Book Title: Uvangsuttani Part 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 1177
________________ ११०० माणवग मालवंतपरियाय मेहुणसण्णा रयण (वासा) रयणिय १०३. १०४. १०५. रिसह लोम वरदामतित्थाधिपति १०७. १०८. १०६. ११०. १११. ११२. ११३. ११४. ११५. (माणवक) (माल्यवत्पर्याय) मथुन संज्ञा (रत्नवर्षां) (रन्निक) (वृपभ) (लोमन) वरगंधघर (वरदामतीर्थधिपति) वालिघाण कपिथ्य (संवृत्त) सगोत सत्तणउत्ति सम्माणियदोहद सय (सिलीन्ध्र) (सुदर्लभ) स्यपुच्छ सुसमससमा वालुक संवत्त (मानवक) (माल्यवत्पर्याय) मैथुन संज्ञा (रत्नवर्षा) (रलिक) (वृषभ) (लोमन्) वरगंधधर (वरदामतीर्थाधिपति) वालिधाण कपित्थ (संवर्त) सगोत्त सत्तणउति सम्माणियदोहल सिय (सिलीन्ध्र) (सुदुर्लभ) सुयपुच्छ सुसमसुसमा अट्टरूसग (अटरूषक) पश३७४४ एरावण (ऐरावत) प ११३७६४ प ११४८।५० ~ सिलिध सुदुल्लह ११८. ११६. केहण णल (नड) १० ११४१।१ १०४ पोवलइ (दे०) ए ११४८।३ वेणु (वेणु) प ११४८१४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 1175 1176 1177 1178