Book Title: Uvangsuttani Part 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1175
________________ १०६८ 0 0 कलंबुया कल (कल) (कदम्बक) कहिचि कहिय कालहेसि (कालहेसिन) (कौंम्भिक) (कुमुद) (कलम) (कलम्बुका) कहिंचि कहिय 0 0 0 कुंभिक्क कुमुदा 0 गरह गवेस 0 गा 0 गाह 0 oo Ko चउपएसिय गिण्ह गुणड्ढ गेवज्ज चःतु प्रदेशिक चय चय चर चि चित चुल्लहिमवंत (कौम्भिक) (कुमुदा) गिरह गवेस गा गाह गिण्ह गुणड्ढ -गेवेज्ज (चतुःप्रदेशिक) चय चिय चर इचि चित (क्षुल्लहिमवत्) छज्ज (छायाच्छाया) छिंद (छिन्नस्रोतस्) छेद छेय (दे० जटिकायलक) जा जाणियब्व जोयणसतपुहत्तिय (निवृध्य) (निवृत्त) णिव्वाय (नेरयिकासंज्यायुष्क) (त्रपूसीमज्जिका) (चुल्लहिमवत्) छज्ज (छायाछाया) छिंद (छिन्नस्रोतस) छायाछाया छिन्नसोय CCCCCCCCC or जटियायलय छेय (दे० जटिकायिलक) जा जाणियत्व जोयणसत्तपुहत्तिय (निवऱ्या) (निवृत्त) णिव्वाण (नैरयिकासंजयायुष) (त्रपुसीमिजिका) णिवुड्ढत्ता णिव्वत्त णेरइयअसण्णिआउय तउसी मिजिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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