज ३०३,३५,१०३ समवण्ण (समवर्ण) प १७५,६,१७ समवेवण (समवेदन) १७११११७८१,१६,२० समसरीर ( समशरीर ) प १७ १,२,२८,२६ समसोक्ख ( समसौख्य ) २२६०,६३ समा (समा) ज २१७ से १५, २१ से ४५, ५० से ५६,८८,१२१ से १३३,१३८ से १४०,१४७ से १५०,१५२ से १६४३।१३५।२४।१८०, १८२७।२७ ९०४:१८१२,३ समाजय (समानुष्क) प १७।१।१,१७११२,१३ समागम ( समागम ) ज २४, ६ समाण (सत् ) प १५।५१, ५२; १७।११६; Jain Education International समय-समासतो १२८।१०५ ३४ १६, २१ से २४, ३६६२,७७ २०६० से ६२,७१,१४२ से १४५,३३,८, १३,१४,१९,२२,२५,२१,३०,३६,३८,४२, ४३,४६,५०,५१,५३,५९,६०,६२,६७,६८, ७०,७५,७७,८०,८२,८४,८६,१७,१००, १११,११८,१२५१२६,१३२,१३६,१४२, १४८, १४९, १५६,१६१.१६५,१६९,१७८, १८१,१८६,१६२,२०२,२०८, २१२ से २१४, २१७,२१६,४१२३,२५,३५,३७,३८,४२,६५, [ ७१,७३,७७, १०,६१,२४,१७४, १०२, १८६ १६५,२६२५।१५,२२,२४,२६,२६,४३.७० सू । ११।१७, २३ से २६,३७,४०,४५, ५२,५५ से ५८,६०,६२,७४,७७,८० से ८३, ८५,६० से १३,२९,१०७, १०८, ११०, ११८, १२७६३।१३,१५,२६,५०,५५,७८,६२,६४, १०६,१०,११२,१२१, १४७, १६०,१६२ ४१११,२०,५।१५,१७,३८ समाण ( समान) ज ३।११७ सू २०७३।१२८ / समाण ( सं + आए) समाणे ज ७।१०४ सू १०।१३० समानेति नू १० १२६ समाणीत ( समानीत ) उ३।४८, ५० समाणुभाव (समानुभाव ) प २०६०,६३ ज २।१३१ ४५६ समादह (आधा) समायहे उ ३।५१ समादीय ( समादिक) सू १२।१० से १२ समारिए ( समाचरितुम् ) उ३।१०२ समारंभ ( समारम्भ) उ १।२७,१४० समारूढ ( समारूढ ) ज ३।१२१ / समालभ (संजालम् ) समालभइ उ ३।११४ समावण्णव (समापन्नक) ज ७५५,५८ समास (समास ) प ३१३८, ३१ ज ७।१०१.१०२ सू १६।२२।१ समासओ (समासंतस् ) प १।४८ । ५४; १।४८ ज २०६६ समासतो ( समासतस् ) प १०४,२०,२३,२६,२९, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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