Book Title: Uvangsuttani Part 05
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 1176
________________ १०६६ ६४. ६५. तिंडव (त्वष्टदेवता) (त्वष्ट्र) 0 0 6 (तिर्यगयोनिकासंज्ञयायूष्क) (तिर्यगायुष्क) (दत्त्वा ) (दत्त्वा ) (दुष्ठु) ७०. ७१. ७२. 6 6 दु? ७३. 6 6 दुहट्ट ७५. 6 6 6 ७७. ७८. 6 पम्ह ८०. ८१. तंडव तट्टदेवया (त्वष्ट्रदेवता) त? (त्वष्ट्र) तित्तीस (त्रयस्त्रिशत्) ज० ४।६८ तिरिक्खजोणियअसण्णिआउय (तिर्यगयोनिकासंज्ञयायुष्) तिरियाउय (तिर्यगायुष्) दलयित्ता (दत्वा ) दाऊण (दत्वा) (दुष्टु) दुरभि (दुरभि) (दुधाट्ट) देवअसण्णिआउय (देवासंघ्यायुष्) पंचसतर पञ्जसप्तति पच्चोसक्कित्ता प्रत्यवप्कष्क्य पडि सेहित्तए प्रतिषेध्दुभ् (पद्म) २५१ परिणित्वा परियाण परिवय परिहा पल्हायणिज्ज (प्रहृलदनीय) पिट्ठीय पुक्खलाई पुष्फपडलग (षुष्पपटलक) पुस्वरत्त पूइय पूजित पेहुणमिजिया 'पेहुण' मजिका पोट्टवई प्रौष्ठपदी पोट्टवती प्रौष्ठपदी प १३।१ से ३१ भणित प ११४८१४७ भत्तिचित्त ज० ३।३६ ॥५६ भवोववायगति (भवोवपघातगति) भासग प३।१२,.......१०८ भूमिचवेउ ज ५७ मंडलवता मंडलवत (टलजन) 11111 (दुर्घट्ट) (देवासंज्ञयायुष्क) पञ्चसप्तति प्रत्यवष्वष्क्य प्रतिषेद्धम् (पद्म) ४।२५१ परिणिव्वा परियाण परिवय अपरिहा (प्रहृलादनीय) पिट्टि पुक्खलावई (पुष्पपटलक) पुव्वरत्त पूजित पेहुणमज्जिका प्रोष्ठपदी प्रोष्ठपदी प १३।१ से १३,२१ से ३१ प० ११४८।४१ ज० ३।३,६,५४५८ (भवोवपपातगति) प ३।१२,१०८ ज ५१५७ S ६१. m mm m m ६५. m ६७. m १८. m Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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